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भारत भी कर ले तबाही की तैयारीः रिपोर्ट

अविनाश द्विवेदी
१८ अगस्त २०२१

नासा ने IPCC रिपोर्ट को आधार बनाकर किए गए विश्लेषण के बाद चेतावनी दी है कि अगर समुद्री जलस्तर मौजूदा गति से बढ़ता रहा तो सदी के अंत तक मुंबई, चेन्नई, कोच्चि और विशाखापट्टनम जैसे कई शहर तीन फीट तक पानी में डूब सकते हैं.

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तस्वीर: picture alliance/AP Photo

ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते आने वाले सालों में भारत को कई पर्यावरणीय मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. सबसे बड़ा खतरा बढ़ते समुद्री स्तर के चलते देश के 12 बड़े तटीय शहरों के डूबने का है. जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की नई रिपोर्ट में भारत को लेकर गंभीर चेतावनी दी गई है.

भारत में पहले ही अचानक बाढ़ जैसी कई अप्रत्याशित पर्यावरणीय घटनाएं हो रही हैं. इस बीच रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर समुद्री जल स्तर मौजूदा गति से बढ़ता रहा तो इस सदी के अंत तक कई शहरों के डूबने का खतरा बढ़ जाएगा. नासा ने IPCC रिपोर्ट को आधार बनाकर यह अनुमान लगाया है कि भारत के सबसे बड़े शहरों में से कई जैसे मुंबई, चेन्नै, कोच्चि और विशाखापट्टनम भी डूबने वाले इन शहरों में शामिल होंगे. इसके अलावा कांडला, ओखा, भावनगर, मोरमुगाओ, मंगलुरु, पारादीप, खिरिदपुर और तूतीकोरिन भी पानी में डूब जाएंगे.

घंटों में महीनों की बारिश

रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के मुकाबले एशिया का समुद्री स्तर ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. और जहां पहले करीब 100 सालों में समुद्री जलस्तर में कोई खास बदलाव आता था, 2050 तक हर 6 से 9 सालों में जलस्तर में तेज बदलाव आने लगेगा. जानकार बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर भारत के शहरी इलाकों में सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा. यहां ज्यादा समय तक लू चलेगी और मानसून अलग ढंग से बारिश करेगा.

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आईआईटी बॉम्बे के सेंटर फॉर अर्बन साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रोफेसर सुबिमल घोष कहते हैं, "शहरों में लंबे समय तक गर्म हवाएं चलनी शुरू भी हो चुकी हैं, जिससे मानसून पर बुरा असर पड़ेगा. शहरों के आसपास के इलाके अपेक्षाकृत कम गर्म होते हैं, इससे शहरी इलाकों में ज्यादा बादल बनेंगे और तेज बारिश होगी. ऐसे में शहरों में बाढ़ की संभावना बहुत बढ़ जाएगी. अगर इन इलाकों में बहुत ज्यादा देर तक बारिश नहीं हुई तो भी 1-2 घंटे में ही महीनों की बारिश एक साथ हो जाएगी, जिससे भयंकर बाढ़ का खतरा होगा." वह कहते हैं कि शहरों में प्रदूषण इस स्थिति को और खराब करेगा.

जानकार कहते हैं तटीय इलाकों में ऐसी बारिश कई बार देखने को मिलेगी और इसके बाद समुद्र का बढ़ा जलस्तर खतरे को और बढ़ाएगा. क्योंकि यह पानी को आसानी से शहर से निकलने नहीं देगा. हालांकि मैदानी इलाकों को लेकर स्पष्ट अनुमान नहीं है. फिर भी प्रोफेसर सुबिमल घोष के मुताबिक, "तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे. यह बात हिमालयी नदियों में बाढ़ के खतरे को भी बढ़ा सकती है."

समुद्री जीवों के प्रजनन पर असर

केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशियन स्टडीज के स्कूल ऑफ ओशियन साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर डॉ एस सुरेश कुमार के मुताबिक अगर समुद्री जलस्तर बढ़ता है और इसके तापमान में बढ़ोतरी होती है तो समुद्री जीव-जंतु खुद को नई परिस्थितियों के हिसाब से ढालेंगे. ऐसे हालात में संभव है कि तटीय इलाकों में कई ऐसे समुद्री जीव-जंतु आ जाएं, जो इंसानों के खाने योग्य न हों.

वह कहते हैं, "यह बात निश्चित तौर पर नहीं कही जा सकती लेकिन यह निश्चित तौर पर जरूर कहा जा सकता है कि समुद्री जीवों के प्रजनन पर तापमान का सीधा असर होगा और कई जीव बढ़े तापमान के चलते खत्म हो जाएंगे."

तस्वीरेंः इतना तापमान कि हालत खराब

OMCAR फाउंडेशन के संस्थापक मरीन बायोलॉजिस्ट बालाजी वेदराजन कहते हैं, "समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी के साथ मैंग्रोव वनस्पतियां भी आगे बढ़ती जाएंगी. तापमान और समुद्र तल में बदलाव से इनकी कई प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगीं. ये वनस्पतियां मछलियों के लिए पर्यावास और भोजन का काम करती हैं. ये समुद्री तट के कटाव को भी रोकती हैं. चक्रवात से होने वाले नुकसान को कम करने में भी इनकी भूमिका होती है. मैंग्रोव के प्रभावित होने से ऐसी पर्यावरणीय आपदाओं में जान-माल का नुकसान बढ़ जाएगा."

चक्रवात बढ़ेंगे

डॉ एस सुरेश कुमार कहते हैं, "तटीय इलाके में रहने वाले लोगों पर इसका बहुत बुरा असर होगा. अगर समुद्री जलस्तर सिर्फ 10 सेमी बढ़ता है तो 60 मीटर की दूरी तक का तटीय इलाका खत्म हो जाएगा. ऐसी हालत में तटीय इलाके में रहने वाले लोगों को वहां से हटाकर अन्य जगहों पर बसाना होगा. इसके अलावा चक्रवातीय तूफानों की घटनाएं भी बढ़ेंगीं."

इंसान और पृथ्वी, दोनों का बुखार एक जैसा है

उनके मुताबिक, "अब चक्रवातीय तूफान बार-बार आएंगे. ऐसे में समुद्री यातायात भी प्रभावित होगा. इससे समुद्री दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है. सिर्फ महंगे जलपोत इससे बच सकेंगे. जिससे समुद्री यातायात का खर्च भी बढ़ सकता है."

जानकार मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाली भारी बारिश के बाद कई इलाकों को भारी सूखे का सामना भी करना पड़ेगा. यह कृषि गतिविधियों के लिए बेहद नुकसानदेह होगा.

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