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गंगा किनारे जैविक गलियारा बनाने का प्रयास

आकांक्षा सक्सेना
५ अगस्त २०२१

गंगा नदी के किनारे जैविक गलियारा बनाना मैदानी इलाके के कायाकल्प का मौका है. गंगा में प्रदूषण न बढ़े इसके लिए पांच राज्य सरकारों के प्रयासों से जैविक गलियारा बनाने का प्रस्ताव है. लेकिन कई चुनौतियां भी हैं.

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गंगा नदी
रासायनिक खाद और कीटनाशकों का गंगा के पानी पर गहरा असरतस्वीर: Payel Samanta/DW

भारत ने 2005 में जैविक कृषि नीति की शुरुआत की, हालांकि देश में फसल बोने का इलाका केवल 2 प्रतिशत यानी 194 करोड़ हेक्टेयर और जैविक खेती के तहत 27.8 लाख हेक्टेयर है. भले ही भारत में जैविक खेती के लिए जमीन कम है लेकिन जैविक किसानों की संख्या के मामले में भारत पहले स्थान पर है. मार्च 2020 तक भारत में जैविक खेती करने वाले 19 लाख से अधिक किसान थे. इसलिए भारत में फसलों को व्यवस्थित रूप से उगाने की बहुत संभावना है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ शाजनीन साइरस गजदार ने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया, "जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, जैविक खेती मिट्टी की जैव विविधता और पानी की गुणवत्ता को बनाए रखती है. पारंपरिक कृषि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान देने वाला प्रमुख कारक है और भारत को उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में शामिल होना चाहिए."

भारत में कीटनाशक
उत्तर भारत में खेती में कीटनाशकों को खूब इस्तेमाल होता हैतस्वीर: Manish Swarup/AP

जैविक खेती के गलियारे

बिहार में जैविक खेती के कई सारे गलियारे हैं जिनमें लगभग 20,000 एकड़ जमीन पर 22,000 से अधिक किसान जैविक खेती में लगे हुए हैं. राजधानी पटना में सड़क पर सब्जियां बेचने वाले विक्रेताओं के पास भी ताजा जैविक उत्पाद उपलब्ध हैं. यह सफल जमीनी अनुभव है. अब केंद्र सरकार चाहती है कि विषैले कीटनाशकों से गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण का बेहतर तरीके से मुकाबला किया जाए. इस संदर्भ में, 2016 में गठित राष्ट्रीय गंगा परिषद, जिसमें गंगा नदी के किनारे बसे राज्यों उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों के अलावा प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, इन पांच राज्यों में गंगा तट के दोनों ओर 5 किमी के इलाके में जैविक समूहों को बढ़ावा दे रहे हैं. यह प्रस्ताव गंगा के मैदानी इलाके में खेती के टिकाऊ तरीके को बढ़ावा देने के लिए बने एजेंडे का हिस्सा है. लेकिन यह क्षेत्र चुनौतियों से भरा है.

भूजल पर निर्भर भारतीय कृषि
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भूजल खतरनाक स्थिति तक गिरातस्वीर: Aditi Mukerji

किसानों की मदद जरूरी

जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ शाजनीन साइरस गजदार कहती हैं, "जैविक खेती के लिए जरूरी संसाधन चाहिए. फसल की बेहतर ग्रेडिंग, छंटाई, पैकेजिंग और विपणन के लिए लघु उद्योग स्थापित करने के लिए सब्सिडी की व्यवस्था होनी चाहिए.अकार्बनिक से कार्बनिक खेती के बदलाव के दौरान कम उपज और फसल के नुकसान के लिए किसानों को मुआवजा देना होगा और जैविक खाद बनाने के लिए मदद देनी होगी. किसानों को बाजारों के बारे में भी प्रशिक्षण लेना होगा. राज्य के कृषि विभागों को विक्रय केंद्रों के संग्रह और परिवहन में मदद करने की जिम्मेदारी भी लेनी होगी."

उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के कानपुर पहुंचने तक नदी के प्राकृतिक प्रवाह का 90% हिस्सा निकल जाता है. गंगा का अधिकांश प्रवाह मुख्य रूप से जल विद्युत उत्पादन और सिंचाई के लिए मोड़ दिया गया है. अगर गंगा बेसिन में जैविक खेती के गलियारे बनेंगे तो गंगा की स्वच्छता और निर्मलता फिर से बहाल हो पाएगी. इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत हर साल लगभग 35 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न करता है. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, यह कचरा कृषि में उपयोग के लिए हरित उर्वरक पैदा करने के अलावा हर साल 18,000 मेगावाट से अधिक बिजली पैदा कर सकता है.

Teesta Fluß, Indien
सिक्किम से गुजरती तीस्ता नदीतस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

सिक्किम का उदाहरण

2016 में, सिक्किम ने खुद को पूरी तरह से जैविक घोषित किया और वह ऐसा करने वाला भारत में पहला और एकमात्र राज्य बना. गैर-सरकारी संगठन वेल्टहुंगरहिल्फे भारत के फिलिप ड्रेसरुसे ने रिपोर्ट किया कि सिक्किम का 100 प्रतिशत जैविक राज्य बनने की प्रक्रिया आसान नहीं थी. पहले कुछ वर्षों में, कई फसलें विफल हुईं और कृषि उत्पादन में भारी कमी आई. मिट्टी में डाले जाने वाले रासायनिक तत्वों को अचानक हटा दिया गया और मिट्टी को अपनी प्राकृतिक उर्वरता हासिल करने में कई साल लग गए.

हालांकि, राज्य सरकार के समर्थन से सिक्किम स्टेट ऑर्गेनिक बोर्ड बनाया गया, जिसने राज्य पूरी तरह से जैविक बनाने के लिए कई नीतिगत उपाय लागू किए. आज सिक्किम के 66,000 से अधिक किसानों को इसका लाभ पहुंचा है. इससे न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि राज्य की पूरी आबादी की जीवन प्रत्याशा भी बढ़ गई है. 2016 तक सिक्किम के लोगों की जीवनदर 1990 की तुलना में दस साल ज्यादा हो गई.

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