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जर्मन चुनाव: पोस्टल वोट और धोखाधड़ी के दावे

१७ सितम्बर २०२१

कोविड महामारी के दौरान जर्मनी में आम चुनाव होने वाले हैं, इसलिए बड़ी संख्या में पोस्टल बैलट के इस्तेमाल की उम्मीद की जा रही है. कुछ लोग इसमें धोखाधड़ी की आशंका जता रहें हैं.

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तस्वीर: DW

अपने घर में रहकर आराम से और सुरक्षित तरीके से मतदान करने का अवसर कई जर्मन मतदाताओं को लुभा रहा है. खासकर तब, जबकि कोविड-19 संक्रमण दर में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही हो. चुनाव आयोजकों को इस बार लगभग 50 फीसद डाक मतपत्रों की उम्मीद है, जबकि साल 2017 में हुए पिछले चुनाव में यह संख्या सिर्फ 28.6 फीसद थी.

डाक मतपत्रों के जरिए मतदान की शुरुआत जर्मनी में साल 1957 में हुई थी और साल 2008 तक यह नियम था कि जो लोग अपने मतपत्र डाक के जरिए भेजना चाहते थे, उन्हें इसकी अनुमति के लिए आवेदन करना पड़ता था और एक कारण बताना होता था कि वे अपने स्थानीय मतदान केंद्रों पर क्यों नहीं जा सकते हैं.

डाक के जरिए मतदान व्यवस्था के समर्थकों का तर्क है कि डाक मतदान अधिक समावेशी है और विकलांग लोगों जैसे समूहों को लाभान्वित करता है, जिन्हें मतदान केंद्रों में मतदान करने में शारीरिक रूप से मुश्किल हो सकती है.

सभी पात्र मतदाता चुनाव से कई हफ्ते पहले डाक द्वारा स्वचालित रूप से चुनाव अधिसूचना प्राप्त करते हैं, जिसमें उन्हें बताया जाता है कि चुनाव के दिन अपना मतपत्र कहां डालना है. उन्हें अधिसूचना को मतदान केंद्र तक ले जाने की आवश्यकता होती है लेकिन वे मतपत्र को उनके घर के पते पर भेजने के लिए भी कह सकते हैं.

इसके बाद इन अनुरोधों को डाक द्वारा भेजा जा सकता है या फिर व्यक्तिगत रूप से सौंपा जा सकता है. सभी डाक मतपत्र पंजीकृत हैं, इसलिए किसी भी मतदाता के लिए यह असंभव है कि वो डाक के जरिए मतदान करने के बाद बूथ पर जाकर भी मतदान कर ले. यानी एक मतदाता दो बार मतदान नहीं कर सकता है. अमेरिका के विपरीत, जर्मनी में डाक मतपत्र मतदान के दिन से पहले ही गिनती के लिए केंद्र पर पहुंच जाते हैं. जर्मनी के शहरी क्षेत्रों और पश्चिमी हिस्से में डाक के जरिए मतदान खासा लोकप्रिय है.

अमेरिका और जर्मनी की तुलना

जर्मनी और अमेरिका दोनों ही देशों में, डाक के जरिए मतदान करने वालों की संख्या कोविड महामारी से पहले ही बढ़ रही थी. दोनों देशों में करीब एक चौथाई मतदाता इस तरीके से अपना मतदान कर रहे थे. साल 2017 में हुए पिछले संसदीय चुनाव में, सबसे ज्यादा डाक मतपत्रों के जरिए मतदान बवेरिया में हुआ था जहां 37.3 फीसद मतदाताओं ने डाक के जरिए मतदान किया था. लेकिन साल 2020 में, अमेरिका डाक मतपत्रों के प्रयोग के मामले में 46% के साथ एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया. कोविड महामारी की वजह से जर्मनी में भी इस साल नए रिकॉर्ड बनाने की उम्मीद है.

दोनों देशों की मतदान पद्धतियों की समान तरीके से आलोचना होती रही है लेकिन देखा जाए तो संरचनात्मक रूप से दोनों पद्धतियां अलग हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में संघीय मतदान अधिकारी जॉर्ज थील कहते हैं, "सबसे बड़ा अंतर यह है कि हम स्थानीय नागरिकों के रजिस्टर के आधार पर एक स्थिर मतदाता रजिस्टर तैयार करते हैं.”

कैसे होता है जर्मनी में चुनाव

जहां अमेरिका में नागरिकों को मतदान के लिए सक्षम होने पर सक्रिय रूप से पंजीकरण कराना होता है वहीं जर्मनी में नागरिकों के निवास स्थान को रिकॉर्ड करने की प्रणाली सुनिश्चित करती है कि वे योग्य होने पर मतदाता के तौर पर अपने आप पंजीकृत हो जाएंगे. इस अंतर का मतलब यह है कि जर्मनी में मतदाता सूचियों को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है जिसमें लोगों की मृत्यु और उनके किसी अन्य जगह चले जाने जैसी बातों की जानकारी अपडेट की जाती है. ऐसी स्थिति में किसी भी मतदाता को गलत तरीके से जोड़ना मुश्किल हो जाता है.

