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रेलवे को क्या सिर्फ इंजीनियर और अकाउंट्स वाले अधिकारी चाहिए

समीरात्मज मिश्र
६ दिसम्बर २०२२

भारत के रेलवे विभाग में अधिकारियों की नियुक्ति परीक्षा में इंजीनियरिंग, अकाउंट्स और अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि वाले ही बैठ सकते हैं. अब तक यहां कुछ अधिकारी सिविल सेवा से भी चुने जाते थे और कुछ इंजीनियरिंग सर्विस से.

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भारतीय रेल के अधिकारियों की नियुक्ति परीक्षा पर विवाद
भारतीय रेल तस्वीर: Rafiq Maqbool/AP Photo/picture alliance

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के साथ रेलवे के अधिकारी भी इस व्यवस्था को उपयुक्त नहीं बता रहे हैं. पिछले दो तीन साल से रेलवे विभाग में अधिकारी स्तर की नौकरियां का इंतजार कर रहे बड़ी संख्या में छात्र मायूस हो गए हैं. दरअसल, नवगठित इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विसेज यानी आईआरएमएस की अगले साल होने वाली परीक्षा सिर्फ उन्हीं छात्रों के लिए सीमित कर दी गई है जो या तो इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के हैं या फिर कॉमर्स और अर्थशास्त्र की.

रेल मंत्रालय ने कहा है कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विसेज के लिए भर्ती विशेष रूप से तैयार की गई परीक्षा के माध्यम से की जाएगी और परीक्षा कराने की जिम्मेदारी संघ लोकसेवा आयोग यानी यूपीएससी को दी गई है. यूपीएससी 2023 से यह भर्ती परीक्षा आयोजित करेगी.

परीक्षा के विषय को लेकर आपत्ति

इस परीक्षा को प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू- तीन खंडों में बांटा गया है लेकिन परीक्षा में शामिल किए गए विषय को लेकर सबसे ज्यादा विवाद हो रहा है. प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद मुख्य परीक्षा के लिए छात्रों के पास सिर्फ मेकैनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और अकाउंट्स और कॉमर्स विषयों के विकल्प रहेंगे. इसका मतलब यह होगा कि अब इन्हीं चार विषयों के छात्र रेलवे में अधिकारी बन सकेंगे. मानविकी, प्रबंधन, मेडिकल और यहां तक कि इंजीनियरिंग क्षेत्र में भी अन्य विषयों के छात्र रेलवे में अफसर बनने का ख्वाब नहीं देख पाएंगे.

रेलवे के अधिकारियों की नियुक्ति परीक्षा पर विवाद
भारतीय रेल दुनिया में यात्रियों के लिहाज से सबसे बड़ी रेल सेवाओं में एक हैतस्वीर: Shammi Mehra/AFP/Getty Images

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इससे पहले रेलवे में अफसरों की भर्ती के लिए यूपीएससी दो तरह की परीक्षाएं आयोजित करता था. तकनीकी क्षेत्रों की भर्ती के लिए इंजीनियरिंग सर्विसेज परीक्षा आयोजित की जाती थी जबकि लॉजिस्टिक क्षेत्र की तीन सेवाओं यानी यातायात, लेखा, कार्मिक के लिए अफसरों का चयन सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से किया जाता था. तीन साल पहले सिविल सेवा परीक्षा से जुड़े विभागों को अलग कर दिया गया और इंजीनियरिंग सर्विसेज की परीक्षाएं हुई ही नहीं. बताया गया कि आईआरएमस के तहत ये परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी.

रेल विभाग में करीब 12 लाख कर्मचारी काम करते हैं जिनमें आठ हजार अधिकारी स्तर के हैं. बड़ी संख्या में युवा रेलवे की विभिन्न नौकरियों में जाने के लिए लालायित रहते हैं लेकिन सरकार के इस फैसले से उन्हें निराशा हुई है.

बदलावों का मकसद क्या है

रेल मंत्रालय में संयुक्त सचिव रह चुके रिटायर्ड अधिकारी प्रेमपाल शर्मा कहते हैं कि रेलवे सेवा में बदलाव की काफी जरूरतें हैं, लंबे समय से इनकी मांगें भी हो रही हैं और इस बारे में कई समितियां भी बन चुकी हैं, लेकिन मंत्रालय ने जिस तरह के बदलाव का फॉर्मैट तैयार किया है, उससे समझना मुश्किल है कि आखिर उसका उद्देश्य क्या है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में प्रेमपाल शर्मा ने कहा, "बदलाव का स्वागत तो होना चाहिए लेकिन जिस तरह का बदलाव किया गया है, उससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है. केवल एक कैडर बनाने की बजाय बेहतर होता कि तकनीकी और गैर तकनीकी दो कैडर बनाए जाएं. सिविल सेवा परीक्षा से आने वाले एक समूह में और इंजीनियरिंग सेवा वाले दूसरे समूह में. यह जरूर सुनिश्चित किया जाए कि प्रमोशन और सुविधाओं के मामले में वे सब एक समान हों. मौजूदा व्यवस्था की तरह उनमें अंतर ना हो और ना ही कोई भेदभाव हो.”

