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प्याज की बढ़ती कीमतों से किसान से लेकर जनता तक परेशान हैं.

आमिर अंसारी
२८ नवम्बर २०१९

प्याज की कीमतों ने आम जनता से लेकर सरकारों को परेशानी में डाल दिया है लेकिन फिलहाल कोई राहत नहीं दिखती है.

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Indien | Zwiebeln auf einem Markt in Kalkutta
तस्वीर: picture alliance/Xinhua News Agency/T. Mondal

दिल्ली के पास नोएडा की श्वेता शर्मा संपन्न परिवार से ताल्लुक रखती हैं लेकिन जब भी प्याज लेने बाजार जाती हैं तो एक से ज्यादा सब्जी वालों से प्याज का दाम पूछती हैं, श्वेता बताती हैं,"प्याज खरीदना बड़ी चुनौती हो गई, कहीं भी प्याज सस्ता नहीं मिलता, पिछले कई हफ्तों से प्याज का दाम बढ़ता ही जा रहा है. 80 रुपये प्रति किलो प्याज खरीदना तो अब आम बात हो गई है." श्वेता यहीं नहीं रुकती हैं वह बताती हैं कि अगर आप अच्छा प्याज खरीदना चाहें तो आपको कई बार एक किलो प्याज के लिए 100 रुपये तक देने पड़ते हैं. 

महाराष्ट्र की कुछ मंडियों में प्याज का थोक भाव 100 रुपये के आसपास पहुंच गया है. आशंका जताई जा रही है कि यह भाव अगली खेप आने तक ऐसा ही बना रहेगा. महाराष्ट्र के प्याज व्यापारियों का कहना है कि कुछ मंडियों में अच्छी क्वालिटी के प्याज का थोक दाम 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया, एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में ही कुछ मंडी में प्याज का थोक भाव सैकड़ा छू रहा है. जिनमें वाशी और सोलापुर की मंडी शामिल हैं.

उत्तर भारत में प्याज का थोक भाव भी काफी ज्यादा है. दिल्ली की आजादपुर मंडी में प्याज का थोक भाव 35 से 60 रुपये प्रति किलो है, जो कि प्याज की क्वालिटी पर निर्भर करता है. अगर खुदरा बाजार की बात करें तो प्याज 60 से लेकर 100 रुपये किलो तक बिक रहा है. दक्षिण भारत के शहरों में भी प्याज की कीमत खुदरा बाजार में 100 रुपये प्रति किलो है, जो कि अच्छी क्वालिटी के हैं. 

Indien Zwiebeln in Kalkutta
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

क्यों महंगा हुआ प्याज

मॉनसून के बाद हुई भारी बारिश ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में प्याज की फसलों को बर्बाद कर दिया. दिल्ली को प्याज का बड़ा हिस्सा गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक से आता है. दूसरी ओर दिल्ली आने वाला प्याज का एक हिस्सा आस-पास के शहरों को भी जाता है. एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में रोजाना 2 हजार टन प्याज की खपत होती है. आस-पास के शहरों के व्यापारियों के दिल्ली से माल उठाने की वजह से मांग रोजाना 2200 से लेकर 2400 टन पहुंच जाती है.  फिलहाल जो फसल दिल्ली आ रही है वह राजस्थान की है, कई व्यापारी सीधे राजस्थान से माल उठाकर दूसरे राज्यों में सप्लाई कर रहे हैं.

राजस्थान के किसान नेता रामपाल जाट कहते हैं, "प्याज की फसल एक बार किसानों के घर से निकल जाती है तो इसकी कीमतें बढ़ने लगती हैं, पूरा खेल बिचौलियों का है. इस खेल में उपभोक्ता भी मर रहा है और उत्पादक भी. हमने सरकार को सुझाव दिए हैं कि वह उत्पादक के लिए न्यूनतम मूल्य तय करें और उपभोक्ता  के लिए अधिकतम मूल्य तय करें. अगर तय कीमत से कम पर कोई उत्पादक से खरीदेगा तो उसे सजा हो और कोई ग्राहक को ज्यादा कीमत पर बेचेगा तो भी सजा हो. लेकिन सरकारों ने हालत ऐसी कर दी है कि जैसे कि इसका कोई इलाज ही ना हो. जबकि इस समस्या का समाधान है."

किसान के पास भंडारण की क्षमता नहीं

रामपाल जाट कहते हैं किसानों के पास जो सबसे बड़ी समस्या है वह भंडारण की है. उनके मुताबिक किसानों के पास भंडारण की क्षमता और सुविधा नहीं है. ऐसे में फसल तैयार होते ही किसान को उसे बेचना पड़ता है और वह कम कीमत पर फसल बेच डालता है. रामपाल कहते हैं जिस दिन किसान के पास भंडारण की सुविधा हो जाएगी उस दिन से किसान और उपभोक्ता इतना परेशान नहीं होगा.

Bangladesch Markt | Zwiebeln
तस्वीर: bdnews24.com/A. Mannan

राजस्थान के सीकर जिले के किसान रणजीत सिंह मील बताते हैं कि एक किलो प्याज के उत्पादन की लागत ही 5-6 रुपये के बीच होती है और उन्हें कई बार लागत मूल्य से कम कीमत पर बेचना पड़ता है, मील कहते हैं, "किसान इतना सक्षम नहीं है कि वह अपना कृषि उत्पाद रोक पाए. फसल तैयार होते ही किसान को पैसे की जरूरत होती है. किसान की मजबूरी हो जाती है कि वह फसल को मंडी में बेचे. हमारे जिले का प्याज फरवरी से लेकर जुलाई तक पैदा होता और मंडी में इसका भाव 2 रुपये से लेकर 10 रुपये किलो तक जाता है. लेकिन ज्यादातर कीमत 2 रुपये से लेकर 7 रुपये तक ही रहती हैं. अधिकतर किसानों को लागत से कम दाम पर ही माल बेचना पड़ता है."

मील कहते हैं ऐसे में फसल उगाने की लागत भी नहीं निकल पाती है जिसमें बीज, खाद, पानी और बिजली शामिल हैं.

दूसरी ओर सरकार ने प्याज की बढ़ती कीमत को देखते हुए व्यापारियों के लिए प्याज भंडारण की सीमा को अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दिया है. खुदरा व्यापारी अब 100 क्विंटल और थोक व्यापारी 500 क्विंटल तक का भंडारण कर सकता है. यह सीमा 30 नवंबर को खत्म हो रही थी. केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि दुनिया भर में प्याज की कीमतें बढ़ीं हैं और भारत पर भी इसका असर दिखा है. साथ ही उनका कहना है कि बाढ़ और बेमौसम बारिश की वजह से प्याज का उत्पादन 26 फीसदी तक घटा है.

कभी प्याज की कीमतों से गिर गई थी सरकार

प्याज सिर्फ जनता और किसानों के आंसू निकालता बल्कि नेताओं की कुर्सी तक छीन लेता है. 1980 में इंदिरा गांधी ने प्याज की महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाया और सत्ता हासिल किया तो वहीं 1998 में सुषमा स्वराज महंगे प्याज के कारण बीजेपी सरकार नहीं बचा पाई.

फिलहाल किसानों के सामने चुनौती है कि वह कैसे अपनी लागत मूल्य को निकाल पाए और कुछ मुनाफा कमा कर अगली फसल के लिए तैयारी कर पाए.

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