1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कछुवा और दूसरे कई जीव भी बोल कर बातचीत करते हैं

२६ अक्टूबर २०२२

वैज्ञानिकों ने अब तक मूक समझे जाने वाले कुछ जानवरों की बोली और बातचीत रिकॉर्ड की है. कछुए और मछलियों जैसे कुछ जीवों की प्रजातियां आपस में बोल कर संवाद करती हैं. इन्हें यह खूबी करोड़ों साल पहले के साझे पूर्वज से मिली है.

https://p.dw.com/p/4IgZo
Frankreich Schildkröte
तस्वीर: Gabriel Jorgewich Coehn/AFP

जानवरों की कम से कम 50 से ज्यादा ऐसी प्रजातियां हैं जो आपस में बोल कर संवाद करती हैं. इन्हें पहले मूक पशु समझा जाता था. हाल ही में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया किया गया है कि इन जीवों में बोल कर संवाद करने की खूबी एक साझे पूर्वज से करीब 40 करोड़ साल पहले विकसित हुई थी.

मूक जानवरों की रिकॉर्डिंग

इस रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और इवॉल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट गाब्रियेल योर्गविच-कोहेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि ब्राजील के अमेजन वर्षावनों में कछुओं पर रिसर्च करने के दौरान उन्हें मूक जानवरों की आवाज को रिकॉर्ड करने का विचार आया. योर्गविच-कोहेन का कहना है, "जब मैं वापस घर आया तो अपने पालतू जानवरों की रिकॉर्डिंग शुरू करने का फैसला किया."

कछुवे बोलते हैं
वैज्ञानिकों ने सुन ली कछुवे की बातचीततस्वीर: Pierre Albouy/REUTERS

इसमें होमर नाम का एक कछुआ भी था जिसे उन्होंने बचपन से ही पाला था. उन्हें यह देख कर बड़ी हैरानी हुई कि होमर और उनके दूसरे पालूत कछुए गले से आवाज निकाल रहे थे. इसके बाद उन्होंने कछुओं की दूसरी प्रजातियों की रिकॉर्डिंग शुरू की. इसके लिए कभी कभी वो हाइड्रोफोन यानी पानी के अंदर काम करने वाला माइक्रोफोन इस्तमाल करते थे. स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख यूनिवर्सिटी में रिसर्चर योर्गविच-कोहेन का कहना है, "हर एक प्रजाति जिसकी मैंने रिकॉर्डिंग की वह आवाज निकाल रहा था.. इसके बाद हमने यह सवाल पूछना शुरू किया और कितने ऐसे जानवर हैं जिन्हें हम मूक समझते हैं लेकिन वो आवाज पैदा करते हैं."

यह भी पढ़ेंः भोजन नहीं सेक्स की लालसा में लंबी हुई जिराफ की गर्दन

कछुआ, मछली, सरीसृप की बोली

योर्गविच-कोहिन की यह रिसर्च रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपी है. रिसर्च में कछुओं की 50 प्रजातियों के साथ ही तीन और बेहद अनोखे जीवों की रिकॉर्डिंग है जिन्हें मूक समझा जाता है. इनमें एक लंगफिश मछली की एक प्रजाति है जिसमें गलफड़ के साथ ही फेफड़े भी होते हैं. इनकी मदद से यह मछली जमीन पर भी जिंदा रहती है. इसके बाद दूसरी प्रजाति है एक उभयचर की जो सांप और कीड़े के हाइब्रिड जैसा है.

रिसर्च टीम ने न्यूजीलैंड में मिलने वाले एक दुर्लभ सरीसृप की आवाज भी रिकॉर्ड करने में कामयाबी हासिल की है, इसे टुआटारा कहा जाता है. यह रिंकोसिफेलिया ऑर्डर का अकेला जीवित बची प्रजाति है. कभी यह धरती के कोने कोने में फैले थे. यह सभी जानवर गले से आवाज निकालते हैं जैसे कि किट किट या फिर चहचहाना या इसी तरह की कुछ और. हालांकि जरूरी नहीं है कि यह आवाजें बहुत तेज हों. कई जानवर दिन भर में ये आवाजें कुछ ही बार निकालते हैं.

यह भी पढ़ेंः इंसान के देखने पर पालतू कुत्ते आपस में खूब खेलते हैं

करोड़ों साल पुराना साझा पूर्वज

रिसर्चरों की टीम ने अपनी खोज को 1800 दूसरी प्रजातियों के अकूस्टिक कम्युनिकेशन के उत्पत्ति के इतिहास के आंकड़ों के साथ मिलाया. इसके बाद उन्होंने "पैतृक अवस्था पुनर्रचना" नाम के विश्लेषण का इस्तेमाल कर यह संभावना तलाशी कि इसका पुराने समय के जीवों से क्या संबंध है. पहले यह समझा गया था कि चार पैरों वाले जानवर और लंगफिश के कंठ से निकलने वाला संवाद अलग अलग रूप से विकसित हुआ है. हालांकि योर्गविच-कोहन का कहना है, "अब हमने इसका उल्टा देखा है, वे सब एक ही जगह से आते हैं. हमने देखा है कि इस ग्रुप का एक साझा पूर्वज है जो पहले से ही आवाज निकाल रहा था और उन आवाजों को जान बूझ कर संवाद में इस्तेमाल कर रहा था."

इनका यह साझा पूर्वज कम से कम 40.7 करोड़ साल पहले पुराजीवी काल में पृथ्वी पर जी रहा था. अमेरिका की एरिजोना यूनिवर्सिटी में इवॉल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफेसर जॉन वीन्स का कहना है कि लंगफिश और चौपाया जीवों में एक साझे पूर्वज से ध्वनि संवाद का उदय होना काफी दिलचस्प और हैरान करने वाली खोज है."

धोखा देने में माहिर हैं ये पौधे और जानवर

आवाज और संवाद

वीन्स इस रिसर्च में शामिल नहीं थे लेकिन 2020 में उनकी एक रिसर्च रिपोर्ट छपी थी जिसका नाम था, "कशेरुकी जीवों में ध्वनि संवाद का उद्भव." उन्होंने नये जीवों के लिए मिले आंकड़ों का स्वागत किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि संभव है कि रिसर्च में, "आवाज निकालने वाले जीव और वास्तविक ध्वनि संवाद के बीच अनिवार्य अंतर" ना किया गया हो.

योर्गविच-कोहेन का कहना है कि रिसर्चरों ने खासतौर से संवाद में निकाले जाने वाली आवाजों की पहचान के लिए वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग की तुलना की और खास व्यवहार का पता लगाया. इसके लिए जानवरों के अलग अलग समूहों की भी रिकॉर्डिंग की गई, जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि वे खास परिस्थितियों में कैसी आवाजें निकालते हैं.

उन्होंने यह स्वीकार किया कि कुछ प्रजातियों का अध्ययन काफी मुश्किल था क्योंकि वे जल्दी जल्दी आवाज नहीं निकालते और थोड़े शर्मीले हैं.

एनआर/एए (एएफपी)