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प्रवर्तन निदेशालय के राजनीतिक इस्तेमाल पर सवाल

चारु कार्तिकेय
१२ जुलाई २०२३

प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल को बार बार बढ़ाए जाने को अवैध ठहरा कर सुप्रीम कोर्ट ने संस्था के राजनीतिक इस्तेमाल का संकेत दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि एजेंसी को सरकारों के राजनीतिक दबाव से कैसे बचाया जा सकता है.

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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)तस्वीर: Satyajit Shaw/DW

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भारत सरकार के लिए बड़ा झटका है. पिछले करीब पांच सालों से ईडी का नेतृत्व कर रहे संजय कुमार मिश्रा की देखरेख में इस अवधि में एजेंसी ने कई बड़े मामलों में जांच शुरू की है.

भारतीय राजस्व सेवा के 1984 बैच के अधिकारी संजय कुमार मिश्रा को सबसे पहले 19 नवंबर, 2018 को दो साल के तय कार्यकाल के लिए ईडी का निदेशक नियुक्त किया गया था.

कैसे बढ़ाया कार्यकाल

लेकिन 2018 में उनके कार्यकाल की समाप्ति के ठीक पहले 13 नवंबर, 2020 को राष्ट्रपति ने उनकी नियुक्ति के पुराने आदेश को बीती तारीख से बदल दिया और कार्यकाल को तीन साल का बना दिया.

उसके बाद 17 नवंबर, 2021 को उन्हें एक साल की एक्सटेंशन दे दी गई. 17 नवंबर, 2022 को उन्हें फिर से एक साल की एक्सटेंशन दे दी गईg. ईडी के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब उसके निदेशक को पांच साल लंबा कार्यकाल दिया गया है.

सितंबर 2021 में मिश्रा को दिए गए एक्सटेंशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुनवाई के बाद अदालत ने चुनौती को खारिज तो कर दिया था लेकिन केंद्र सरकार को मिश्रा के कार्यकाल को नवंबर 2021 के बाद और आगे बढ़ाने से मना कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में 2021 के इसी आदेश का हवाला दिया है और सरकार को इसके स्पष्ट उल्लंघन का दोषी ठहराया है.

मिश्रा मई 2020 में ही 60 साल के हो गए थे, जो सरकारी सेवा में सेवानिवृत्ति की उम्र है. अदालत ने कहा था कि सेवानिवृत्ति की उम्र के हो चुके अधिकारियों के कार्यकाल को बढ़ाना सिर्फ "असामान्य और असाधारण" मामलों में किया जाना चाहिए, और वो भी "एक छोटी अवधि के लिए."

इस दौरान दर्ज किये मामलों पर सवाल

इस मामले में सरकार द्वारा 2021 में लाये गए के कानूनी संशोधन की भी अहम भूमिका है. 2021 में अदालत के फैसले के बाद सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में बदलाव कर दिया था और खुद को ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने की शक्ति दे दी थी.

क्या भारत लोकतंत्र के लिए परिपक्व नहीं है?

बाद में इसी विषय पर सरकार ने संसद से कानून भी पारित करा लिया. इसके तहत सरकार एक बार में एक साल के दर से ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ा सकती है. अदालत में दायर की गई ताजा याचिकाओं में इस संशोधन को भी चुनौती दी गई थी. हालांकि अदालत ने इसे रद्द करने से इनकार कर दिया है.

अब कांग्रेस पार्टी मांग कर रही है कि चूंकि मिश्रा को दिया एक्सटेंशन अवैध घोषित हो गया है, इस दौरान एजेंसी द्वारा दायर किये मामले भी अवैध घोषित किये जाने चाहिए.

पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक थे. बीते पांच सालों में ईडी ने विशेष रूप से विपक्ष के कई नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज किये हैं, जिसकी वजह से उसे लगातार सरकार के राजनीतिक एजेंडा पर काम करने के आरोपों का सामना करना पड़ा है.

ईडी की बढ़ती ताकत

ईडी की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक एजेंसी 51 सांसदों और पूर्व सांसदों और 71 विधायकों और पूर्व विधायकों के खिलाफ धन शोधन के मामलों की जांच कर रही है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे
नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की भी जांच कर रही हैतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO

मीडिया रिपोर्टों के आधार पर इनमें पी चिदंबरम, डीके शिवकुमार, शरद पवार, अनिल देशमुख, सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया समेत कई नेता शामिल हैं. इसके अलावा हाल ही में सरकार ने जीएसटी प्रशासन की संस्था गुड्स एंड सर्विसेज को भी ईडी से जानकारी साझा करने की व्यवस्था कर दी है.

कई व्यापारियों और राजनीतिक दलों का कहना है कि इस कदम से सभी व्यापारियों और उद्योगपतियों को ईडी के निशाने पर ला दिया गया है. लेकिन सरकार का कहना है कि इससे ईडी को कर चोरी के मामलों की और अधिक जानकारी मिलेगी.