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परमाणु ऊर्जा संयंत्र में किसी तरह की दुर्घटना होने पर पड़ोसी देशों के प्रभावित होने का खतरा रहता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इन संयंत्रों के इस्तेमाल का फैसला सिर्फ एक देश करे या फिर अपने पड़ोसियों से मिलकर करे.
वर्ष 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे के बाद, पूरे यूरोप में रेडियोधर्मी विकिरण फैल गई थी. हादसे के 35 साल बाद भी कुछ कचरा मौजूद है. इस हादसे के बाद परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर फिर से मूल्यांकन किया गया. मौजूदा परमाणु संयंत्रों को लेकर कठोर नियम बनाए गए. चेर्नोबिल हादसे के ठीक 25 साल बाद जापान के फुकुशिमा में परमाणु हादसा हुआ. इस हादसे ने दुनिया के कई देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए या इसे चरणबद्ध तरीके से बंद कर देना चाहिए.
जर्मनी ने 2022 तक अपने देश में चल रहे सभी परमाणु संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का फैसला लिया है. बेल्जियम ने भी कहा कि वह 2025 तक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को पूरी तरह बंद कर देगा. हालांकि, फुकुशिमा हादसे के एक दशक बाद भी चीन, फ्रांस और अमेरिका सहित कई अन्य देश परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भर हैं. इन देशों में कई ऐसे संयंत्र हैं जिनका निर्माण 1960 और 70 के दशक में किया गया था.
फ्रांस सबसे ज्यादा परमाणु ऊर्जा पर निर्भर है. यहां 70 फीसदी बिजली परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होती है. उसने फरवरी 2021 में पुष्टि की कि उसने अपने 32 सबसे पुराने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि को और 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया है. इस्तेमाल की अवधि बढ़ने के साथ बढ़ते सुरक्षा जोखिमों के कारण यह सवाल उठने लगा कि क्या कोई भी देश खुद से ऐसे फैसले ले सकता है या उसे अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर ये फैसले लेने चाहिए.
जब फ्रांस ने फरवरी 2020 में जर्मन सीमा पर फेसेनहाइम में अपने सबसे पुराने परमाणु संयंत्र में रिएक्टर कवर और अन्य कमियों की वजह से एक रिएक्टर को बंद कर दिया था, तो जर्मनी की तत्कालीन पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने परमाणु नीति को प्रभावित करने की जर्मनी की इच्छा की पुष्टि की थी. उन्होंने कहा था, "हम अपने पड़ोसी देशों में, परमाणु ऊर्जा से दूर जाने के अभियान के अपने प्रयासों में कमी नहीं आने देंगे. जर्मनी में हर हाल में परमाणु संयंत्रों को बंद किया जाएगा."
द एथिक्स ऑफ न्यूक्लियर पावर के सह-संपादक और नीदरलैंड में डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में ऊर्जा और जलवायु नीति के प्रोफेसर बेहनाम ताएबी कहते हैं कि कई ऐसी संधियां और समझौते हैं जिनके तहत देशों को एक-दूसरे से परामर्श लेना चाहिए. हालांकि, देश की सीमाओं के पार ऐसे स्थानीय समुदायों के साथ विशेष रूप से बातचीत करने के लिए कोई ढांचा नहीं है जो परमाणु दुर्घटना से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं.
साल 1991 में देश की सीमा से बाहर पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन पर एस्पो सम्मेलन हुआ था. इसके तहत, सम्मेलन में समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को अपनी सीमा से बाहर परमाणु हादसे के प्रभावों को रोकना, कम करना और नियंत्रित करना जरूरी है. वहीं, 1998 में आरहुस सम्मेलन हुआ था जो रियो घोषणा के सिद्धांत 10 को लागू करता है. इसमें कहा गया है कि "पर्यावरण संबंधी मामलों को सभी संबंधित नागरिकों की भागीदारी के साथ सबसे अच्छे तरीके से नियंत्रित किया जाता है."
