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राजनीतिअफ्रीका

दखिण सूडान की आजादी बर्बादी में बदल गई

१६ जुलाई २०२१

एक स्वतंत्र देश के रूप में दक्षिण सूडान के 10 वर्षों को व्यापक असुरक्षा, भयावह मानवीय संकट और भ्रष्टाचार के रूप में चिह्नित किया गया है.

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Welthungerhilfe
तस्वीर: Stefanie Glinski/Welthungerhilfe

9 जुलाई 2011 को सूडान से अलग हुए दक्षिण सूडान की आजादी के बाद का उत्साह बहुत छोटा था. डेढ़ साल से भी कम समय में, संसाधन संपन्न यह देश घातक गृहयुद्ध में फंस गया जिसने करीब चार हजार लोगों की जान ले ली. गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप, देश की 1.10 करोड़ की आबादी में से 16 लाख लोग मौजूदा समय में दक्षिण सूडान के भीतर ही विस्थापित हैं, जबकि 20 लाख से ज्यादा लोगों ने दक्षिण सूडान के बाहर अन्य देशों में शरण ली है.

आज, दक्षिण सूडान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ ने इस हफ्ते की शुरुआत में चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान अब तक का सबसे बुरा मानवीय संकट झेल रहा है. यूनिसेफ ने दक्षिण सूडान की दसवीं वर्षगांठ से पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है कि अकेले पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों के सामने भुखमरी का खतरा है.

सूडान और  दक्षिण सूडान
सूडान और दक्षिण सूडान

रिपोर्ट में, यूनिसेफ ने जोर देकर कहा है कि कमजोर राज्य संरचनाओं, अत्यधिक गरीबी, सामाजिक और आर्थिक संकट, जलवायु परिवर्तन के परिणाम और कोविड-19 महामारी से लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

आजादी के बाद जातीय संघर्ष

दक्षिण सूडान के विशेषज्ञ क्लेमेंस पिनाउड ने डीडब्ल्यू को बताया कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका के रूप में पहचाने जाने वाले इस देश में बहुत कुछ "गलत" हो गया है. इंडियाना यूनिवर्सिटी में हैमिल्टन लुगर स्कूल ऑफ ग्लोबल एंड इंटरनेशनल स्टडीज की सहायक प्रोफेसर पिनाउड कहती हैं, "विभिन्न जातीय समूहों के नागरिकों के खिलाफ नरसंहार जैसी हिंसा संयुक्त राष्ट्र के सबसे युवा सदस्य राज्य के सामने प्रमुख मुद्दों में से एक है. पिनाउड के मुताबिक स्वतंत्रता के लिए दक्षिण सूडान की लड़ाई के दौरान, दक्षिण सूडान के प्रमुख जातीय समूह, डिंका के बीच वर्चस्व की मानसिकता बढ़ी. वो कहती हैं कि यह भावना जातीय वर्चस्व के रूप में बदल गई. आजादी के बाद से ही दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति साल्वा कीर भी डिंका समुदाय से आते हैं.

दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति साल्वा कीर
दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति साल्वा कीरतस्वीर: Reuters/S. Bol

साल 2013 में, कीर ने सबसे देश के उपराष्ट्रपति रीक मचर को बर्खास्त कर दिया जो देश के दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह, नुएर से संबंध रखते थे. कीर ने माचर पर उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया. हालांकि सूडान से आजादी के लिए संघर्ष में दोनों एक साथ थे. माचर के निष्कासन ने देश को आधुनिक समय के सबसे क्रूर गृहयुद्धों में से एक की ओर धकेल दिया जिसमें नरसंहार, बलात्कार और बाल सैनिकों की भर्ती भी शामिल थी. गृहयुद्ध साल 2018 तक जारी रहा. इसके बाद प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.

