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लैब में बने हीरे, सदा के लिए और सबके लिए

६ मई २०२१

गहने बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी पैंडोरा ने कहा है कि वह अब खदान से निकाले गए हीरों का इस्तेमाल नहीं करेगी. कंपनी ने कहा है कि अपने गहनों के लिए वह सिर्फ मानवनिर्मित हीरों का प्रयोग करेगी.

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DW Sendung Global 3000 | Diamanten
तस्वीर: DW

ब्रेसलेट्स के लिए मशहूर डेनमार्क की कंपनी पैंडोरा पहले ही बहुत कम गहनों के लिए कुदरती हीरों का इस्तेमाल करती है. सालाना यह करीब साढ़े आठ करोड़ गहने बेचती है जिनमें कुदरती हीरों का इस्तेमाल लगभग 50 हजार गहनों में ही होता है.

इसी सप्ताह जारी एक बयान में पैंडोरा ने बताया कि जल्दी ही ब्रिटेन में कंपनी पहली ऐसी कलेक्शन पेश करेगी जिसमें प्रयोगशाला में बने हीरों का इस्तेमाल हुआ है. 2022 तक कंपनी का लक्ष्य बाकी बाजारों में भी 'पैंडोरा ब्रिलियंस' नामक इस पहल को पेश करना है.

कंपनी के प्रमुख ऐलेग्जेंडर लासिक कहते हैं, "ये हीरे सदा के लिए भी हैं और सबके लिए भी. यह (नई कलेक्शन) कुछ नया करने का प्रतीक तो है ही, यह खूबसूरती को सहेजने का भी प्रतीक है. और हमारे महत्वाकांक्षी सस्टेनेबल एजेंडे को भी आगे बढ़ाती है."

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प्रयोगशाला में बने हीरों की पहुंच युवाओं के बीच बढ़ रही है. ये सस्ते होते हैं और खदानों से नहीं निकाले होने की गारंटी के साथ आते हैं. पिछले दो साल में तो इनकी कीमतों में और भी कमी देखी गई है. ऐसा डि बेयर्स कंपनी के अपनी नीति बदलने के कारण हुआ था. बेन ऐंड कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब सिंथेटिक हीरों की कीमत खदान से निकाले गए हीरों से दस गुना कम हो चुकी है.

पैंडोरा को उम्मीद है कि लैब में बनाए गए हीरे कुदरती हीरों के बाजार को पछाड़ देंगे और इनकी मांग में इसी तरह बढ़त होती रहेगी.

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ये हीरे एक विशेष तकनीक के इस्तेमाल से बनाए जाते हैं. इसमें हाइड्रोकार्बन गैस के मिश्रण को 800 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है. इससे कार्बन के ऐटम टूट कर परत दर परत हीरे के आकार के खोल में जमा होते जाते हैं और क्रिस्टल में बदल जाते हैं.

पैंडोरा अब तक हीरे केजीके डायमंड्स से खरीदती थी. कंपनी का कहना है कि अब वह यूरोप और अमेरिका के सप्लायर्स से लैब में बनाए हीरे लेगी और जो कुदरती हीरे उसके पास पहले से हैं, उन्हें बेच दिया जाएगा.

कुदरती हीरों के विरोधी कहते हैं कि हीरा खदानें जलवायु के लिए नुकसानदायक हैं और कथित खूनी-हीरों से धन विवादग्रस्त इलाकों में में जाता है. हालांकि 2003 में किंबरली प्रोसेस के नाम से एक संस्था बनाई गई थी जिसका मकसद खूनी विवादों में हीरों से मिले धन का इस्तेमाल बंद करना था लेकिन जानकारों का कहना है कि इन चमकदार पत्थरों की तस्करी अब भी जारी है. वैसे कई बड़ी कंपनियां हीरों पर अपनी मुहर लगाती हैं ताकि उनका गलत इस्तेमाल ना हो पाए. इन्हें 'नैतिक हीरे' कहा जाता है. न्यूयॉर्क स्थित टिफनी ऐंड कंपनी ने पिछले साल से अपने ग्राहकों को हर हीरे की पूरी यात्रा बताना शुरू किया जिसके जरिए वे खदान तक की उसकी यात्रा को जान सकते हैं.

पैंडोरा को तो अपने हीरों को लिए ऐसे किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होगी लेकिन उसने स्पष्ट किया है कि उसके लैब में बने हीरों के लिए 60 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल होगा जिसे अगले साल तक सौ फीसदी करने का लक्ष्य है.

वीके/आईबी (रॉयटर्स)

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