'राइट टु रिपेयर' का नाम सुना है?
धरती पर बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे को लेकर विशेषज्ञों में बहुत चिंता है. इससे निपटने के लिए कई अभियान चल रहे हैं, जिनमें से एक है 'राइट टु रिपेयर'. यानी चीजें ठीक करने का अधिकार.
खराब हुआ, फेंक दो
मामूली खराबी आने पर महंगे गैजेट्स को फेंक दिया जाता है या फेंकना पड़ता है. क्योंकि बहुत से देशों में या तो रिपेयर की सुविधा नहीं है या फिर इतनी मंहगी है कि लोग नया लेना बेहतर समझते हैं.
आसान हो ठीक कराना
इसी चिंता के मद्देनजर अब यूरोप और अमेरिका के नेता और नीति-निर्माता चाहते हैं कि गैजेट्स को ठीक यानी रिपेयर करना आसान बनाया जाए.
कंपनियों की कोशिश
आलोचक कहते हैं कि कंपनियां जानबूझ कर अपने उत्पाद ऐसे बनाती हैं कि उन्हें ठीक करना मुश्किल हो. या फिर उपभोक्ताओं को स्पेयर पार्ट्स मिलना मुश्किल बना दिया जाता है.
स्पेयर पार्ट दो
इसी साल मार्च में यूरोप ने वॉशिंग मशीन, डिश वॉशर्स, फ्रिज और टीवी स्क्रीन बनाने वाली कंपनियों को उस चीज का बनना बंद होने के दस साल बाद तक स्पेयर पार्ट उपलब्ध कराने का आदेश दिया था.
फोन और गैजेट भी शामिल हों
अब सरकारें चाहती हैं कि ऐसा ही नियम फोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट बनाने के लिए भी हो. जुलाई में अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमीशन ने 'राइट टु रिपेयर' अधिकार के पक्ष में सर्वसम्मति से मतदान किया.
आसान नहीं रिपेयर
कंपनियां कह रही हैं कि वे भी उपभोक्ताओं को अधिकार देना चाहती हैं लेकिन हर बार रिपेयर करना संभव और सुरक्षित नहीं होगा क्योंकि यह मामला बहुत जटिल है.
बढ़ता कचरा
2019 में पूरी दुनिया में 5.36 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक सामान कूड़े में फेंक दिया गया था. यूएन के मुताबिक इसमें से सिर्फ 17.4 प्रतिशत रीसाइकल हो पाया. हर साल यह कचरा 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है.
ठीक कराने में मदद
इस साल 'राइट टु रिपेयर यूरोप' नाम के संगठन ने विएना शहर प्रशासन के साथ मिलकर एक वाउचर योजना चलाई. इसके तहत उत्पादों को फेंकने के बजाय ठीक करवा कर दोबारा इस्तेमाल करने पर 100 यूरो का कूपन दिया गया.
घट सकता है कचरा
लोगों ने 26 हजार चीजें ठीक करवाईं. इस तरह विएना शहर का इलेक्ट्रॉनिक कचरा 3.75 प्रतिशत कम हुआ. अमेरिका के ऑरेगन राज्य के पोर्टलैंड शहर में भी ऐसी ही योजना आने वाली है.