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रसोई गैस के बढ़ते दाम बिगाड़ रहे बजट

चारु कार्तिकेय
६ जुलाई २०२२

घरेलू रसोई गैस के दाम दो महीनों में दूसरी बार बढ़ा दिए गए हैं. एक सिलेंडर का दाम 1050 रुपये के आसपास पहुंच गया है. कोविड की वजह से कमाई में आई कमी से जूझते करोड़ों परिवारों के लिए घर का बजट संभालना मुश्किल होता जा रहा है.

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Indien - Koch-Gaspreis steigt
तस्वीर: Subrata Goswami/DW

भारतीय तेल कंपनियों ने 14.2 किलो के एक एलपीजी सिलेंडर का दाम 50 रुपये बढ़ा दिया है. इस बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में एक सिलेंडर 1,053 रुपये का, कोलकाता में 1,079 का, मुंबई में 1,052.50 और चेन्नई में 1,068.50 रुपये का हो जाएगा. 19 मई को ही एलपीजी के दामों को 3.50 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ा दिया गया था. उससे पहले मार्च में भी दाम 50 रुपये बढ़ाया गया था.

जून 2021 में दिल्ली में एक सिलेंडर का दाम 809 रुपये था, यानी एक साल के अंदर दाम 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ चुका है. रसोई गैस के बढ़ते दाम करोड़ों परिवारों के बजट पर बुरा असर डाल रहे हैं, लेकिन दाम घटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है.

कैसे तय होते हैं दाम

भारत में एलपीजी के दाम इम्पोर्ट पैरिटी प्राइस (आईपीपी) के आधार पर तय किए जाते हैं और आईपीपी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों पर निर्भर होती है. इसका मानदंड सऊदी अरब की तेल कंपनी 'आरामको' का एलपीजी का दाम होता है. आईपीपी में फ्री ऑन बोर्ड दाम (निर्यातक देश की सीमा पर दाम), समुद्र यातायात भाड़ा, बीमा, सीमा शुल्क, बंदरगाह शुल्क जैसी चीजें भी शामिल होती हैं.

रसोई गैस
रसोई गैस के दामों के बढ़ने का परिवारों के बजट पर सीधा असर पड़ता हैतस्वीर: Subrata Goswami/DW

आईपीपी डॉलर में होता है, इसलिए इसे फिर भारतीय रुपये में बदला जाता है. उसके बाद इसमें देश के अंदर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का भाड़ा, मार्केटिंग खर्च, तेल कंपनियों के मार्जिन, बॉटलिंग खर्च, डीलर का कमीशन और पांच प्रतिशत जीएसटी लगता है. तब जा कर भारत में औसत खुदरा ग्राहक के लिए एक सिलेंडर का दाम तय होता है.

चूंकि एलपीजी का मूल स्रोत कच्चा तेल होता है इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों का इसके दाम पर सीधा असर पड़ता है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये के मूल्य का भी इस पर असर पड़ता है. अनुमान है कि भारत में 70 प्रतिशत से ज्यादा घरों में एलपीजी ही रसोई का पहला ईंधन है. इसलिए दाम बढ़ने से कम से कम 70 प्रतिशत, यानी करीब 30 करोड़ परिवारों पर असर पड़ता है.

क्यों बढ़ रहे हैं दाम

मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े हुए हैं. भारत के कच्चा तेल बास्केट का दाम मई 2020 में 20.20 डॉलर प्रति बैरल था लेकिन इस समय वो 111 डॉलर से भी ऊपर जा चुका है. इसके साथ साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत भी गिरती जा रही है.

रसोई गैस
जुलाई 2021 में अमृतसर में रसोई गैस के दाम बढ़ने के खिलाफ प्रदर्शनतस्वीर: AFP

रुपया एक डॉलर के मुकाबले जुलाई 2021 में 75 के मूल्य के आसपास था लेकिन अब वह 79 का आंकड़ा पार गया है. इतिहास में पहले कभी डॉलर के मुकाबले रुपया इतना कमजोर नहीं हुआ. इससे भी कच्चे तेल के दाम और फिर एलपीजी के दामों पर असर पड़ रहा है.

रसोई गैस के दामों के बढ़ने का परिवारों के बजट पर सीधा असर पड़ता है. या तो खाने पीने पर खर्च बढ़ जाता है या परिवार खाने पीने की चीजों में कटौती करने लगते हैं, जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है. इसका असर महंगाई दर पर भी पड़ता है. आरबीआई पहले ही कह चुका है कि महंगाई दर लगातार बढ़ती जा रही है जो अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है.

ऐसे में रसोई गैस के दामों का इस तरह बढ़ते रहना आरबीआई की महंगाई के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर बनाता है. देखना होगा कि रसोई गैस के दाम कब तक बढ़ते रहते हैं और किस स्तर पर पहुंच कर स्थिर होते हैं.

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