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देर तक बैठने और व्यायाम न करने से मानसिक स्वास्थ्य पर असर

रामांशी मिश्रा
१९ अप्रैल २०२४

हमारी कार्यशैली में हुए बदलाव शरीर के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं. दिनभर बैठकर काम करने और व्यायाम करने के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य कई मायनों में प्रभावित हो रहा है.

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बैठे रहना हानिकारक
बीमार कर रहा है घंटों बैठनातस्वीर: Pond5 Images/IMAGO

छत्तीसगढ़ के कांकेर में पब्लिक हेल्थ सेक्टर में काम करने वाली 30 वर्षीय अंजली का ज्यादातर समय लैपटॉप के सामने बैठकर लिखने, काम करने और अपने टीम के अन्य सदस्यों के साथ ऑनलाइन चर्चा करने में बीतता है. बीते कुछ समय से उन्होंने अपने अंदर कई बदलाव देखे. मसलन, बात बात में गुस्सा, मोटापे की शिकायत के साथ चिड़चिड़ापन और खुद में अवसाद के लक्षण भी नजर आ रहे थे. इसके अलावा पेट में भी कुछ समस्याएं उन्हें होने लगीं.

अंजली कहती हैं, "लगातार बैठे रहने से बाहर निकलना नहीं हो पाता, दोस्तों से मिले हुए भी काफी समय हो गया. दिनभर का समय दफ्तर के कामों में निकल जाता है. इसके बाद घर में भी कई छोटे-मोटे काम करने को रह जाते हैं."

जब अंजली को एक साथ कई समस्याएं होने लगी तो वह चिकित्सक के पास पहुंचीं. कुछ जरूरी जांचों और काउंसलिंग के बाद चिकित्सक ने उन्हें अपनी दिनचर्या में बदलाव लाने की बात कही. साथ ही रोजाना के व्यायाम और शारीरिक गतिविधि बढ़ाने की सलाह दी.

युवाओं में बढ़ रही मानसिक परेशानी

अंजली जैसे ही कई युवा वर्तमान में शारीरिक और मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं. लगातार बैठकर काम करने और शारीरिक क्रियाकलाप कम करने से न केवल शरीर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है. इसे लेकर लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के मानसिक रोग चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने एक समीक्षात्मक अध्ययन किया है. विश्व की अलग-अलग प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा किए गए 358 जनसंख्या आधारित सर्वेक्षणों के विश्लेषण के आधार पर किया गया. अध्ययन के परिणाम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को बदलने की ओर इशारा करते हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के अनुसार, एक व्यक्ति को प्रति सप्ताह 75 मिनट कड़ी शारीरिक गतिविधि या 150 मिनट के न्यूनतम व्यायाम के लक्ष्य को जरूर पूरा करना चाहिए. इससे वह व्यक्ति स्वस्थ रहता है. लेकिन विश्व भर में 27.5% लोग इसे पूरा नहीं कर पाते. इनमें 23.4% पुरुष और 31.7% महिलाएं हैं.

गहरी नींद में भी सीखता है दिमाग

अध्ययन की समीक्षा यह भी कहती है कि जो व्यक्ति इस मानक को पूरा करते हैं लेकिन जीवनशैली में उन्हें लगातार लंबे समय तक बैठकर काम करना पड़ता है वह भी मानसिक परेशानियों से अछूते नहीं है. उनमें यह समस्याएं सामान्य लोगों की अपेक्षा बढ़कर आ रही हैं.

कई पेशे मानसिक परेशानी की जद में

डॉ. आदर्श कहते हैं, "इन सर्वेक्षणों में दुनिया भर से 19 लाख प्रतिभागी शामिल हुए. दुनिया भर में लोगों के रहन-सहन और जीवन जीने के तरीके में बड़ा बदलाव आ रहा है. आज शोधकर्ता, क्लर्क, ड्राइवर, प्रोग्रामर, स्वास्थ्य पेशेवर और कई अन्य घंटों बैठकर नौकरी करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है.” आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा है और रोजगार के लिए ऐसे जीवन शैली में संलिप्त है जिसमें लंबे समय तक बैठे रहना और शारीरिक क्रियाकलाप न होना शामिल होता है और इसकी वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है.

