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इतिहास

35 साल पहले जब भोपाल में सांस लेने की वजह से मारे गए लोग

ऋषभ कुमार शर्मा
१ दिसम्बर २०२०

भोपाल गैस त्रासदी शायद मानव इतिहास की सबसे बड़ी मानव निर्मित त्रासदी है. इससे करीब छह लाख लोग प्रभावित हुए. लेकिन आज भी ये लोग इंसाफ की मांग कर रहे हैं. फिलहाल इन पीड़ितों की सांस और इंसाफ की आशा उखड़ती दिखती है.

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Bildergalerie Bhopal Amnesty International EINSCHRÄNKUNG
तस्वीर: Image courtesy Amnesty International © Raghu Rai/Magnum Photos

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक इलाका है आरिफ नगर. आरिफ नगर में आप कोई भी 35-40 साल से ज्यादा उम्र के इंसान को देखिए. वो शहर की बाकी रफ्तार के मुकाबले बहुत धीमा लगेगा. एक राज्य की राजधानी होने के चलते पूरा शहर हमेशा तेजी से चलता रहता है. लेकिन आरिफ नगर और उसके आसपास के इलाकों में जिंदगी पिछले तीन दशकों से धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही है. ऐसा क्यों है, इसका जवाब 1984 में हुई एक मानव निर्मित त्रासदी है जिसे भोपाल गैस कांड के नाम से जाना जाता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस त्रासदी से पांच लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पीड़ित हैं. लेकिन उस त्रासदी में ऐसा हुआ क्या था कि आज तक उसके निशान लोगों के दिमाग से मिटे नहीं हैं?

एक रात जिसकी सुबह नहीं हुई

2 दिसंबर 1984 की रात भी बाकी रातों की तरह सामान्य थी. देश में लोकसभा चुनावों का माहौल था. लगभग एक महीने पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का कत्ल हुआ था और उनके बेटे राजीव ने सत्ता संभाली थी. दिल्ली और कुछ शहरों में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए. फिलहाल हालात सामान्य थे. लोग अपने घरों में सो रहे थे या सोने की तैयारी में थे. रविवार का दिन था. कामगार लोग अगले दिन काम पर जाने की सोचकर समय पर सो जाना चाहते थे. करीब आधी रात की बात थी. कुछ लोग रात में 9 से 12 का फिल्म का शो देखकर घर लौट रहे थे. अचानक उन्हें सांस लेने में अजीब सी परेशानी महसूस हुई. सांस की परेशानी के बारे में वे सोचते उससे पहले आंखे जलने लगी. वो कुछ समझ पाते उससे पहले सामने से भागती आती हुई भीड़ दिखाई दी. ये भीड़ उनके पास आते-आते पहले से कम हो गई क्योंकि पीछे दौड़ रहे लोग गिरते जा रहे थे. अब इन सबको समझ आ गया था कि कुछ गड़बड़ हो गई है. ये गड़बड़ हुई थी उस समय साढ़े आठ लाख की आबादी वाले भोपाल के सैकड़ों लोगों को नौकरी देने वाले यूनियन कार्बाइड के कारखाने में.

Flash-Galerie Giftgaskatastrophe Bhopal
तस्वीर: AP

यूनियन कार्बाइड का कारखाना सात साल पहले यानी 1977 में भोपाल में शुरू हुआ था. इसमें भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी की साझेदारी थी. 51 फीसदी हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड की थी तो सैद्धांतिक रूप से मिल्कियत इसी कंपनी की हुई. इस फैक्टरी में सेविन नाम का एक कीटनाशक बनाया जाता था. सेविन मूलत: कार्बारिल नामक कीटनाशक था जिसका नाम यूनियन कार्बाइड ने सेविन रखा था. फैक्टरी सालभर में 2500 टन सेविन का उत्पादन कर रही थी. इसकी क्षमता 5000 टन के उत्पादन की थी. 1980 का दशक आते आते सेविन की मांग कम होने लगी. सेविन की बिक्री बढ़ाने के लिए इसे सस्ता करने की योजना कंपनी ने बनाई. इसके लिए उन्होंने उत्पादन लागत को कम करना शुरू किया. इस फैक्टरी में स्टाफ कम किया गया, रखरखाव कम किया गया और कंपनी के कलपुर्जे कम लागत वाले खरीदे गए जैसे स्टेनलैस स्टील की जगह सामान्य स्टील का इस्तेमाल किया गया.

