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नीट पर असमंजस खत्म, शिक्षा पर कशमकश जारी

निर्मल यादव२४ मई २०१६

मेडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए पूरे देश में एक परीक्षा कराने की योजना फिलहाल टल गई है. लेकिन विवाद और विचार जारी है.

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Indien Arvind Kejriwal mit Pranab Mukherjee
तस्वीर: Reuters/India's Presidential Palace

मेडिकल की पढ़ाई के लिए पूरे देश में एक ही प्रवेश परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति फिलहाल टल गई है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस आशय की अधिसूचना पर हस्तारक्षर कर नीट को एक साल तक लागू ना करने के केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को मान्यता दे दी.

क्या है विवाद

नीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की वजह से विवाद गहरा गया था जिसमें अदालत ने देश भर में निजी और सरकारी सभी मेडिकल कालेजों में एक ही प्रवेश परीक्षा कराने का आदेश दिया था। राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (नीट) का 15 राज्यों ने विरोध कर केन्द्र सरकार को इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने पर रोक लगाने के लिए विवश कर दिया।

दरअसल राज्यों का विरोध अगले सत्र के लिए होने वाली परीक्षा को नीट में शामिल करने को लेकर था। राज्यों का कहना है कि परीक्षा को लेकर सारी तैयारियां हो गई हैं, यहां तक कि आवेदन प्रक्रिया भी पूरी होने के बाद परीक्षा रद्द करना व्यवहारिक नहीं है। क्योंकि इसका सीधा असर सत्र को शुरू करने पर पड़ेगा।

समाधान

केन्द्र सरकार ने नीट को तत्काल प्रभाव से लागू करने पर अगला सत्र देर से शुरू होने की समस्या को व्यवहारिक मानते हुए इसे अगले साल से लागू करने का फैसला किया। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश मुल्तवी करने के लिए खासतौर पर अध्यादेश जारी करने की जरूरत पड़ी। अध्यादेश के मुताबिक 24 जुलाई 2016 तक नीट प्रभावहीन माना जाएगा। इस अवधि में सभी राज्यों को यहां तक कि निजी मेडिकल कालेजों को अगले सत्र के लिए दाखिला प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

उपयोगिता

नीट की उपयोगिता को लेकर किसी तरह का संदेह नहीं है। विवाद सिर्फ इसे लागू करने के समय को लेकर था। जिसे अध्यादेश के माध्यम से दूर कर दिया गया हे। हालांकि दिल्ली सहित कुछ राज्य इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की वकालत कर रहे हैं। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने तो इसे शिक्षा माफिया से जोड़कर राष्ट्रपति से अध्यादेश पर दस्तखत नहीं करने तक की अपील कर डाली। इनकी दलील है कि मेडिकल परीक्षा को लेकर देश भर के निजी मेडिकल कॉलेज भारी भरकम डोनेशन लेकर सीटें भरते हैं। इन्हें पेमेंट सीट के नाम पर भरा जाता है जबकि शिक्षा माफिया सिर्फ निजी कॉलेजों में ही नहीं सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी दखल रखते हैं। माफिया तंत्र राज्य सरकारों द्वारा आयोजित मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पेपर लीक कराने से लेकर फर्जी दाखिले कराने तक अपना प्रभावी दखल रखते हैं। इसकी वजह से मेडिकल कालेजों में पैसे के बल पर अयोग्य छात्रों की पहुंच बढ़ने की शिकायतों को सही पाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने एकल परीक्षा को ही एकमात्र समाधान बताया।

समस्या की गंभीरता

समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नकल माफिया को रोकने के लिए राज्य सरकारों और केन्द्रीय मेडिकल बोर्ड की प्रवेश परीक्षा में छात्रों को कलम तक ले जाने को प्रतिबंधित कर दिया गया। पिछले साल प्रवेश परीक्षा के दौरान पेपर लीक करने वालों और नकल कराने वालों को रोकने के लिए की गई सख्ती का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा। आलम यह हो गया कि परीक्षा केन्द्र पर ही छात्रों को कलम मुहैया कराई गई। यहां तक कि कुछ राज्यों में घड़ी पहन कर जाने पर भी रोक लग गई।

समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही अंतत: पहल करनी पड़ी। कोर्ट ने देश भर के सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए एक ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराने की व्यवस्था को तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया। केन्द्र सरकार ने इसे मंजूरी दे दी लेकिन राज्यों के विरोध को देखते हुए इसे अगले सत्र तक के लिए टालना पड़ा। नई व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा की तर्ज पर एक केन्द्रीय एजेंसी को सभी कालेजों को अपनी सीटों की संख्या बतानी होगी। केन्द्र और राज्य सरकारों तथा निजी मेडिकल कॉलेजों की कुल सीटों के लिए वह एजेंसी देशव्यापी स्तर पर परीक्षा कराएगी।

सवाल अभी भी

हालांकि सुनने में अभी यह व्यवस्था भले ही अच्छी लग रही हो लेकिन सवाल इसकी कामयाबी को लेकर भी उठने लगे हैं। क्योंकि नेट की तर्ज पर लागू होने वाले नीट को देशव्यापाी माफिया तंत्र से निपटना होगा जो पहले से ही राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार पर पोषित होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि परीक्षा भले ही केन्द्रीय एजेंसी कराए लेकिन राज्यों में इसके आयोजन और निगरानी की जिम्मेदारी उन्हीं राज्य सरकारों पर है जिनके आश्रय पर माफियातंत्र की जड़ें गहरी हो चुकी है। ऐसे में अगले साल नीट के तहत पहली प्रवेश परीक्षा की कामयाबी पर ही नई व्यवस्था का भविष्य टिका हुआ है।