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रमजान पर इनफ्लुएंसर्स का साया

काथरीन शेयर
१८ मार्च २०२४

सोशल मीडिया के इनफ्लुएंसरों का समाज पर असर तो पड़ता है, लेकिन अच्छा या बुरा? मध्य पूर्व में रमजान के दौरान इस पर बहस हो रही है.

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रमजान में रंग में सजा दुबई
रमजान में रंग में सजा दुबईतस्वीर: Giuseppe CacaceAFP/Getty Images

रमजान मुसलमानों का पवित्र महीना है. लेकिन तकनीक का दायरे से ये भी अछूता नहीं है. ऐसे तमाम ऐप्स हैं जो रोजा रखने और इबादत करने वालों के लिए खासे मददगार हो रहे हैं. स्मार्टफोन के माध्यम से ये ऐप नमाज पढ़ने से लेकर जकात यानी पुण्य भाव से किए जाने वाले दान के बारे में राह दिखा रहे है. तंगहाल लोगों की मदद करना रमजान का एक अहम अंग है.

लेकिन डिजिटल दुनिया ने सैकड़ों साल से चले आ रहे इस त्योहार में कई विवादास्पद बदलाव भी घुसेड़े हैं. और, सोशल मीडिया के इनफ्लुएंसर्स ऐसे कई अच्छे या चुभने वाले बदलावों के अगुवा बने हैं.

अमीर खाड़ी देशों के निवासी दुनिया के उन लोगों में से हैं, जिनका इंटरनेट के साथ बहुत गहरा जुड़ाव है. उदाहरण के तौर पर संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में अनुमानित तौर पर 99% जनसंख्या ऑनलाइन है, जबकि जर्मनी में यह संख्या 93% है.

कई सर्वे बता रहे हैं कि यूएई, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों में रमजान के दौरान सोशल मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग सामान्य दिनों की अपेक्षा और अधिक बढ़ जाता है.

रमजान के दौरान कम हो जाती है मुस्लिम जजों की सख्तीः शोध

साथ ही साथ रमजान के दौरान ऑनलाइन शॉपिंग में भी तेजी आती है. रमजान के अंत में लोग एक दूसरे को उपहार देते हैं और अक्सर नए कपड़े भी खरीदे जाते हैं. नमाज और इफ्तारी के दौरान लोगों के बीच काफी मेल मिलाप होता है, इसीलिए इस दौरान सलीके के परिधानों को भी प्राथमिकता दी जाती है.

सर्वे में हिस्सा लेने वाले यूएई के 79 फीसदी से ज्यादा लोगों ने माना कि वे रमजान में ज्यादा पैसा खर्च करते हैं
सर्वे में हिस्सा लेने वाले यूएई के 79 फीसदी से ज्यादा लोगों ने माना कि वे रमजान में ज्यादा पैसा खर्च करते हैंतस्वीर: Giuseppe CacaceAFP/Getty Images

रमजान में बढ़ती इनफ्लुएंसर्स की भूमिका

सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर क्या हैं? असल में, यह ऐसे इंसान हैं, जिनके सोशल मीडिया पर काफी फॉलोअर्स हों और जो अपने ‘फॉलोअर्स' की राय पर असर करते हुए उनके फैसलों को प्रभावित करने में सक्षम हों.

वेल्स यूनिवर्सिटी वेल्स में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर और ‘इस्लामी एल्गोरिदम' पुस्तक के लेखक गैरी बंट डीडब्ल्यू को बताते हैं, " (इनफ्लुएंसर) की धार्मिक चर्चाएं, धार्मिक परंपराओं से लेकर उत्पादों को लेकर सुझाव और रमजान के दौरान कौन सा शो देखना चाहिए, तक फैली हो सकती हैं. और अन्य क्षेत्रों की तरह मुस्लिम इनफ्लुएंसर शायद अपने खुद के उत्पादों को बढ़ावा देने के साथ ही दूसरों के उत्पादों का प्रचार भी करें."

बंट ने आगे कहा, "1990 के दशक से ही रमजान हमेशा से ही कई पक्षों के लिए एक केंद्र बिंदु रहा है. वर्तमान में मध्य पूर्व के देशों में इनफ्लुएंसर की सक्रियता खासी बढ़ी है तो इसके पीछे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के विस्तार, घटती डिजिटल खाई और विशेष रूप से टिकटॉक की ग्रोथ मुख्य कारक हैं."

खाड़ी देशों के इनफ्लुएंसर की मुख्य थीम अमूमन कुछ विशेष विषयों के इर्दगिर्द केंद्रित होती है. इनमें इफ्तारी की वह मेज भी शामिल होती है, जिसे बड़े करीने से सजाया जाता है, जिस पर सूर्यास्त के बाद परिवारजन साथ बैठकर अपना रोजा खोलते हैं. या फिर वे स्थानीय फैशन और ब्यूटी ब्रांड के रमजान विशेष कलेक्शन को दिखाते हैं. इस कोशिश में साथ मिलकर रमजान के स्पेशल कलेक्शन को दिखाना भी शामिल होता है. फूड इनफ्लुएंसर रमजान के दौरान स्पेशल लंच आदि के लिए बेहतर विकल्प या रेस्टोरेंट का भी प्रमोशन करते हैं.

लेकिन जैसे कुछ यूरोपीय लोग क्रिसमस को उपभोक्तावादी कलेवर देने की आलोचना करते हैं, वैसे ही मध्यपूर्व के देशों में भी रमजान के दौरान बढ़ते  उपभोक्तावाद के चलन के प्रति डर बढ़ रहा है.