Kalenderblatt Chemieunfall in Bhopal Indien 1984
तस्वीर: AP

मुनाफे का दबाव

हालांकि इसके बावजूद बिक्री ज्यादा बढ़ी नहीं और फैक्टरी में स्टॉक अभी भी बना हुआ था. इसलिए फैक्टरी में नया उत्पादन रुका था. सिर्फ रखरखाव और जांच का काम चल रहा था. इस फैक्टरी के प्लांट सी के एक टैंक में, जिसका नंबर 610 था, मिथाइल आइसोसाइनेट गैस भरी हुई थी. मिथाइल आइसोसाइनेट एक बेहद जहरीली गैस है. हवा में इसकी 21 पीपीएम मात्रा जान लेने के लिए काफी होती है. रखरखाव में कटौती की वजह से इस टैंक पर ध्यान नहीं दिया गया. टैंक की कूलिंग के लिए लगाए गए पानी के पाइप से पानी टैंक में चला गया. मिथाइल आइसोसाइनेट ने पानी से क्रिया की और भारी मात्रा में मेथिलएमीन और कार्बन डाई ऑक्साइड बनाना शुरू हुआ. इन दोनों गैसों का आयतन बेहद ज्यादा था. माना जाता है इस टैंक में करीब 25 से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट भरी थी जिसने पानी से क्रिया कर हवा में जहर घोल दिया. ये गैस वातावरण में हवा के साथ मिल गई और लोगों की सांस में जाने लगी.

Bhopal
तस्वीर: dpa

भोपाल के करीब पांच लाख लोग इस गैस की चपेट में आ चुके थे. भोपाल के कई स्थानीय लोग इस फैक्टरी में काम भी करते थे. उन्हें ट्रेनिंग के दौरान बताया गया था कि कभी प्लांट में कोई भी गैस लीकेज हो तो हवा की उल्टी दिशा में भागें और अपने कपड़े गीले कर जमीन पर औंधे मुंह लेट जाएं. आजाद मियां जैसे कई लोगों को जब पता चला कि गैस लीक हो गई है तो उन्होंने अपने घर और आस पड़ोस वालों को ये तरीका बताया और हवा की उल्टी दिशा में भागे और आगे जाकर जमीन पर लेट गए. ऐसा करने से बहुत सारे लोगों की जानें तो बच गईं लेकिन इस खतरनाक गैस से वो हमेशा के लिए विकलांग हो गए. भोपाल की सड़कों पर ऐसे ही लाशें पड़ी दिखाई देने लगीं जैसे महीने भर पहले हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली में पड़ी थीं. जो लोग जिंदा बचे वो अस्पतालों की तरफ भागते दिखे. भोपाल में तब बस दो अस्पताल थे. रात का वक्त होने के चलते जूनियर डॉक्टर्स ही ड्यूटी पर थे. देखते ही देखते मरीजों का अंबार लग गया और डॉक्टरों के पास कफ सिरप और आई ड्रॉप के अलावा कोई इलाज नहीं था.

Flash-Galerie Giftgaskatastrophe Bhopal
तस्वीर: AP

कोई बचाने वाला नहीं

गैस लीक होने का पता चलते ही कई सारे डॉक्टर भी शहर छोड़कर अपनी जान बचाने भाग गए थे. राज्य में उस समय अर्जुन सिंह की सरकार थी. कहा जाता है कि जैसे ही अर्जुन सिंह को पता चला कि गैस लीक हुई है वो पास के कैरवा डैम में अपने फार्म हाउस पर चले गए थे. अगले दिन की सुबह हुई तो शहर के एक हिस्से में लाशों का ढेर लगा था. अस्पतालों से लेकर सड़क तक पर मरीज ही मरीज थे. लोग अपने घरवालों को तलाश रहे थे. इस त्रासदी में इंसानों के साथ बड़ी संख्या में जानवर और पक्षी मारे गए. सरकार ने अपनी तरफ से हाथ पैर मारने शुरू किए. डॉक्टरों की टीम वहां भेजना शुरू हुआ. गैस के असर को कम करने के लिए विशेष दवाएं लाने की प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन अब प्रभावित लोगों का गुस्सा रोष बन चुका था. कल तक कई परिवारों को रोजी रोटी के सहारे जीवन दे रही यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी आज उस जीवन को लील चुकी थी. सरकार के पास भी अभी ना कोई ठोस इंतजाम था और ना ही कोई जवाब.