ताएबी के अनुसार, ये सम्मेलन देशों के बीच जोखिमों को स्थानांतरित करने के बारे में हैं और वे पड़ोसी देशों की सीमाओं पर रहने स्थानीय समुदायों के बारे में कुछ नहीं कहते हैं. इसमें यह भी साफ तौर पर नहीं बताया गया है कि इन स्थानीय समुदायों से सलाह लेनी है या नहीं. ताएबी का कहना है कि परमाणु ऊर्जा विकास से संबंधित ऐसी कोई बाध्यकारी प्रक्रिया नहीं है और ऐसा कोई ढांचा नहीं है जो फ्रांस को सीमा पार के गांव और शहरों के साथ संवाद करने और परामर्श करने के लिए मजबूर कर सके.
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पास राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा नियामकों पर केंद्रित दिशानिर्देश हैं. हालांकि, यह प्रत्येक देश पर निर्भर करता है कि इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय कैसे लिया जाए. फिनलैंड में लैपलैंड विश्वविद्यालय में आर्कटिक कानून के रिसर्च प्रोफेसर स्टेफान किर्षनर का कहना है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय और यूरोपीय संधियों के तहत सीमा पार प्रभावित होने वाले संभावित समुदायों से परामर्श किया जा सकता है.
बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली का हिस्सा
प्रोफेसर स्टेफान किर्षनर कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से, बेहतर सहयोग से ही अच्छा काम हो सकता है, खासकर यूरोप में जहां एक देश की सीमाएं कई अन्य देशों से जुड़ी हुई हैं." डीडब्ल्यू को दिए बयान में, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की परमाणु ऊर्जा एजेंसी (एनईए) ने कहा कि वैश्विक ऊर्जा प्राधिकरणों ने पिछले दशक में 'संयुक्त कार्रवाई' का एक उच्च स्तर बनाया है, ताकि पहले से अधिक परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इन प्राधिकरणों में वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूक्लियर ऑपरेटर्स भी शामिल हैं. एनईए ने कहा, "दुनिया भर में सामान्य स्तर की समझ और कार्यप्रणाली है. इससे सभी देशों की क्षमता बढ़ी है, ताकि चालू संयंत्रों के लिए उच्च स्तर की परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
डच सेफ्टी बोर्ड स्वतंत्र रूप से घटनाओं या दुर्घटनाओं के कारणों की जांच करता है. जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम का जिक्र करते हुए इस बोर्ड ने 2018 में कहा था कि ‘सीमा पार सहयोग कागजों' पर है, लेकिन अगर सच में कोई परमाणु दुर्घटना होती है, तो संभवत: यह सहयोग उतना प्रभावी नहीं होगा.
ऑस्ट्रिया ने चेक गणराज्य के टेमेलिन परमाणु संयंत्र का विरोध 10 वर्षों तक किया था. यह संयंत्र ऑस्ट्रिया की सीमा के नजदीक वर्ष 2000 में स्थापित गया था. कुछ नेताओं ने चेतावनी दी थी कि चेक गणराज्य को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया जाएगा. हालांकि, बाद में सुरक्षा उपायों को बेहतर और कड़ा करने की सहमति बनने के बाद मामला शांत हुआ. इस विवाद को सुलझाने के लिए यूरोपीय आयोग को आगे आना पड़ा था.
बेहनाम ताएबी के अनुसार, सीमा पार परामर्श अक्सर राष्ट्रीय सरकारों तक सीमित होता है, क्योंकि समुदायों की जगह देश ही इन सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं. वह कहते हैं, "सम्मेलन में या फैसले लेने के समय स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए. हम आपातकालीन प्रतिक्रियाओं के संबंध में सीमा पार रहने वाले समुदायों से परामर्श कर सकते हैं. अगर कोई दुर्घटना होती है, तो यह पहल काम आएगी."
