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बाघों को बचाकर दुनिया की मदद कर रहा है भारतः शोध

२६ मई २०२३

बाघों को बचाने की भारत की मुहिम ने पर्यावरण की सुरक्षा में दुनिया की बड़ी मदद की है. एक नया शोध बताता है कि बाघ संरक्षण कार्यक्रम के तहत भारत ने जंगलों की कटाई रोककर कार्बन उत्सर्जन रोकने में बड़ी भूमिका निभाई है.

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भारत में बढ़ रहे हैं बाघ
भारत में बढ़ रहे हैं बाघतस्वीर: Satyajeet Singh Rathore/AP/dpa/picture alliance

दुनिया के कुल बाघों की तीन चौथाई आबादी भारत में रहती है. लेकिन उनके प्राकृतिक आवास के नष्ट होने के कारण बीते दशकों में उनकी संख्या काफी घट गई. 1947 में भारत में 40 हजार से ज्यादा बाघ थे, जिनकी संख्या 2006 में मात्र 1,500 रह गई थी. लेकिनइस साल हुई गणना में भारत में बाघों की संख्या 3,000 पहुंच गई है.

बाघों की आबादी बढ़ाने की कोशिशों में भारत ने 52 नए बाघ संरक्षित क्षेत्र बनाए हैं, जहां लकड़ी काटना बेहद सख्त और नियमित किया गया है. इस पूरी योजना पर नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है.

मुख्य शोधकर्ता आकाश लांबा कहते हैं कि बाघ एक ‘छातानुमा प्रजाति' है. लांबा समझाते हैं, "इसका अर्थ है कि उनकी सुरक्षा करते हुए आप उन जंगलों की भी सुरक्षा करते हैं, जिनमें वे रहते हैं और जो +अविश्वसनीय रूप से विविध प्रजातियों के घर हैं.”

कार्बन उत्सर्जन में कमी

वन कार्बन को सोखने वाले विशाल होद होते हैं, यानी वे वातावरण में उत्सर्जित हुई कार्बन को सोखते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बेहद अहम भूमिका निभाता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है और अपने उत्सर्जन में कमी की कोशिश कर रहा है.

भारत में जन्मे और बड़े हुए लांबा कहते हैं कि शोधकर्ताओं के एक दल ने बांघ संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में सीधा संबंध स्थापित किया है. उन्होंने बाघ संरक्षित क्षेत्रों में वन कटाई की तुलना उन क्षेत्रों से की, जहां बाघ रहते तो हैं लेकिन वे क्षेत्र संरक्षित नहीं है.

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि 2001 से 2020 के बीच 162 क्षेत्रों में 61,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो चुका था. इनमें से तीन चौथाई वन क्षेत्र बाघ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर था.

शोध के मुताबिक बाघ संरक्षित क्षेत्रों में 2007 से 2020 के बीच लगभग 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सुरक्षा संभव हो पाई. इसका अर्थ है कि लगभग दस लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन रोका जा सका.

बड़े आर्थिक लाभ

लांबा जोर देकर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित और खासतौर पर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश में इतनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन रोकने के बड़े आर्थिक लाभ होते हैं.

सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गणना की जाये तो इस तरह भारत ने 9.2 करोड़ डॉलर की बचत की. अगर बचाए गए जंगलों का वित्तीय प्रभाव देखा जाए तो 60 लाख डॉलर से ज्यादा की बचत हुई.

वह बताते हैं, "कार्बन उत्सर्जन रोकने से भारत ने जितना वित्तीय लाभ कमाया है, वह बाघ संरक्षण पर हो रहे कुल खर्च का लगभग एक चौथाई बनता है. यह बेहद महत्वपूर्ण नतीजा है और दिखाता है कि वन्य जीवन की सुरक्षा में किया गया निवेश ना सिर्फ कुदरत की सुरक्षा करता है बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभदायक है.”

यह शोधपत्र ‘नेचर इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इससे पहले मार्च में भी एक ऐसा ही अध्ययन छपा था जिसमें बताया गया था कि व्हेल मछलियों और भेड़ियों जैसे कुछ जानवरों की सुरक्षा से ही हर साल 6.4 अरब टन कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकता है.

वीके/सीके (एएफपी)

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