रजिस्ट्री के हिसाब से मतपत्रों के नामों की जांच करना और यह सुनिश्चित करना कि हर प्रविष्टि के नाम पर केवल एक वोट डाला गया है, चुनावी धोखाधड़ी को रोकने के लिए जर्मनी के प्रयास का प्रमुख हिस्सा है. अमेरिका में कोई निवासी रजिस्टर नहीं है इसलिए हस्ताक्षर सत्यापन और मतपत्र मूल्यांकन जैसे उपायों के जरिए मतदाताओं का सत्यापन नहीं हो पाता.

अनुपस्थित मतपत्रों को कैसे सुरक्षित करें

जर्मनी में डाक के जरिए भेजे गए वोटों को मतदाता रजिस्ट्री के हिसाब से जांचा जाता है. ये मतपत्र किसी भी तरह की छेड़छाड़ को रोकने के लिए चुनाव के दिन तक एक सुरक्षित स्थान पर एक बंद मतपेटी में रखे जाते हैं. मतपेटी को भी बंद कर दिया जाता है और चुनावी बोर्ड के कम से कम तीन लोगों की निगरानी में इसे रखा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई अनधिकृत मतपत्र तो नहीं जोड़ा गया है. शाम 6 बजे जब मतदान समाप्त होता है, तब मतपेटियों को चुनावी समिति के सभी सदस्यों और पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में खोला जाता है और मतों की गिनती की जाती है.

उन परिणामों को फिर चुनावी जिले को भेजा जाता है और बाद में संघीय मतदान अधिकारी को भेज दिया जाता है. वे उन परिणामों की जांच करते हैं और यदि किसी प्रकार की विसंगति दिखाई देती है तो वे मतपत्रों की समीक्षा शुरू कर देते हैं. संघीय चुनाव आयोग, जिसमें संघीय रिटर्निंग अधिकारी, जर्मन संसद में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और संघीय प्रशासनिक न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं, चुनाव परिणामों को प्रमाणित करते हैं.

धोखाधड़ी के आरोप खारिज

हाल के महीनों में जर्मनी के धुर दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी यानी एएफडी के सदस्यों ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के साल 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान धोखाधड़ी के निराधार दावों को यहां भी आवाज दी है.

एएफडी के सांसद स्टीफन ब्रांडनर ने मुख्यधारा की पार्टियों पर चुनाव में धांधली करने की योजना बनाने का आरोप लगाया है और अनुपस्थित मतदान को "अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक" करार दिया है. इसी साल जनवरी में उन्होंने दावा किया था, "डाक मतों में कई तरह से हेराफेरी की जा सकती है.”

राजनीतिक विश्लेषक और कैथलिक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर क्लाउस स्टुवे ऐसे दावों को निराधार बताते हुए इन्हें खारिज करते हैं. उन्हें संदेह है कि एएफडी के पास ऐसे झूठे दावे करने का कोई भी कारण है.

बर्लिन सोशल साइंस सेंटर यानी डब्ल्यूजेडबी ने जर्मनी में अनुपस्थित मतदाताओं पर शोध किया और पाया कि साल 2017 के आम चुनाव से पता चला कि मुख्य रूप से देश के पश्चिमी हिस्सी में जहां ‘अच्छी तरह से शिक्षित और अपेक्षाकृत समृद्ध' मतदाता थे, वो डाक के जरिए मतदान का विकल्प चुनते हैं.

डाक मतदाताओं में, पश्चिमी जर्मनी के ज्यादा लोग हैं जहां आर्थिक रूप से बेहतर, स्वरोजगार वाले लोग, पेंशनभोगी और छात्र अधिक रहते हैं. बर्लिन सोशल साइंस सेंटर के मुताबिक ये विशेषताएं पार्टी की पसंद से भी संबंधित हैं.

चुनावों में धांधली के हथकंडे

डब्ल्यूजेडबी ने पाया कि क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन और क्रिश्चियन सोशल यूनियन, फ्री डेमोक्रेट्स और ग्रीन्स को पोस्टल वोटिंग में ज्यादा समर्थन मिलता है, जबकि एएफडी इस मामले में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन करता है. स्टुवे कहते हैं, "इसलिए मुझे संदेह होता है कि डाक मतदान पर एएफडी का हमला एक सामरिक चाल है.”

माना जाता है कि जर्मनी में डाक मतपत्रों के लिए मुख्य रूप से हेर-फेर घरों में होता है, जहां कोई व्यक्ति यह कोशिश कर सकता है और प्रभावित कर सकता है कि कोई अन्य व्यक्ति कैसे वोट देता है या उनके लिए अपना मतपत्र भरता है.

दक्षिण जर्मनी के त्सेपेलिन विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर जोएकिम बेंके कहते हैं, "अपने लिए बेहतर चुनाव परिणाम तैयार करने के लिए पार्टियों की ओर से व्यवस्थित प्रयास का कभी कोई सबूत नहीं मिला है.”

और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर स्टुवे बताते हैं कि "अनुपस्थित मतपत्रों की गिनती में एक सही और सुरक्षित प्रक्रिया सुनिश्चित करना दशकों से अच्छी तरह से स्थापित है. इसलिए ये वोट भी उतने ही सुरक्षित हैं जितने चुनाव के दिन व्यक्तिगत रूप से डाले जाने वोट होते हैं. मत भूलिए कि वोट में हेराफेरी एक दंडनीय अपराध है.”

रिपोर्ट: विटिंग, वोल्कर; बेटसन, इयन

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