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अपनी सीमाओं पर परमाणु संयंत्रों का विरोध करने वाले समुदायों को अक्सर नियामकों और नीति-निर्माताओं या यूरोपीय संघ की अदालतों में जाने के लिए छोड़ दिया जाता है. 2016 में जर्मनी, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड और बेल्जियम में सीमा के पास रहने वाले समुदायों ने रिएक्टरों में दरार पाए जाने के बाद लीग के पास टिहांजे 2 परमाणु संयंत्र की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए यूरोपीय संसद में याचिका दायर की थी.
याचिकाकर्ता "इस बात को लेकर चिंतित थे कि केवल संबंधित देश ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र को बंद करने का निर्णय लेता है." हालांकि, यूरोपीय संघ इस बात से सहमत नहीं हुआ कि संयंत्र को बंद कर देना चाहिए. कुछ एक्टिविस्ट बेल्जियम के संयंत्रों को बंद कराने के लिए यूरोपीय अदालत पहुंचे थे. इस मामले में भी संयंत्र बंद नहीं करने का फैसला सुनाया गया.
बेल्जियम के संयंत्रों को बंद करने को लेकर दायर की याचिका के बाद, यूरोपीय आयोग ने राष्ट्रीय बनाम सीमावर्ती क्षेत्राधिकार के मुद्दे अपनी प्रतिक्रिया दी. आयोग ने 2018 में कहा, "परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संचालित करने का निर्णय उस देश के पास रहता है. वह देश इसके सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है." इसी निर्णय को आधार बनाते हुए फ्रांस ने अपने पुराने संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि बढ़ा दी है. साथ ही, राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने हाल ही में घोषणा की है कि CO2 के उत्सर्जन को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता को लेकर फ्रांस छोटे माड्यूलर रिएक्टर लगाएगा.
फ्रांस के परमाणु बिजली घर
2020 में फ्रांस में परमाणु ऊर्जा उत्पादन 1995 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गया है. 2021 विश्व परमाणु उद्योग स्थिति की रिपोर्ट के अनुसार, देश में परमाणु ऊर्जा की अपेक्षा नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. वहीं, ओईसीडी की परमाणु ऊर्जा एजेंसी और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने बताया है कि पुराने परमाणु संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि को बढ़ाना ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने का प्रभावी उपाय है. एनईए ने एक बयान में डीडब्ल्यू को बताया, "मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का लगातार संचालन कई क्षेत्रों में कम कार्बन उत्पादन के लिए सबसे अधिक प्रभावी उपायों में से एक है."
इस मामले पर, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा कि वह वह परमाणु को अपनी जलवायु महत्वाकांक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए फ्रांस के अधिकार का सम्मान करते हैं. वहीं, जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा कि जर्मनी यूरोपीय आयोग द्वारा ‘हरित निवेश' के रूप में परमाणु को मंजूरी देने के लिए फ्रांस के दबाव का विरोध करेगा.
जर्मनी की सीमा के नजदीक पोलैंड ने 2021 की शुरुआत में दो जगहों पर छह रिएक्टरों के निर्माण की मंजूरी दी है. इसमें एक रिएक्टर बाल्टिक सागर के किनारे बनाया जाएगा जो जर्मनी से महज 150 किलोमीटर दूर है.
पर्यावरण पर जर्मन संसद बुंडेस्टाग की कमेटी की अध्यक्ष सिल्विया कोटिंग-ऊल ने मई में डीडब्ल्यू को बताया था, "इस बात की 20 फीसदी संभावना है कि अगर परमाणु ऊर्जा संयंत्र में किसी तरह का हादसा होता है, तो जर्मनी उससे प्रभावित होगा. ‘सबसे खराब स्थिति' में 18 लाख जर्मन प्रभावित होंगे. इसका असर बर्लिन में भी होगा. वहीं, पोलैंड का कहना है कि संयंत्र पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे.