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"पाक पीएम से भी ताकतवर है आईएसआई चीफ"

शामिल शम्स
१४ दिसम्बर २०१६

आईएसआई पाकिस्तान की सबसे ताकतवर एजेंसी है. वैसे तो इसका काम बाहरी खतरों से निपटना है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में भी इसका बहुत ज्यादा दखल है.

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Pakistan Naveed Mukhtar
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/S. Adil

पाकिस्तान में नए प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कार्यभार संभालते ही जो सबसे पहला बड़ा काम किया है वो है आईएसआई के प्रमुख को बदलना. उन्होंने जनरल रिजवान अख्तर को हटा कर यह जिम्मेदार लेफ्टिनेंट जनरल नवीद मुख्तार को सौंपी है. संवैधानिक रूप से आईएसआई की जिम्मेदारी बाहरी खतरों से निपटना है, लेकिन पाकिस्तान के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं का कहना है कि व्यवहारिक रूप से पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में आईएसआई का बहुत हस्तक्षेप होता है.

नए आईएसआई चीफ की नियुक्ति प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सेना प्रमुख कमर बाजवा की सलाह पर की है. लेकिन यह बात जगजाहिर है कि पाकिस्तान में सुरक्षा, रक्षा और विदेश नीति से जुड़े मामलों में चुनी हुई सरकारों का ज्यादा दखल नहीं होता. इसीलिए, आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति की घोषणा देश के रक्षा मंत्रालय या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं हुई बल्कि इसका एलान सेना के जनसंपर्क विभाग विभाग की तरफ से किया गया जिसे आईएसपीआर कहते हैं.

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लाहौर में रहने वाले स्तंभकार और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के सदस्य जमान खान ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे नहीं लगता कि नए आईएसआई प्रमुख पुराने प्रमुख से कुछ अलग होंगे. नवीद मुख्तार भी सेना प्रमुख का हुकम बजाएंगे.”

आईएसआई को पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कभी 'स्टेट के भीतर एक स्टेट' कहा था. इस बात से आईएसआई की ताकत का अंदाजा होता है. इसलिए आईएसआई के महानिदेशक को पाकिस्तान में सेना प्रमुख के बाद दूसरा सबसे बड़ा पद माना जाता है.

जमान खान कहते हैं, "हाल के दशकों में आईएसआई की शक्तियों में बहुत इजाफा हुआ है. यह इतनी ताकतवर हो गई है कि अगर चुनी हुई सरकार इसे संवैधानिक जरूरतों के मुताबिक दायरे में लाने की कोशिश करें, तो इसमें बहुत समय लगेगा और यह काम बहुत मुश्किल होगा. लेकिन इतिहास हमें बताता है कि आईएसआई पाकिस्तान में चुनी हुई सरकारों से ज्यादा ताकतवर रही है.”

हालांकि कुछ विश्लेषक मानते हैं कि नवाज शरीफ आईएसआई को सिविलियन सरकार के कंट्रोल में ला सकते हैं. पाकिस्तानी अखबार डॉन के पूर्व संपादक सलीम आजमी कहते हैं, "यह काम किया जा सकता है, लेकिन हमें ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि शरीफ का राजनीतिक करियर भी आईएसआई ने परवान चढ़ाया था.”

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वहीं इस्लामाबाद में एक सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा अब्दुल्ला मानती हैं कि खुफिया एजेंसी आईएसआई को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन चुने हुए नेताओं को इस बारे में लगातार प्रयास करते रहने चाहिए. उनका कहना है, "चुनी हुई सरकारों को सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े मामले पर नियंत्रण करने की कोशिश करनी चाहिए. कम से कम आतंकवाद से निपटने और भारत और अफगानिस्तान के साथ संबंधों जैसे मुद्दों पर सेना और सिविलियन नेतृत्व को मिल कर काम करना चाहिए.”

विश्लेषकों का कहना है कि आईएसआई पर पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार का लगभग न के बराबर नियंत्रण है, लेकिन यह बात भी अपनी जगह सही है कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ धीरे धीरे अपना अधिकार कायम कर रहे हैं. खासकर बतौर सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ के कार्यकाल में विस्तार ना करने के लिए उनके फैसले को इसकी एक मिसाल बताया जा रहा है जबकि जनरल राहील शरीफ के समर्थक उनके एक्सटेंशन के लिए दबाव बना रहे थे.