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स्वास्थ्यअफ्रीका

गरीब देशों को कम दाम में मिलेंगी फाइजर की दवाएं

२५ मई २०२२

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के दौरान लिए गए एक नए कदम के तहत फाइजर सबसे गरीब देशों को अपनी दवाएं बिना लाभ के बेचेगी. कंपनी के पास पांच प्रमुख श्रेणियों की बीमारियों के लिए 23 दवाओं के पेटेंट हैं.

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Coronavirus | Pfizer Covid Pille
तस्वीर: Jakub Porzycki/NurPhoto/imago images

"एक ज्यादा स्वस्थ दुनिया के लिए एक संधि" नाम की इस शुरुआत में बीमारियों की पांच श्रेणियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना है - संक्रामक बीमारियां, कैंसर, इंफ्लमैशन, दुर्लभ बीमारियां और महिलाओं का स्वास्थ्य. इन पांचों श्रेणियों में फाइजर के पास 23 पेटेंट हैं.

दावोस में इस कदम की घोषणा करते हुए कंपनी के मुख्य अधिकारी अल्बर्ट बुर्ला ने कहा कि सबसे ताजा इलाज तक पहुंच वाले लोगों और इलाज तक ना पहुंच पाने वाले लोगों के बीच की "इस अंतर को खत्म करने की शुरुआत" करने का समय आ गया है.

45 देश इसका हिस्सा बन सकते हैं

फाइजर समूह की अध्यक्ष अंगेला ह्वांग ने कहा, "इस कदम से अमेरिका और यूरोपीय संघ में उपलब्ध फाइजर के पेटेंट वाली दवाइयों करीब 1.2 अरब लोगों तक पहुंच सकेंगी." पांच देशों ने इसमें शामिल होने का फैसला ले लिया है, जिनमें रवांडा, घाना, मलावी, सेनेगल और युगांडा शामिल हैं.

फाइजर
फाइजर सिर्फ उत्पादन और न्यूनतम वितरण खर्च वसूलेगीतस्वीर: SvenSimon/picture alliance

इनके अलावा कम आय वाले 27 और देश और कम से मध्यम आय वाले 18 और देश इसमें भाग लेने के लिए द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर करने के योग्य हैं. रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे ने कहा, "फाइजर के इस कदम ने एक नया मानक स्थापित कर दिया है और हम उम्मीद करते हैं कि और कंपनियां भी इसकी बराबरी करेंगी."

लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि "अतिरिक्त निवेश और अफ्रीका के स्वास्थ्य तंत्र और दवा नियामकों को और मजबूत करने की भी जरूरत होगी."

संस्थान भी हो सकते हैं शामिल

"बिना लाभ के" दाम के तहत एक एक उत्पाद को बनाने और पहले से स्वीकृति प्राप्त एक ठिकाने तक पहुंचाने का खर्च शामिल है. इस पर फाइजर सिर्फ उत्पादन और न्यूनतम वितरण खर्च वसूलेगी.

अफ्रीका
उप-सहरा अफ्रीका में हर 13वे बच्चे की उसके पांचवे जन्मदिन से पहले मौत हो जाती हैतस्वीर: Fotoreport Christoffel-Blindenmission/dpa/picture alliance

अगर किसी देश के पास कोई उत्पाद पहले से किसी और संधि के तहत और कम दाम में उपलब्ध है तो वो कम दाम ही लागू होगा. ह्वांग ने माना कि अधिकांश गरीब देशों के लिए यह दाम देना भी चुनौती भरा होगा और "इसलिए हम वित्त संस्थानों से समर्थन मांग रहे हैं."

फाइजर सरकारों, बहुराष्ट्रीय संगठनों, एनजीओ और दूसरी दवा कंपनियों को भी संधि में शामिल होने के लिए निमंत्रण देगी. विकासशील देशों पर दुनिया की बीमारियों का 70 प्रतिशत भार पड़ता है लेकिन उन तक वैश्विक स्वास्थ्य खर्च का सिर्फ 15 प्रतिशत हिस्सा पहुंच पाता है, जिससे भयानक नतीजे सामने आते हैं.

गरीब देशों के हालात

उप-सहरा अफ्रीका में हर 13वे बच्चे की उसके पांचवे जन्मदिन से पहले मौत हो जाती है. ऊंची आय वाले देशों में ऐसा सिर्फ हर 199वे बच्चे के साथ होता है. कम आय और माध्यम आय वाले देशों में कैंसर से होने वाली मौतें भी ज्यादा होती हैं.

और इन सब की पृष्ठभूमि में है ताजा दवाओं तक पहुंच की कमी. आवश्यक दवाओं और टीकों को सबसे गरीब देशों तक पहुंचने में चार से सात साल लगते हैं. उसके ऊपर से सप्लाई चैन की दिक्कतों और कम संसाधनों वाले स्वास्थ्य तंत्रों की वजह से इनका मरीजों तक पहुंचना और मुश्किल हो जाता है.

सीके/एपी (एएफपी)

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