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रूस पर और तीखा हुआ भारतीय रुख, यूएन में दिखी तल्खी

२३ सितम्बर २०२२

यूएन सुरक्षा परिषद की बैठक में रूस के विदेश मंत्री के लिए खासी असहज स्थिति थी, जबकि सभी सदस्यों ने युद्ध के खिलाफ बात रखी. भारत के बोल भी काफी तीखे थे.

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अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की बैठक
अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की बैठकतस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance

रूस-यूक्रेन विवाद पर अब तक के अपने सबसे तीखे बयान में भारत ने कहा है कि हालात बेहद चिंताजनक हो गए हैं और अब यह युद्ध खत्म होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "यूक्रेन युद्ध जिस तरह आगे बढ़ रहा है वह पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बेहद चिंताजनक है. हालात बहुत परेशान करने वाले हैं."

भारत अब तक रूस को लेकर आलोचक नहीं हुआ है और पिछले करीब सात महीने में, यानी जब से युद्ध शुरू हुआ, पश्चिमी देश लगातार भारत से कहते रहे हैं कि उसे रूस की आलोचना करनी चाहिए. लेकिन भारत ने ना सिर्फ यूएन में रूस के खिलाफ मतदान करने से परहेज किया बल्कि उसके साथ व्यापार बढ़ाया और पहले से कहीं ज्यादा तेल खरीदा.

लेकिन गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र में भारत के सुर में तल्खी थी. जयशंकर ने कहा, "भारत पुरजोर तरीके से दोहराता है कि हर तरह की आक्रामकता फौरन बंद हो और बातचीत शुरू हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि यह युद्ध का युग नहीं हो सकता.”

यूएन महासचिव अंटोनियाो गुटेरेष
यूएन महासचिव अंटोनियाो गुटेरेषतस्वीर: Mary Altaffer/AP/picture alliance

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते उज्बेकिस्तान में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मौजूदगी में यह बात कही थी. उन्होंने कहा था "मैं जानता हूं कि यह युग युद्ध का नहीं है और हमने पहले भी कई बार आपसे फोन पर कहा है कि लोकतंत्र, कूटनीति और बातचीत ऐसी चीजें हैं जिनसे दुनिया प्रभावित होती है."

डॉ. जयशंकर ने यूएन में कहा कि विवाद की स्थिति में भी मानवाधिकारों का उल्लंघन अनुचित है. उन्होंने कहा, "विवाद की स्थिति में भी मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन को जायज नहीं ठहराया जा सकता. जहां भी ऐसा कुछ होता है, तो यह जरूरी हो जाता है कि उसकी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच हो.”

जयशंकर ने दोहराया भारत का रुख

15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता फ्रांस की विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना कर रही थीं. 77वीं सालाना संयुक्त राष्ट्र महासभा बैठक से पहले विदेश मंत्रियों की यह ब्रीफिंग हुई जिसमें सभी सदस्य देशों ने अपनी बात रखी.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन, चीन के वांग यी, रूस के सर्गेय लावरोव और ब्रिटेन के जेम्स क्लेवरली व्यक्तिगत रूप से वहां मौजूदा थे. इस दौरान यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने भी सदस्य देशों को संबोधित किया.

इस मौके पर डॉ. जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध के वैश्विक खाद्य स्थिति पर असर की भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि सभी ने महंगाई और खाद्य आपूर्ति का संकट झेला है. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "हम सभी ने सामान की बढ़ती कीमतें और ईंधन, अनाज व खाद की किल्लत झेली है. इस लिहाज से भी हम सबको आने वाले समय को लेकर चिंतित होना चाहिए.”

इससे पहले बुधवार को डॉ. जयशंकर ने यूक्रेन के प्रधानमंत्री डेनिस श्मिहाल से मुलाकात की थी. यूएन मुख्यालय में हुई इस मुलाकात में डॉ. जयशंकर ने उन्हें भारत के रुख से अवगत कराया था और कहा था भारत कूटनीति और बातचीत से मसले सुलझाने का समर्थक है.

अमेरिका और रूस की तनातनी

उधर अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने कहा कि यूक्रेन में "यातनाओं” के लिए रूस के राष्ट्रपति को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "जिस अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए हम यहां जमा हुए हैं उसे हमारी आंखों के सामने तहस-नहस किया जा रहा है. हम राष्ट्रपति पुतिन को इसके लिए बचकर जाने नहीं दे सकते और जाने नहीं देंगे.”

ब्लिंकेन ने पुतिन पर आग में घी डालने का आरोप लगाया और कहा कि किसी भी देश को बल प्रयोग से दूसरे देश की सीमाओं में फेरबदल की इजाजत नहीं दी जा सकती. ब्लिंकेन ने कहा, "जब क्रेमलिन खुलेआम इस नियम का उल्लंघन कर रहा है, तब हम अगर इसकी सुरक्षा करने में नाकाम रहे तो हम हरेक आक्रांता को संदेश दे रहे हैं कि वे भी इसे नजरअंदाज कर सकते हैं.”

रूस के विदेश मंत्री लावरोव ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि पश्चिमी देश स्थिति को अलग तरह से पेश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "आज हम पर इस त्रासदी की जड़ को रूस की आक्रामकता के रूप में एकदम अलग व्याख्या थोपने की कोशिश हो रही है.” उन्होंने यूक्रेन पर ‘रूसोफोबिया' का आरोप लगाया और कहा कि यूक्रेनी भाषा नियमों के जरिए इसे फैलाया जा रहा है.

लावरोव ने कहा, "अमेरिका और उसके सहयोगी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की मिलीभगत से कीव के जुल्मों को छिपा रहे हैं.” इस भाणष के बाद लावरोव गुस्से से बैठक छोड़कर चले गए.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)