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कानून और न्यायपोलैंड

अबॉर्शन से कठोर प्रतिबंध हटाने की ओर पोलैंड का पहला कदम

रितिका
१२ अप्रैल २०२४

पोलैंड की संसद ने अबॉर्शन से कठोर प्रतिबंध को हटाने की मांग के साथ पेश किए गए प्रस्तावों को खास आयोग को भेज दिया है. 2020 में लागू हुए कानून के बाद से ही पोलैंड की महिलाएं लगातार प्रदर्शन कर रही थी.

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पोलैंड में गर्भपात के कानून पर संसदीय बहस के दौरान जुटी महिला अधिकार कार्यकर्ता
पोलैंड में गर्भपात के कानून पर संसदीय बहस के दौरान जुटी महिला अधिकार कार्यकर्ता तस्वीर: Attila Husejnow/SOPA Images via ZUMA Press/picture alliance

पोलैंड की संसद ने अबॉर्शन पर देश के मौजूदा कड़े कानूनों में बदलाव लाने के लिए पेश किए गए प्रस्तावों को खास आयोग को भेजने की मंजूरी दे दी है. पोलैंड यूरोपीय संघ के उन देशों में शामिल है जहां अबॉर्शन के खिलाफ सबसे कठोर कानून हैं. इसे पोलैंड में अबॉर्शन पर लगे कठोर प्रतिबंध हटाने के पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है.

प्रधानमंत्री डॉनल्ड टस्क की गठबंधन की सरकार ने अबॉर्शन के मुद्दे पर चार बिल पेश किए थे. इनमें से दो में 12 हफ्तों तक के भ्रूण का गर्भपात करवाने की इजाजत की मांग की गई है. एक बिल में अबॉर्शन को पूरी तरह कानूनी रूप से वैध करने की बात की गई है. वहीं, आखिरी बिल जो रूढ़िवादी पार्टी थर्ड वेव ने पेश किया है उसमें कहा गया है कि अबॉर्शन कानूनों को 1993 के दौर में ले जाया जाना चाहिए, जब वे सबसे कठोर हुआ करते थे.

संसद के स्पीकर सिमन होलोवनिया ने एक्स पर लिखा, "हमने वादा किया था कि हम इस मुद्दे पर बहस बंद कर देंगे. हमने अपना वादा पूरा किया. पोलैंड 2050 इस बात में भरोसा करता है कि बदलाव जनमत के जरिए मुमकिन है, लेकिन हमने सभी प्रस्तावों को मंजूरी दी. हमने यह फैसला लोकतंत्र का सम्मान और गठबंधन के भविष्य को देखते हुए किया है. अब हमने इन सभी प्रस्तावों को समिति के सदस्यों के हाथों में सौंप दिया है."

नए प्रस्तावों को मंजूरी मिलना कितना आसान

गर्भपात का अधिकार आज पोलैंड के लिए एक बेहद जरूरी राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने टस्क का समर्थन भी इसलिए किया था क्योंकि सत्ता में आने से पहले उन्होंने इस कठोर कानून में बदलाव लाने की उम्मीद जगाई थी. हालांकि, पोलैंड की सरकार द्वारा पेश इन बिलों को मंजूरी मिलने के रास्ते में कई अड़चनें मौजूद हैं. टस्क की सरकार तीन अलग-अलग पार्टियों की गठबंधन की सरकार है. गठबंधन में मौजूद वामपंथी धड़ा इस प्रस्ताव के समर्थन में है. थर्ड वेव पार्टी चाहती है कि अबॉर्शन की इजाजत केवल तभी मिलनी चाहिए जब या तो महिला के साथ अपराध हुआ हो या अगर महिला या भ्रूण को खतरा हो.

स्पीकर होलोवनिया भी रूढ़िवादी विचारों के समर्थक माने जाते हैं. उन पर आरोप लगते रहे हैं कि वे इस मुद्दे पर संसदीय बहस में देर करते रहे हैं. वहीं, राष्ट्रपति आंद्रे डूडा के पास वीटो पावर मौजूद है. पिछले महीने ही उन्होंने उस कानून पर रोक लगा दी थी जिसमें 15 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों और महिलाओं को आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां खरीदने की इजाजत देने की मांग की गई थी.

क्या है अबॉर्शन पर पोलैंड का मौजूदा कानून

पोलैंड में अबॉर्शन 1993 से ही गैर कानूनी है. लेकिन 2020 में इस कानून में किए गए बदलाव ने इसे और कठोर बना दिया. इस बदलाव के बाद अगर भ्रूण में कोई गंभीर समस्या हो तो उस परिस्थिति में भी पोलैंड में महिलाएं अबॉर्शन नहीं करवा सकती हैं. 2020 से पहले के कानून में इसकी इजाजत थी. आंकड़े दिखाते हैं कि हर साल यहां होने वाले 98 फीसदी कानूनी अबॉर्शन उन मामलों में किए गए जिसमें भ्रूण में गंभीर विकार थे.

अगर यह नया प्रस्ताव पास होता है तो पोलैंड अबॉर्शन अधिकारों के मामले में कम से कम पुरानी स्थिति में लौट सकेगा. मौजूदा कानून के तहत सिर्फ बलात्कार, इन्सेस्ट और गर्भवती महिला की जान को अगर खतरा हो तभी अबॉर्शन करवाने की इजाजत है. अगर कोई गैर कानूनी रूप से अबॉर्शन करता है तो उसे आठ साल तक की सजा हो सकती है. अबॉर्शन के मौजूदा कठोर कानूनों के कारण 2020 में सात गर्भवती महिलाओं की मौत हुई. साल 2021 में ऐसी महिलाओं की संख्या नौ थी. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामले सामने नहीं आते इसलिए संभव है कि आंकड़े इससे कहीं अधिक हों.

महिलाओं के लगातार प्रदर्शन और दबाव से बनी बात

अबॉर्शन कानूनों में बदलाव लाने के लिए पोलैंड की महिलाएं लगातार प्रदर्शन करती रही हैं. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने 2020 में किए गए कानूनी बदलाव के बाद पोलैंड के अलग-अलग शहरों में कई मार्च निकाले.  पिछले साल 33 वर्षीय महिला डोरोटा की मौत सेप्टिक के कारण हो गई थी. वह पांच महीने की गर्भवती थीं. इसी तरह 30 साल की इजाबेल की मौत भी पिछले साल सितंबर के महीने में हुई थी. परिवार का कहना था कि डॉक्टरों ने इजाबेल के 22 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात से इनकार कर दिया था. इन मौतों ने महिलाओं के अंदर और गुस्सा भर दिया था.

प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना था कि अगर अबॉर्शन कानूनी होते तो इनकी जान बचाई जा सकती थी. इन बिलों को आयोग के पास भेजे जाने से पोलैंड की महिलाओं के बीच उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों के तहत अबॉर्शन का अधिकार मिलने की एक उम्मीद जरूर जगी है.