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समानतारवांडा

इस गांव में कैसे साथ रहते हैं मारने वाले-पीड़ितों के परिवार

इसाक मुगाबे
१८ अप्रैल २०२४

आज भी लोग ऐसे गांवों में रह रहे हैं जहां पीड़ित अपराधियों के परिवार साथ रह कर अपने गिले-शिकवे दूर कर रहे हैं. हालांकि रवांडावासी आज भी नरसंहार की यादों के साथ संघर्ष कर रहे हैं.

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Ruanda | Mbyo village of reconciliation
नरसंहार से गुजर चुके लोगों को उन लोगों के साथ गिले-शिकवे दूर करने में समय लगा जिन्होंने उनके परिवार के सदस्यों की ह्त्या कीतस्वीर: Isaac Mugabi/DW

जब 7 अप्रैल, 1994 को तुत्सी लोगों के खिलाफ नरसंहार  शुरू हुआ, तो हुतु समुदाय के वालेकाजिमुंगु फ्रेडरिक और नकुंडिये थारसिएन, ने अपने तुत्सी पड़ोसियों को मार डाला, जिनके साथ वे रवांडा में कई वर्षों तक शांति से रहते आ रहे थे. अब फ्रेडरिक की उम्र 56 साल और थारसिएन की उम्र 74 साल है. ये लोग नरसंहार झेल चुके उन्हीं लोगों के साथ रहते हैं जिनके परिवार के सदस्यों को उन्होंने मार डाला था.

दोनों को दोषी ठहराया गया था और लंबी जेल की सजा भी सुनाई गई थी, लेकिन माफी मांगने के बाद, उन्हें केवल नौ साल की सजा हुई और फिर रिहा कर दिया गया.

वे राजधानी किगाली से 40 किलोमीटर दूर गांव मब्यो में रहते हैं. यह छह ‘सुलह गांवों' में से एक है जहां नरसंहार के अपराधी और उससे बचे लोग एक साथ रहते हुए अपने अतीत को समेटने का प्रयास करते हैं.

लगभग 400 लोग, जिनमें हुतु और तुत्सी दोनों समुदाय शामिल हैं, खेतों से सटे गांव में रहते हैं. यह गांव रवांडा के साधारण गांवों की तर्ज पर ही बसाया गया है. 

राष्ट्रपति पॉल कागामे के विद्रोही समूह, तुत्सी के नेतृत्व वाले रवांडा पैट्रियोटिक फ्रंट ने 100 दिनों के बाद नरसंहार खत्म किया, सत्ता पर कब्जा किया और तब से रवांडा पर बिना किसी चुनौती या विपक्ष के शासन कर रहे हैं.

एक नई पहचान

थारसिएन ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया है और उन बचे लोगों से माफी मांगी है जिनके परिवार के सदस्यों को मैंने मार डाला था, और अब हम लोग शांति से रह रहे हैं. हम अब खुद को नस्ली तौर पर अलग नहीं मानते हैं.”

थारसिएन ने कहा, "किसी ने मुझे सुलह करने के लिए मजबूर नहीं किया. जो लोग रवांडा के बाहर रहते हैं, जो सोचते हैं कि हमें तुत्सी लोगों के साथ सुलह करने के लिए मजबूर किया गया, वे रवांडा की छवि खराब करना चाहते हैं.”

Reclaiming History - Völkermord in Ruanda 1994
रवांडा में तुत्सी लोगों के खिलाफ नरसंहार के 30 साल पूरे हो गए हैंतस्वीर: Ben Curtis/AP Photo/picture alliance

आगे थारसिएन ने बताया, "जेल में रहते हुए, मैंने अनास्तासी को एक पत्र भेजा था जिसमें मैंने बताया था कि उनके परिवार के सदस्यों को मैंने कैसे मारा और फिर मैंने उसके लिए माफी भी मांगी. उन अपराधियों ने, जिन्होंने अब तक नरसंहार में अपनी भूमिका स्वीकार करने से इनकार किया है, उन्हें यह कबूल करना चाहिए, और तब शायद वे भी रिहा हो जाएं."

थारसिएन की तरह फ्रेडरिक ने भी माफी मांगी और जेल से रिहा हो गए. अब वो सात बच्चों के पिता हैं. हालांकि, वह पूर्व सरकार को दोषी मानते हैं जिसने उन जैसे नागरिकों को अपने तुत्सी पड़ोसियों को मारने के लिए प्रेरित किया.

फ्रेडरिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "बचपन से हमें बताया गया था कि तुत्सी हमारे दुश्मन हैं और उन्होंने हुतु पर जबरन कब्जा जमाए रखा. इसलिए, जब नरसंहार शुरू हुआ, तो हमने भी तुत्सी समुदाय के लोगों को मारा."

एक कठिन सुलह

यूसेन्गिमुरेमी सिलास और मुकामुसोनी अनास्तासी नरसंहार से गुजर चुके उन दो लोगों के पड़ोसी जिन्होंने उनके परिवार के सदस्यों को मार डाला. वो कहते हैं कि उन्होंने अपने परिवार के हत्यारों के साथ आखिरकार सुलह कर ही ली, सरकार की मशक्कतों की बदौलत.

अनास्तासी को आज भी उन असहाय तुत्सियों की याद आती है जिन्हें उन्होंने 1994 में, जब वह 20 साल की थी, मब्यो गांव के पास सड़कों पर देखा था.

