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क्या-क्या बहाएगा मोदी का सूखे को हरा करने का सपना

विश्वरत्न२ सितम्बर २०१६

महत्वाकांक्षी सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई परियोजना के पहले चरण का शुभारम्भ हो चुका है. इस परियोजना के माध्यम से सौराष्ट्र के 11 सूखा प्रभावित जिलों में पानी की आपूर्ति होगी.

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Indien erneuerbare Energie Wasserkraftwerk in Narmada
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई परियोजना यानी साउनी परियोजना सूखा प्रभावित सौराष्ट्र के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस योजना के तहत सरदार सरोवर बांध के अतिरिक्त पानी से क्षेत्र के 115 बांधों को भरा जाएगा.

परियोजना के अन्तर्गत नर्मदा से सूखाग्रस्त सौराष्ट्र के 115 बांधों को पानी से भरा जाएगा. पहले चरण में कम से कम 10 बांधों को भरा जाएगा. सिंचाई और पीने के पानी की कमी झेलने वाले राजकोट, जामनगर और मोरबी के बांधों और जलाशयों में नर्मदा का पानी पहुंचाया जाएगा. 12 हजार करोड़ रुपये की यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना मानी जाती है. इस परियोजना की घोषणा 2012 में की गई थी. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. परियोजना के पहले चरण की शुरुआत करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा, “एक समय कच्छ के लोगों को पीने का पानी मिलना भी मुश्किल हो रहा था, लेकिन अब नर्मदा परियोजना की वजह से उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सकेगा.” पानी के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि देश के किसी भी हिस्से में अगर किसान को पानी मिल जाये तो वह बहुत कुछ करके दिखा सकता है.

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क्यों खास है यह प्रोजेक्ट

सरदार सरोवर बांध के माध्यम से नर्मदा नदी का पानी इस परियोजना के काम आएगा. इस प्रोजेक्ट के तहत 1,126 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई जाएगी, जिससे नर्मदा का पानी सौराष्ट्र के 115 बांधों तक पहुंचाया जा सके. इस योजना के तहत 57 किमी की पाइपलाइन बनकर तैयार हो चुकी है जो सौराष्ट्र क्षेत्र के सूखा प्रभावित तीन जिलों के 10 बांधों तक पानी पहुंचाएगी. परियोजना पूरी होने के बाद किसानों को 10 लाख 22 हजार एकड़ भूमि को खेती के लिए पानी मिलेगा. सरकार का दावा है कि लगभग 30 लाख एकड़ फुट पानी जल बांध से बहकर समुद्र में चला जाता है. बेकार चले जाने वाले इसी पानी में से ही 10 लाख एकड़ फीट पानी को मोड़ कर बांधों और जलाशय में पहुंचाने की योजना है. राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपानी का कहना है कि सरकार ने सौराष्ट्र क्षेत्र के 115 बांधों में पानी भरने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा, “इससे चार लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई होगी और काफी हद तक क्षेत्र में जल संकट की समस्या का समाधान होगा.”

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चिंताएं भी हैं

इसमें संदेह नहीं कि साउनी परियोजना से सौराष्ट्र की तस्वीर बदल जाएगी. औसत से भी कम वर्षा वाले सौराष्ट्र में साल भर बनी रहने वाली पानी की समस्या खत्म हो सकती है. लेकिन यह तभी संभव हो पाया है जब सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को बढ़ाये जाने को मंजूरी मिली. इस पर पर्यावरण जानकारों के साथ नदी किनारे रहने वालों में भी चिंता है. नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े राहुल यादव कहते हैं कि पर्यावरण की कीमत पर खुशहाली लाने का सपना देखने वाली सरकारों को लोगों की चिंता नहीं है. नर्मदा बचाओं आन्दोलन की अगुआई करने वाली मेधा पाटकर का मानना है कि नर्मदा के साथ की गई छेड़छाड़ का नतीजा है कि गुजरात के भुज में 30 किलो मीटर अंदर तक समुद्र घुस आया है वहां का पानी खारा हो गया है. उनके अनुसार भविष्य में हालात और बुरे होंगे. जानकारों का मानना है कि बांध की वजह से लोग ही नहीं बल्कि लाखों पेड़ भी प्रभावित होंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.

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इसका सबसे ज्यादा फायदा गुजरात को होगा लेकिन नुकसान मध्यप्रदेश को उठाना पड़ेगा. गुजरात के अधिकांश गावों में पीने का पानी उपलब्ध होगा. बांध से पैदा होने वाली 1,450 मेगावॉट बिजली में से 16 फीसदी बिजली भी गुजरात को मिलेगी. यानी गुजरात को चौतरफा फायदा. इसके ठीक उलट मध्यप्रदेश को 877 मेगावॉट बिजली के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. इस परियोजना में मध्य प्रदेश के सूखाग्रस्त इलाकों की पूरी तरह अनदेखी की गई है. राहुल यादव कहते हैं कि पूरी परियोजना ही प्रदेश के विस्थापितों की कीमत पर खड़ी हो रही है. प्रभावित परिवारों में ज्यादातर गरीब आदिवासी, छोटे-मझोले किसान, दुकानदार, मछुआरे, कुम्हार हैं, जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार के खिलाफ आवाज उठा सकें.