आजादी के 76 साल बाद भी हाशिए पर हैं श्रीलंका के ये बागान मजदूर
श्रीलंका में 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव होना है. आर्थिक संकट का सामना कर रहे लोगों को चुनाव से काफी उम्मीदें हैं. इनमें एक समूह चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों का भी है, जो लंबे समय से हाशिए पर हैं.
चाय बागानों में काम करने के लिए भारत से श्रीलंका लाए गए थे
पीढ़ियों पहले चाय बागानों के इन कामगारों के पुरखे भारत से श्रीलंका आए थे. ब्रिटिश राज के दौर में चाय, कॉफी और रबर बागानों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों को यहां लाया गया था. चाय और कॉफी आज भी श्रीलंका से निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पादों में हैं.
करीब 200 सालों से समुदाय है हाशिए पर
समाचार एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 200 साल से यह समुदाय श्रीलंकाई समाज में हाशिये है. 1948 में देश के स्वतंत्र होने के तुरंत बाद नई सरकार ने उनसे नागरिकता और मतदान का अधिकार छीन लिया. भारत के साथ एक समझौते के तहत लगभग 400,000 लोगों को भारत निर्वासित किया गया, जिससे कई परिवार अलग हो गए.
आखिरकार 2003 में मिली नागरिकता
फिर समुदाय ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया और 2003 में उन्हें धीरे-धीरे कई चरणों में नागरिकता मिल गई. आज श्रीलंका में इन बागान मजदूरों के लगभग 15 लाख वंशज रहते हैं. श्रीलंका के कुल मतदाताओं में इनकी संख्या लगभग 3.5 फीसदी है. समुदाय के लगभग 470,000 लोग आज भी बागानों में ही रह रहे हैं.
कई समस्याओं से जूझ रहे हैं ये कामगार
इस समुदाय में गरीबी, कुपोषण, महिलाओं में एनीमिया और शराब की लत जैसी समस्याओं की स्थिति गंभीर है. शिक्षा का स्तर भी कम है. एपी के मुताबिक, बागानों में इनके लिए अच्छी चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं. बीमारों की देखभाल तथाकथित एस्टेट चिकित्सा सहायकों द्वारा की जाती है, जिनके पास कोई मेडिकल डिग्री नहीं है.
कौन है इस हालत क जिम्मेदार
सरकार ने इस समुदाय की स्थिति में सुधार के लिए कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन लंबा वित्तीय संकट और शक्तिशाली बागान कंपनियों का विरोध इनकी तरक्की के आड़े आता रहा. हालांकि, हालिया समय में समुदाय के भीतर शिक्षा की स्थिति बेहतर हुई है.
सरकार के प्रयास समुदाय की समृद्धि के लिए काफी नहीं
पेरियास्वामी मुथुलिंगम, मजदूरों के अधिकारों से जुड़े एक सामाजिक संगठन के कार्यकारी निदेशक हैं. उन्होंने एपी को बताया कि सरकार ने कुछ परिवारों के लिए बेहतर घर बनाए हैं. भारत सरकार और अधिक घर बनाने में मदद कर रही है. इन प्रयासों के बावजूद समुदाय अब भी हाशिए पर ही है. ऐसे में इसके सदस्यों को नई सरकार से उम्मीद है कि वह पिछले वादे निभाएगी और बेहतरी लाएगी. एसके/एसएम (एपी)