भारतीय रेल के अधिकारियों की नियुक्त परीक्षा पर विवाद
हर दिन लाखों लोग भारतीय रेल से सफर करते हैंतस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance

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शर्मा बताते हैं कि रेलवे एक तकनीक प्रधान विभाग जरूर है लेकिन ऐसा नहीं है कि उसमें सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञों यानी सिर्फ टेक्नोक्रेट्स की ही जरूरत है. 

उन्होंने यह भी कहा, "मौजूदा व्यवस्था में जैसे यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा और इंजीनियरिंग परीक्षा से अधिकारियों का चयन कर रही थी, उसमें कोई बुराई नहीं है. जरूरत सिर्फ सुधार की है. चयन के बाद दोनों को बड़ौदा में अच्छी तरह से प्रशिक्षित कराइए. जिस व्यवस्था का नोटिफिकेशन जारी किया गया है, उसकी चर्चा काफी दिनों से थी, विरोध भी था इसलिए हम लोगों को लगा कि इसे रिव्यू करेंगे लेकिन इन्होंने वैसे ही नोटिफिकेशन जारी कर दिया. इंजीनियरिंग के विषयों में भी कंप्यूटर जैसे विषय को जगह नहीं मिली है. अकाउंट्स को अचानक से ला कर शामिल कर दिया."

प्रशिक्षण और परीक्षा पर सवाल

रेलवे मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी भी रेलवे में सिर्फ टेक्नोक्रेट्स की भर्ती को ना तो रेलवे के लिए और ना ही यात्रियों के लिए सही मान रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इससे साफ पता चलता है कि नीति तैयार करने वालों में कितनी अदूरदर्शिता है.

इस अधिकारी के मुताबिक, "वास्तव में लोगों को सही दिशा में प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. नेशनल एकेडमी ऑफ इंडियन रेलवे में बीटेक और एमटेक जैसे कोर्सों की पढ़ाई हो रही है. जब आपको रेलवे में सिर्फ इंजीनियरिंग फील्ड के ही अफसरों की भर्ती करनी है तो उन्हें वहीं ऐसा प्रशिक्षण दिलाइए, यूपीएससी से एक और परीक्षा कराने की क्या जरूरत है, और जब परीक्षा से ही ले रहे हैं तो फिर इस कोर्स को कराने का क्या मतलब? यह तो संसाधनों का दुरुपयोग ही है.”

जानकारों के मुताबिक, तकनीकी क्षेत्र के लोगों को अधिकारी के रूप में चुनकर यदि उनका उपयोग गैर-तकनीकी क्षेत्र में होगा तो इससे दोनों ही क्षेत्र कमजोर होंगे. ऐसी स्थिति में निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर पड़ती है. सरकार का कहना है कि उसने नई व्यवस्था विवेक देबरॉय समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार की है लेकिन ऐसा लगता नहीं है.

देबरॉय समिति ने रेलवे विभाग में दो विंग यानी खंड बनाने की बात कही थी- एक आधारभूत ढांचे से संबंधित यानी तकनीकी विंग और दूसरा लॉजिस्टिक सपोर्ट यानी कॉमर्शियल विंग. इन दोनों ही खंडों के सहयोग के लिए अकाउंट विभाग बनाने की सिफारिश की थी. लेकिन आईआरएमएस के तहत सिर्फ इंजीनियरिंग और अकाउंट से संबंधित लोग लिए जाने हैं.

छात्रों की चिंता

सरकार के इस फैसले से प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्र बहुत आक्रोशित हैं. चूंकि सिविल सेवा परीक्षा के जरिए रेलवे के कुछ विभागों में छात्रों का चयन होता था और ये पद काफी लोकप्रिय रहे हैं. मसलन, आईआरटीएस, आईआरएस और आरआरपीएस. इन सभी पदों पर किसी भी विषय से पढ़े हुए छात्र चयनित हो सकते थे लेकिन अब मानविकी, प्रबंधन, गणित, विज्ञान जैसे विषयों के छात्र इससे दूर हो जाएंगे.

दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र अभिषेक सिंह कहते हैं, "सीधा-सीधा मजाक किया गया है. पहले तो रेलवे सर्विसेज को सिविल सर्विसेज से हटाया और अब सभी पदों को एक ही परीक्षा में डाल दिया गया. यह भी नहीं समझा कि बाकी विषयों वाले छात्र कहां जाएंगे. इस बारे में ना तो किसी से चर्चा हुई और ना ही कुछ बताया, सीधे फरमान जारी कर दिया. रेलवे से जुड़े करीब 150 पद सिविल सेवा में कम हो जाएंगे जिसका सीधा नुकसान गैर-इंजीनियरिंग छात्रों को होगा.”

ऐसा नहीं है कि यह व्यवस्था इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए बहुत उपयोगी हो, वो भी इसे बहुत अच्छा नहीं मान रहे हैं. ज्यादातर इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के छात्र मानविकी के विषयों को लेकर सिविल सेवा की तैयारी करते हैं लेकिन अब उनके सामने यह समस्या आएगी कि यदि वे मानविकी विषय के साथ सिविल सेवा की तैयारी करेंगे तो आईआरएमएस के लिए उन्हें अलग से तैयारी करनी होगी, जो बहुत मुश्किल है.

हालांकि इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के लिए पहले भी इंजीनियरिंग के छात्रों को ऐसा करना पड़ता था. ऐसा करने वाले छात्र इंजीनियरिंग के विषयों को ही रखकर दोनों परीक्षा दे लेते थे. लेकिन तब रेलवे की नौकरी में जाने के लिए उनके पास सिविल सेवा का विकल्प रहता था. अब ऐसा नहीं रहेगा.

ऑल इंडिया रेलवे कर्माचारी संघ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा सरकार के इस निर्णय के पूरी तरह से खिलाफ नहीं हैं और कहते हैं कि सुधारों की दिशा में यह एक छोटा सा प्रयास है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "यह सिस्टम पहले भी बिना सोचे-समझे बनाया गया था और आज भी बिना सोचे-समझे बनाया गया है. आईआरएमएस स्पेशलाइजेशन की ओर ले जाए तो ये अच्छा रहेगा लेकिन इसका सामान्यीकरण नहीं करना चाहिए. विशेषज्ञता का जमाना है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ इंजीनियरिंग के लोगों की विशेषज्ञता की ही रेलवे को जरूरत है.”

आजाद भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि

क्या रेलवे के निजीकरण की तैयारी है

दरअसल, रेलवे ऐसा एकमात्र संगठन है जो इतना बड़ा प्रबंधन तो करता है लेकिन इसमें मैनेजमेंट क्षेत्र के लोग नहीं हैं. और ऐसा इसलिए क्योंकि यह सिर्फ धन कमाने के लिए ही नहीं है बल्कि इसका एक मकसद सामाजिक कल्याण भी है. रेलवे की आमदनी ज्यादातर माल भाड़े से होती है.

आजादी के वक्त भी रेलवे परिवहन का सबसे बड़ा साधन था और आज भी है. गरीब और कमजोर लोगों के लिए तो यह परिवहन का शायद आज भी सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम हो. करीब ढाई करोड़ लोग रोज इससे यात्रा कर रहे हैं. नब्बे के दशक तक रेलवे में करीब 20 लाख कर्मचारी थे लेकिन आज उनकी संख्या सिर्फ 12 लाख रह गई है. रेलवे का बजट करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का है जो कि देश के कई राज्यों के बजट से भी ज्यादा है.

लंबे समय तक रेल मंत्रालय को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि अब तक की नीतियां ये रही हैं कि मालभाड़े का उपयोग यात्री यातायात को बनाए रखने और रेलवे की सेहत को बेहतर करने में किया जाए और यात्रियों को सुविधा पहुंचाई जाए. पर अब यह स्थिति बदल रही है और सरकार ऐसी नीतियां तय कर रही है ताकि निजीकरण करने में आसानी हो और जल्दी हो.

अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, "रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के बाद बड़ी-बड़ी बातें की गईं लेकिन सच्चाई यह है कि इस उपक्रम के ऊपर फायदा देने का दबाव है. 2017 के पहले तक ऐसी नीति नहीं थी. अब सरकार रेलवे विभाग को टेक्नोक्रेट की एक ऐसी बॉडी बनाना चाहती है जिसमें चेयरमैन की जगह किसी आईएएस अधिकारी को लाया जाए या किसी प्राइवेट सेक्टर के व्यक्ति को पैरेलेल एंट्री से.”