प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी के इस अध्ययन को इंडियन जर्नल ऑफ बिहेवियरल साइंस (आईजेबीएस) में प्रकाशित किया गया है. अध्ययन के अनुसार, जो लोग शारीरिक गतिविधि नहीं कर पाते उनमें चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन (अवसाद) एंग्जायटी, स्ट्रेस लेने या फिर किसी माहौल में खुद को ढाल न पाने की आशंका अधिक होती है. अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगर किसी तरह से कोई व्यक्ति मानसिक समस्या से जूझ रहा हो तो उसे बाहर आने के लिए वह किन उपायों को अपना सकता है. 

मानसिक विकास से जुड़ी हड्डियों की सेहत

इस बारे में केजीएमयू के स्पोर्ट्स इंजरी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अभिषेक अग्रवाल कहते हैं, "लगातार बैठे रहने से शारीरिक क्षमताओं का शोषण भी हो रहा है. इसकी वजह से मांसपेशियों की कसरत नहीं हो पाती और नसों का संचालन धीरे हो जाता है और हड्डियां भी आराम की स्थिति में आ जाती हैं. ”

डॉ. अभिषेक के अनुसार, इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि हमारे शरीर की हड्डियों से जितना अधिक काम लिया जाए यह उतना ही अधिक मजबूत होंगी. हड्डियों का उपयोग न होने से ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका बढ़ जाती है. वह कहते हैं, "एक ही पोस्चर (मुद्रा) में बैठे रहने से हड्डियों में टेढ़ापन और अकड़न भी होने लगती है. इन सब के साथ-साथ यह जीवनशैली शरीर में हार्मोनल डिसबैलेंस का कारण बनती है, जिससे शारीरिक विकास कमजोर होता है. ”

मानसिक स्वास्थ्य हमारे हड्डियों के स्वास्थ्य यानी बोन हेल्थ को काफी हद तक प्रभावित करता है. यदि मानसिक अवस्था बेहतर न हो या व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो तो उसकी हड्डियां भी कमजोर होती हैं. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिसर्च के अनुसार मेंटल डिप्रेशन की वजह से हड्डियों में नुकसान और ऑस्टियोपोरोसिस होने के खतरे बढ़ जाते हैं. वहीं खुशनुमा माहौल के साथ कसरत, थोड़ा आराम, पोषण और जिंदादिली वाले माहौल से भरा संतुलित जीवन मानसिक स्वास्थ्य के साथ शरीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर रखता है.

 छोटे उपाय रखेंगे स्वस्थ

एम्स रायपुर के मनोचिकित्सक डॉ. आदित्य सोमानी कहते हैं, " व्यायाम शरीर के अंदर ‘खुशी के हार्मोन' स्रावित के लिए जिम्मेदार होते हैं. इससे बेहतर सामाजिक जुड़ाव के साथ कई अन्य लाभ भी शरीर को मिलते हैं.”

दुनिया के कई प्रमुख पत्रिकाओं में  ‘मानसिक स्वास्थ्य पर गतिहीन जीवन शैली के हानिकारक प्रभाव' पर शोध प्रकाशित हुए हैं. डा. आदित्य बताते हैं, "छोटे छोटे उपाय जैसे, काम करते समय छोटे-छोटे ब्रेक लेने, फोन पर बात करते समय टहलने,  लिफ्ट के बजाय कुछ तलों तक सीढ़ियों का उपयोग करने और ऑफिस योग का अभ्यास शुरू करने से स्थितियां बेहतर हो सकती हैं. यह गतिविधियां अगर समूह में की जाएं तो शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य और अधिक बेहतर हो सकता है.”

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