Flash-Galerie Giftgaskatastrophe Bhopal
तस्वीर: AP

जिंदा बचे लोग अब अपने परिजनों को तलाश करने लगे. किसी को अपने परिजनों की लाश मिल रही थी तो किसी को कोई बेहोश मिल जा रहा था. लेकिन इस हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी के लोग कहीं नहीं दिख रहे थे. हादसे के चार दिन बाद यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन भोपाल पहुंचे. एंडरसन को भोपाल एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन एंडरसन को कुछ ही घंटों के बाद जमानत दे दी गई. बात यहीं खत्म नहीं हुई. एंडरसन को मध्य प्रदेश सरकार के हवाई जहाज से दिल्ली भेजा गया. दिल्ली पहुंचते ही एंडरसन ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ी और फरार हो गए. इसके बाद 2014 में एंडरसन की मौत होने तक वो कभी भारत वापस नहीं आए. अदालत ने एंडरसन को फरार घोषित किया. अर्जुन सिंह पर आरोप लगे कि केंद्र सरकार के दबाव में उन्होंने एंडरसन को भगाया. राज्यसभा की एक बहस में इसका जवाब देते हुए अर्जुन सिंह ने कहा था कि तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने उनसे कभी इस बारे में कोई बात नहीं की. सिंह ने कहा कि उन्होंने खुद एंडरसन को गिरफ्तार करने के लिखित निर्देश दिए लेकिन उनकी जमानत के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से फोन आया और उन्होंने जमानत का फैसला राज्य के मुख्य सचिव पर छोड़ दिया था. पीवी नरसिंहा राव तब गृह मंत्री हुआ करते थे.

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वॉरेन एंडरसनतस्वीर: AP

जिम्मेदारों को सजा नहीं

इस त्रासदी का असर सिर्फ उन्हीं तीन चार दिन में नहीं हुआ. बल्कि आज तक लोग इस त्रासदी के असर से जूझ रहे हैं. गैस त्रासदी के पीड़ितों को सरकार की तरफ से पर्याप्त सहायता नहीं मिली. इन पीड़ितों ने अब्दुल जब्बार के नेतृत्व में एक संगठन बनाया. इस संगठन ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट में इनकी याचिका के चलते सरकार को मानना पड़ा कि त्रासदी में तीन हजार ना होकर 15,274 लोगों की मौत हुई और 5,74,000 लोग बीमार हुए थे. सुप्रीम कोर्ट ने मृतकों को 10 लाख और बीमार लोगों को 50,000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया. हालांकि ये मुआवजा बहुत नाकाफी है. 2010 में इस मामले में आठ लोगों को दो-दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी. भारत सरकार ने इस मामले में यूनियन कार्बाइड से हर्जाने के रूप में तीन बिलियन डॉलर की मांग की थी. लेकिन भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए 470 मिलियन डॉलर में समझौता करवाया था.

Indien Bhopal Abdul Zabbar Khan
अब्दुल जब्बार खान.तस्वीर: DW/I. Bhatia

इस हादसे के शिकार जिंदा लोगों में से अधिकतर लोग सांस की बीमारियों और कैंसर के चलते दम तोड़ रहे हैं. महिलाओं को माहवारी में ज्यादा खून आने से लेकर बच्चे पैदा ना कर सकने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस हादसे के बाद बड़ी संख्या में लोग अंधे भी हो गए थे. भोपाल में अभी भी ऐसे लोगों का आंदोलन चलता रहता है. इन लोगों का कहना है कि सरकार ने उन्हें थोड़ी सी आर्थिक मदद, एक मेमोरियल पार्क, अस्पताल और गहरे जख्मों के अलावा कुछ नहीं दिया है. वो अभी भी अपने लिए इंसाफ मांगते हैं. इंसाफ की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे अब्दुल जब्बार की एक आंख खराब थी और उन्हें फेफड़े की समस्या थी. लेकिन वो लगातार सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे. 14 नवंबर 2019 की देर रात ये लड़ाई खत्म हुई जब उनका निधन हो गया. यूनियन कार्बाइड को 2001 में डाउ केमिकल्स ने खरीद लिया. भोपाल में उसका कारखाना आज बंद पड़ा हुआ है. वहां एक चौकीदार तैनात रहता है. फैक्टरी के सामने एक मूर्ति लगी है जिसमें एक महिला एक छोटे बच्चे को गोदी में लिए हुए है. ऐसी सैकड़ों माएं और बच्चे और इनको मिलने वाला इंसाफ कहीं ना कहीं मारा गया.

Indien Bhopal Gasfabrik
तस्वीर: DW/I. Bhatia

फैक्टरी के आसपास की जमीन प्रदूषित हो गई थी जो आजतक प्रदूषित है. इस जमीन का प्रदूषण भूजल में भी पहुंच गया. आबादी बढ़ी तो लोग इस प्रदूषित जमीन पर भी रहने लग गए. सरकारी इंतजाम नाकाफी साबित हुए. आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लोग इस हादसे की वजह से मारे जा रहे हैं.

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