 Reclaiming History
तुत्सी और हुतु समुदाय फिर साथ रह कर इतिहास रच रहे हैं.तस्वीर: DW

थारसिएन ने अनास्तासी के पहले पति की हत्या की थी, लेकिन अब वे पड़ोसी हैं और जरूरत पड़ने  पर एक-दूसरे की मदद भी करते हैं. अनास्तासी ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब भी मुझे जरूरत होती है, थारसिएन हमेशा मेरी मदद करते हैं.”

उन्होंने कहा, "मैं हुतु लोगों से इस हद तक नफरत करती थी कि मैं उनसे मिलने के लिए तैयार ही नहीं थी.” पहले, अनास्तासी को यह स्वीकार नहीं था कि अपराधी समाज में वापस लौट आएं. हालांकि अब उन्हें उन सभी के साथ मब्यो रेकन्सीलिएशन विलेज में रहना होगा, जिसे कुछ रवांडावासी इस उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि पीड़ित और उनके दोषी नरसंहार के 30 साल बाद भी कैसे शांतिपूर्वक एक साथ में रह सकते हैं.

अनास्तासी की तरह, सिलास ने डीडब्ल्यू को बताया कि शुरुआत में, उन अपराधियों को माफ करना कठिन था जिन्होंने नरसंहार के दौरान उसके पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या की थी.

समापन की उम्मीद

सिलास ने कहा, "शुरुआत में, हम यह सुनकर डर गए थे कि नरसंहार के अपराधी समाज में लौट आएंगे. हमारे पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि कई लोगों ने हत्याओं में अपनी भागीदारी के बारे में पूरी सच्चाई नहीं बताई थी. हालांकि, ये बात भी सही है कि हमें ठीक होने के लिए किसी तरह के समापन की जरूरत होती है.

सिलास ने डीडब्ल्यू को बताया, "सरकार ने हमें आश्वस्त किया कि सभी लोग एक जैसे पैदा हुए हैं, और धीरे-धीरे, हमने एक साथ रहना सीख लिया." उन्होंने कहा कि दोषियों के साथ रहने में उन्हें हिचकिचाहट थी. सिलास ने कहा,"घाव भरने की ये प्रक्रिया कठिन थी, लेकिन अपराधियों द्वारा माफी मांगने के बाद हमने समझौता कर लिया. उन्होंने हमें वो सामूहिक कब्रें दिखाईं जहां उन्होंने हमारे प्रियजनों को मार कर फेंक दिया था, और हमने अंततः उन्हें माफ कर दिए.”

रवांडा ने जनसंहार की कड़वाहट को कैसे हराया

अनास्तासी ने इस बात पर जोर दिया कि वह अब थारसिएन और गांव में अन्य लोगों से अच्छी तरह बात करती हैं. उनके लिए, नस्ली पहचान अर्थहीन हैं. उन्होंने कहा, "मैं उन्हें उन हुतु के रूप में नहीं देखती हूं जिन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों को मार डाला.”

अतीत से संघर्ष

भले ही रवांडा की सुलह की कहानी को नकली कहे जाने की वजह से काफी आलोचना का सामना करना पड़ता है, इसके बावजूद यह कहीं ना कहीं काम कर रही है. हालांकि रवांडावासी आज भी नरसंहार की यादों के साथ संघर्ष कर रहे हैं.

एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिल क्लार्क ने डीडब्ल्यू को बताया कि रवांडा ने नरसंहार के बाद सुलह में काफी प्रगति की है. "रवांडा की प्रगति साफ दिखाई देती है जब आप इस बात पर विचार करते हैं कि सैकड़ों-हजारों दोषी नरसंहार अपराधी आज वापस उसी समाज का हिस्सा हैं जहां उन्होंने नरसंहार को अंजाम दिया था, और वो आज नरसंहार से गुजरे लोगों के साथ रह रहे हैं, और इनमें से अधिकांश समुदाय शांतिपूर्ण, स्थिर और उत्पादक हैं.”

Reclaiming History - Völkermord in Ruanda 1994
किगाली लिबरेशन की छठी वर्षगांठ पर, रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे 4 जुलाई 2000 को किगाली के एक स्टेडियम में एक सैन्य समारोह मेंतस्वीर: Marco Longari/dpa/picture alliance

 

हालांकि, क्लार्क का कहना है कि इन मॉडल सुलह गांवों पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जा रहा है. सरकार इस से विदेशियों को दिखाना चाहती है कि रवांडा ने इस घटना के बाद कितनी प्रगति कर ली है. "ये आवश्यक भी नहीं हैं क्योंकि सुलह के इस मॉडल में प्रगति देश के लगभग किसी भी समुदाय में दिखाई देती है. यह बाहरी लोगों को दिखाने के लिए नहीं बल्कि यह दैनिक जीवन का एक हिस्सा है.”

क्लार्क के अनुसार, ज्यादा महत्वपूर्ण कहानी यह है कि कैसे सैकड़ों हजारों दोषी नरसंहार अपने घरेलू समुदायों में लौट आए हैं और अपने जीवन का पुनर्निर्माण कर रहे हैं, साथ ही साथ उन समुदायों के विकास में योगदान कर रहे हैं.