छिटपुट हिंसा अभी भी जारी है

हालांकि फरवरी 2020 में आखिरकार गठबंधन सरकार बनी लेकिन स्थानीय स्तर पर संघर्षों का दौर अभी भी जारी है. साल 2020 की दूसरी छमाही में प्रतिद्वंद्वी समुदायों के बीच हुई हिंसा में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए.फरवरी 2021 में दक्षिण सूडान के बारे में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की जारी हुई रिपोर्ट में पाया गया कि ‘सशस्त्र राज्य और विपक्षी बलों के समर्थन से, जातीय आधार पर संगठित सशस्त्र समूहों और मिलिशिया द्वारा नागरिक आबादी के खिलाफ हमलों में तेजी आई है.' सशस्त्र बलों को भी जातीय आधार पर विभाजित किया गया है और राज्य की तुलना में विशिष्ट राजनेताओं के प्रति वे अधिक वफादार होते हैं.

बहुत ही जल्द निराशा में बदल गया आजादी का जश्न
बहुत ही जल्द निराशा में बदल गया आजादी का जश्नतस्वीर: AP

नेतृत्व पर समझौता

पर्यवेक्षकों ने कीर और मचर दोनों पर शांति समझौते के पूर्ण कार्यान्वयन में देरी करने और अफ्रीकी संघ के साथ साझेदारी में युद्ध अपराध अदालत सहित जवाबदेही तंत्र की स्थापना को अवरुद्ध करके "वेटिंग गेम" खेलने का आरोप लगाया है.

पिनाउड कहती हैं, "यह एक ऐसी सरकार है जो नागरिकों को डराकर और विपक्ष के लोगों को खुश और अपने साथ रखकर काम करती है. सरकार का विरोध करने वाले लोगों के लिए विपक्ष में रहना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसका मतलब है कि आपको सरकारी नियुक्ति या आदेश को अस्वीकार करना होगा.”

हालांकि कुछ विशेषज्ञ तब तक देश के लिए बहुत कम उम्मीद देखते हैं, जब तक मौजूदा राजनेता सत्ता में हैं. साउथ अफ्रीकन इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटी स्टडीज में सीनियर रिसर्चर एंड्र्यूज अटा असामोआ कहते हैं, "आपको नेताओं की एक नई फसल को जगह देनी चाहिए जो एक नई मानसिकता के साथ संघर्ष के बाद दक्षिण सूडान की वास्तविकता और विविधता को प्रतिबिंबित करेंगे. उन्हें इस समय इसी की जरूरत है.”

जितना तेल, उतना ही भ्रष्टाचार
जितना तेल, उतना ही भ्रष्टाचारतस्वीर: Hoffnungszeichen e.V.

सरकारी अधिकारियों की गहरी जेबें

देश में जिस तरह से हिंसा अपने चरम पर है, वैसे ही भ्रष्टाचार ने भी देश को अपनी गिरफ्त में ले रखा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अधिकारी "सार्वजनिक धन की लूट के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और कर चोरी में लिप्त हैं." रिपोर्ट के मुताबिक, "समय के साथ, भ्रष्टाचार इतना आम हो गया है कि इसने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र और राज्य के हर संस्थान को संक्रमित कर दिया है.”रिपोर्ट के अनुसार, यह भ्रष्टाचार मानवाधिकारों के हनन को बढ़ावा दे रहा है और दक्षिण सूडान के जातीय संघर्ष का एक प्रमुख कारक है.

देश की व्यापक समस्याओं के बावजूद, यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित करने में विफल हो रहा है. संघर्ष विश्लेषक अट्टा-असामोआ के मुताबिक, ऐसा इसलिए है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय दक्षिण सूडान के एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ते हुए थक गया है. इसके बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय सुधार को लेकर निराश नहीं है. वह दक्षिण सूडान के भविष्य के संबंध में खुद को "आशावाद और निराशावाद के बीच कहीं" मानता है. वो कहते हैं कि बाहरी दबाव महत्वपूर्ण है. उनके मुताबिक, "दक्षिण सूडान में स्थानीय लोगों पर ही यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि वे प्रगति को बनाए रखें और इसे जोड़ने की दिशा में काम करें.

रिपोर्ट: क्रिस्टीना क्रिपाल