वेस्ट बैंक स्थित रमल्ला निवासी और समाजशास्त्र के लेक्चरर इयाद बरहूथी ने डीडब्ल्यू को बताया कि अधिकांस इनफ्लुएंसर्स की वजह से धार्मिक आस्था में वृद्धि नहीं हुई है. इसके बजाय रमजान से जुड़ी परंपराएं अब लंबी, कम सहज और अधिक दिखावटी होती जा रही हैं.

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कतर की हमद बिन खलीफा यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर और डिजिटल मानविकी के विशेषज्ञ मार्क ओवेन जॉन्स इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि रमजान, इनफ्लुएंसर और बाजार के बीच एक कड़ी जुड़ी है, जिससे व्यावसायीकरण अब बढ़ गया है. उनका कहना है कि रमजान का व्यावसायीकरण भले ही कोई नई बात नहीं, लेकिन इसका तौर-तरीका अब जरूर बदल गया है. उनका यह भी मानना है कि इसके विरोध में कुछ स्वर मुखर हो रहे हैं, जिनकी पड़ताल कमेंट सेक्शन में की गई टिप्पणियों से की जा सकती है, जिसमें तमाम लोग धार्मिक आयोजनों के व्यावसायीकरण का विरोध जताते हैं.

गाजा में चल रहे संघर्ष ने भी लोगों का मिजाज बिगाड़ा है. इससे लजीज डिनर और डिजाइनर वस्तुओं को बढ़ावा दे रहे इनफ्लुएंसर्स के प्रति नाराज होने के लिए लोगों को वजह दी है.ओवेन जोंस ने डीडब्ल्यू से कहा, "जो कुछ गाजा में हो रहा है, उसे देखते हुए निःसंदेह लोगों पर दबाव बढ़ा है कि वे भोग-विलास के प्रदर्शन से परहेज करें.”

रमजान के जरिए समाज परिवर्तन लाने की कोशिश?

इन सबके साथ-साथ यह भी प्रमाणित है कि इनफ्लुएंसर्स रमजान के दौरान कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी ला सकते हैं. अकादमिक जगत से जुड़े लोगों की राय में वे कुछ तौर-तरीकों से इस धार्मिक आयोजन के रिवाजों में बदलाव ला सकते हैं.

उदाहरण के तौर पर बीते कुछ वर्षों में सामुदायिक भोज के अवसर पर सिर्फ महिलाएं ही भोजन पकाती थीं लेकिन अब इसमें बदलाव हो रहा है. दुबई स्थित सोशल मीडिया मार्केटिंग एजेंसी सोशलाइज की प्रबंध निदेशक ऐलिध स्माइली के मुताबिक, "हम यहां देख रहे हैं कि रमजान के दौरान अब किचन में पिता और पुरुष शेफ भी दिखाते हैं जो घर की सजावट से लेकर अन्य कामों में भी मदद करते हैं. कुछ वर्षों पहले तक ऐसा नहीं था."

2022 में उन्होंने लिखा, "ब्रांड्स जाहिर तौर पर रमजान के पुराने और पारंपरिक तरीकों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ रहे हैं."

रमजान के दौरान खाने की बर्बादी को कम करने के लिए चलाए जाने वाले अभियान में भी इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका बढ़ी है. दो वर्षों से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, लेबनानी शेफ लेयला फतल्लाह के साथ मिलकर त्योहारों के दौरान भोजन की बर्बादी को कम करने के प्रति जागरूकता पर काम कर रहा है. वर्ष 2023 में ओमान में इन्फ्लुएंसर्स के साथ मिलकर "बी माइंडफुल" नामक का एक अभियान चलाया गया, जिसमें रमजान के दौरान भोजन की आवश्यकता को लेकर लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की गई.

सोशल मीडिया के चेहरे सकारात्मक बदलाव लाने में भी सक्षम
सोशल मीडिया के चेहरे सकारात्मक बदलाव लाने में भी सक्षमतस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS

विश्लेषक यह भी कहते हैं कि इनफ्लुएंसर युवा मुसलमानों को धार्मिक परंपराओं से जोड़ने में भी मदद कर रहे हैं. अप्रैल 2002 में डिजिटल इस्लाम और मुस्लिम मिलेनियल शीर्षक से हुए एक अध्ययन के लेखकों ने बताया कि हाल के वर्षों में मुस्लिम जगत के पटल पर सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर की एक नई पीढ़ी उभरी है, "वे पश्चिम से पढ़े हैं, अनोखे किस्सागो हैं और डिजिटल मीडिया प्रोडक्शन में काफी निपुण हैं."

अध्ययन में इस नई पीढ़ी को "ग्लोबल अर्बन मुस्लिम" या 'गैमीज' कहा गया है और यह तर्क दिया गया है कि जिस तरह से वे रमजान और अपने धर्म के प्रति लोगों से बातचीत करते हैं, वह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.

शोधकर्ता ने लिखा, फतवे या जबरदस्ती के संदेश के बजाय वे कहानी कहने के तरीके अधिक ध्यान देते हैं. गैमीज अब भी इबादत के मामलों में रुचि रखते हैं जैसे कि रमजान के दौरान किस तरह से नमाज़ पढ़े और रोजा रखें. इसके साथ ही वे "जानकारीपरक और मीडिया इकोसिस्टम में रहते हैं जो लोगों को जोड़ने, बातचीत करने, तात्कालिक और व्यक्तिगत रूप से जुड़े रहने पर केंद्रित है."

अध्ययन का यह निष्कर्ष निकला गया है कि इन्फ्लुएंसर न केवल बाजारीकरण को बढ़ा रहे हैं बल्कि रमजान की आदतों मैं भी बदलाव ला रहे हैं, वह सांस्कृतिक बदलाव के लिए एक संभावित संकेत भी हो सकते हैं."