सिंगापुर भी है मच्छरों से परेशान
१३ फ़रवरी २०१८मच्छर के काटने से अगर थोड़े बहुत चकत्ते पड़ते, तो बात अलग थी. लेकिन मच्छर अपने साथ मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियां ले कर आते हैं. इसलिए इनसे निपटना बेहद जरूरी हो जाता है. भारत में हर साल मलेरिया के कम से कम दस लाख मामले सामने आते हैं. जैसे ही तापमान मच्छरों के प्रजनन के अनुरूप होता है, इनकी संख्या तेजी से बढ़ जाती है.
ऐसे में जरूरी है कि इन्हें पनपने ही ना दिया जाए. ज्यादातर मच्छर ठहरे हुए पानी में पनपते हैं. ऐसा भी नहीं है कि ये केवल गंदगी के कारण फैलते हैं. घर में बाल्टियों में मौजूद साफ पानी में भी ये अंडे दे सकते हैं. इसलिए अपने इर्दगिर्द इस बात का ध्यान रखें कि कहीं भी पानी ना रुका हो.
मच्छरों से परेशान सिर्फ गरीब देश ही नहीं हैं बल्कि दुनिया के सबसे रईस देशों में से एक सिंगापुर में उनका प्रकोप खूब है. वहां मच्छरों को भगाने के लिए हर इलाके में हफ्ते में एक बार दवाओं का छिड़काव किया जाता है. हालांकि कुछ लोगों को डर है कि ये रासायनिक दवाएं नुकसानदेह हैं लेकिन दवा छिड़कने वाले कर्मचारियों का दावा है कि मच्छरों के खिलाफ वे बहुत प्रभावी हैं.
छिड़काव की धुंध में छुपे खेल के मैदान, गलियां और पूल सिंगापुर में आम दृश्य है. लोगों को जागरूक करने के लिए जगह जगह पोस्टर भी लगाए गए हैं. एक पोस्टर पर लिखा है, "इससे पहले कि यह आपको मार दे, इसे रोकिए."
साथ ही एक बिंदास गीत भी बनाया गया है, जो अक्सर सिंगापुर में टीवी पर चलता दिखता है. गाना मस्खरा सा है लेकिन संदेश गंभीर है. जिस तरह से भारत में बॉलीवुड के गाने लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं, ऐसे ही सिंगापुर के पूरी आबादी पर इस गाने का जादू चलाने की योजना है.
जागरूकता अभियान के तहत घर घर जाकर डेंगू को रोकने के उपायों पर भी जानकारी दी जाती है. मच्छररोधी पुलिस लोगों के घरों में जा कर देखती है कि कहीं पानी तो नहीं ठहरा हुआ है. सरकारी इंस्पेक्टर को अगर किसी घर में मच्छर मिल जाए, तो 10 हजार रुपये का जुर्माना लगता है. सिंगापुर सरकार इस पूरे अभियान पर सालाना करोड़ों डॉलर खर्च कर रही है ताकि वहां के लोग स्वस्थ रह सकें.
सांड्रा रात्सोव