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समाज

जर्मनी की जनता ने दिया जोर का झटका

मानुएला कास्पर क्लैरिज
२७ सितम्बर २०२१

जर्मनी के मतदाताओं ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को हिला डाला है. सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी के प्रभुत्व को इतिहास की ओर खिसका दिया गया है. डॉयचे वेले की प्रधान संपादक मानुएला कास्पर-क्लैरिज लिखती हैं कि यह एक जरूरी बदलाव है.

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तस्वीर: Christoph Soeder/dpa/picture alliance

बदलाव हो चुका है. जर्मनी का जनादेश स्पष्ट है. पिछले विशाल गठजोड़ के छोटे छोटे समझौतों का समय खत्म हुआ. अब बड़ी चुनौतियों का सामना करने का वक्त है जैसे कि जलवायु परिवर्तन. डिजिटलीकरण और जर्मनी का आधुनिकीकरण, जो समय की मांग है.

ये पहाड़ से काम अब छोटे दलों के सहयोग से ही पूरे किए जा सकते हैं. अब जितने भी गठबंधनों की संभावनाएं नजर आ रही हैं, उनमें ग्रीन्स और फ्री डेमोक्रैट्स की भूमिका अहम होगी. उनके बिना कुछ नहीं हो पाएगा, और यह एक अच्छी बात है.

जनता क्या चाहती है?

ग्रीन पार्टी को मिले मतों की बड़ी संख्या दिखाती है कि जर्मन मतदाता जलवायु परिवर्तन के लिए चिंतित हैं. इन मतों के भरोसे ग्रीन्स गठबंधन के लिए किसी भी बातचीत में खूब आत्मविश्वास के साथ जाएंगे. उनके साथ बहुत से लोग हैं तो जाहिर है वे अपनी मांगों के लिए ज्यादा जोर भी लगा पाएंगे.

जर्मनी ने क्या जनादेश दिया

लेकिन जर्मनी बदलाव के लिए शायद उतना तैयार नहीं है, जितना ग्रीन्स और उनकी चांसलर पद की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक ने उम्मीद की थी. खासकर वहां, जहां बदलाव के लिए धन देना होगा.

ऐसा इसलिए क्योंकि नवउदारवादी एफडीपी के बिना सरकार बनाना लगभग असंभव है. फ्री डेमोक्रैट्स असल में ग्रीन्स की कुछ इच्छाओं पर पानी फेर सकते हैं. उनका भरोसा बाजार, डिजिटलीकरण और लाल फीताशाही कम करने में है. वे जलवायु परिवर्तन तो चाहते हैं लेकिन टैक्स बढ़ाए बिना. अब ये होगा कैसे, यह उन्हें गठबंधन के लिए होने वाली बातचीत के दौरान स्पष्ट करना होगा.

जमैका गठबंधन

एक चीज जो एकदम स्पष्ट है, वो है रूढ़िवादियों की हार. सीडीयू/सीएसयू को हालांकि मतों का उतना नुकसान नहीं हुआ है जितना कुछ सर्वेक्षणों में दिखाया गया था, फिर भी पिछले चुनाव की तुलना में जो बड़ी गिरावट आई है, उसे आप किसी और तरह से नहीं कह सकते. उनके चांसलर पद के उम्मीदवार आर्मिन लाशेट ने जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन-वेस्टफालिया में मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ उपलब्धियां हासिल की थीं, फिर भी वह बतौर चांसलर उम्मीदवार मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत पाए.

DW Kommentatorenbild Manuela Kasper-Claridge
डॉयचे वेले की प्रधान संपादक मानुएला कास्पर-क्लैरिजतस्वीर: DW/R. Oberhammer

सीडीयू की सहयोगी बवेरिया की पार्टी सीएसयू का समर्थन भी घटा है. 1949 के बाद उनका यह सबसे खराब चुनाव नजर आ रहा है. 16 साल सरकार में रहने के बाद सीडीयू और सीएसयू की यह कथित यूनियन अब विपक्ष के लिए तैयार है.

बेशक, सीडीयू/सीएसयू नई सरकार बनाने की भरसक कोशिशें करेंगे. इसके लिए कथित जमैका गठबंधन किया जा सकता है. जमैका गठबंधन जमैका के झंडे के रंग से आया है, यानी काले, हरे और पीले का गठबंधन. मतलब सीडीयू/सीएसयू का ग्रीन्स और एफडीपी से गठजोड़.

और यह संभव है. भले ही कंजर्वेटिव दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, फिर भी ऐसा हो सकता है. पिछले कुछ दशकों में तीन बार ऐसा हो चुका है कि चांसलर का पद जर्मन संसद की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नहीं मिला. क्योंकि सरकार उसकी बनती है, जिसके पास गठबंधन में बहुमत हो.

मैर्केल 2.0

मध्य-वामपंथी दल एसपीडी के नेता ओलाफ शॉल्त्स के सामने यही चुनौती है. उनकी पार्टी तो सबसे बड़ी बन गई है. हालांकि चुनाव में टक्कर कांटे की थी लेकिन उन्होंने बाजी तो मार ली. चुनाव प्रचार की शुरुआत में सर्वेक्षणों में एसपीडी को मात्र 12 प्रतिशत ही मत मिल रहे थे लेकिन शॉल्त्स ने पासा पलट दिया.

परन्तु, वह निजी तौर पर क्या सोचते हैं और किसे वह सबसे अहम मानते हैं, यह अब भी स्पष्ट नहीं है. वह मैर्केल 2.0 जैसे लगते हैं. यानी उनके बारे में आप अनुमान लगा सकते हैं, तथ्यों पर टिकते हैं और भवनाओं में ज्यादा नहीं बहते. ऐसा लगता है कि मतदाताओं को भी यह पसंद है.

तानों से सफलता तक का सफर

अब शॉल्त्स को दिखाना होगा कि वह क्या कर सकते हैं. अगर वह जर्मनी के अगले चांसलर बनना चाहते हैं तो उन्हें जल्दी ही ग्रीन्स और एफडीपी के साथ गठबंधन की बातचीत शुरू करनी होगी. एक लाल, पीला और हरा – ट्रैफिक लाइट – गठबंधन उनका लक्ष्य है. लेकिन यह आसान नहीं होगा. उन्हें छोटे दलों को कई छूट देनी होंगी. हालांकि उनकी नाक के ठीक नीचे सीडीयू भी यही कर रही होगी.

नतीजा क्या होगा, अभी कोई नहीं जानता. लेकिन जनता ने अपनी बात कह दी है. वे नहीं चाहते कि अंगेला मैर्केल की राजनीति जारी रहे. पिछले दशकों के मुकाबले सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियों की ताकत में बड़ी कमी आई है.

जर्मन राजनीति और रंग-बिरंगी होने वाली है. यह भविष्य के बड़े मुद्दों पर बात करने का मौका है. यह जलवायु के भले के लिए आधुनिक राजनीति करने का मौका है.