व्हीलचेयर पर युद्ध से शांति और फिर शोहरत तक सफर
२१ अक्टूबर २०१६चलना क्या, वह तो खड़ी भी नहीं हो सकती. हर वक्त व्हील चेयर पर रहती है. 17 साल की हो गई है लेकिन अपना कोई काम खुद नहीं कर सकती क्योंकि उसे सेरेबरल पैल्सी नाम की बीमारी है. इस बीमारी के कारण वह ना कभी स्कूल गई, न उसके दोस्त बने, न उसे दूसरी लड़कियों जैसी लड़की समझा गया. और अब अचानक जिंदगी ने उसे सीरिया के युद्ध में बर्बाद हो चुके अलेपो शहर के एक अंधेरे बंद कमरे से दुनिया के सबसे रोशन मंच पर ला खड़ा किया है. फ्रैंकफर्ट के पुस्तक मेले में नूजीन मुस्तफा की पहली किताब धड़ल्ले से बिक रही है. यह किताब उसने जानीमानी पत्रकार क्रिस्टीना लैंब के साथ मिलकर लिखी है. व्हील चेयर पर अलेपो से जर्मनी आने की यह कहानी इतनी दर्दनाक है कि दर्द खुद दवा हो जाता है. इसलिए जब नूजीन बोलती हैं तो आप बस मुंह बाए उसे देखते रहते हैं और मुस्कुराते रहते हैं. वह ऊर्जा और उम्मीदों से भरी हुई हैं. वह कहती हैं, "मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं सबसे अच्छी बन पाऊं. मैं अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती हूं. लेकिन ऐसा ना हो पाया तो मेरे पास प्लान बी भी तैयार है. तब मैं लेखिका बनूंगी. किताबें लिखूंगी. मेरे पास सुनाने के लिए बहुत सारी कहानियां हैं."
नूजीन की पहली किताब उसकी अपनी कहानी है. इसमें उसने बताया है कि अलेपो के एक कमरे में बंद उसका जीवन कैसा था. वह दिनभर टीवी के सामने बैठी रहती थी. पहले यह बैठना सिर्फ बोरियत दूर करने का तरीका था. लेकिन फिर उसने टीवी को अपना टीचर बनाया और उससे सीखना शुरू किया. उसने टीवी से न सिर्फ अंग्रेजी सीखी बल्कि दुनियाभर के बारे में जाना. वह अमेरिकी टीवी सीरीज पर भी उसी अधिकार से बात कर सकती है जिस अधिकार से यूरोप के इतिहास पर बात करती है. और इसका श्रेय वह घंटों घंटों तक टीवी देखने को देती है. लेकिन जब टीवी की आवाजें गोलियों और बम धमाकों के शोर में दबने लगीं तो नूजीन और उसके परिवार को भागना पड़ा. सीरिया में युद्ध शुरू हुआ. पहले उसका परिवार कोबान गया. वहां से हजारों शरणार्थियों की भीड़ में शामिल होकर नूजीन तुर्की पहुंची. और तुर्की से शरण की उम्मीद उसे जर्मनी ले आई.
जर्मनी में नूजीन शरणार्थियों का चेहरा बन गई हैं. वह खबरों में हैं. लोग उससे ऑटोग्राफ ले रहे हैं. इंटरव्यू कर रहे हैं. लेक्चर दिलवा रहे हैं. और अब नूजीन को एक सामान्य जिंदगी की उम्मीद हो गई है. एक उम्मीद जिसमें वह पढ़ सकती है और अपने सपने पूरे कर सकती है. वह कहती है, "स्कूल का आखिरी साल चल रहा है. इसके बाद मैं यूनिवर्सिटी जाऊंगी और खूब पढ़ूंगी. मुझे खूब पढ़ना है."
शरणार्थी संकट को नूजीन बहुत गहराई से समझती हैं. वह कहती हैं, "हम मेहमान हैं. और मेहमानों को मेहमाननवाज का सम्मान करना चाहिए. मैं जानती हूं कि कुछ लोग बहुत बुरे प्रतीक होते हैं. ऐसे शरणार्थी भी हैं. लेकिन हम लोग अपने मेहमान को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते. बल्कि हम तो, संभव हो पाया तो अपने घर लौट जाना चाहते हैं." नूजीन शरणार्थी विरोधियों से कहती हैं कि डरें नहीं. वह कहती हैं, "आप डरिए मत. हमें जानने की कोशिश कीजिए. आप लोग डरे हुए हैं क्योंकि आप हमें जानते नहीं हैं. हम भी आप जैसे ही हैं."
नूजीन के लिए जिंदगी की लड़ाई में कई मोर्चे एक साथ खुले हुए हैं. एक तरफ उसे शरणार्थी होने के संकट से लड़ना है तो दूसरी तरफ अपनी बीमारी से. लेकिन उसका पसंदीदा मोर्चा उसके सपने हैं. जो बहुत बड़े हैं. बहुत ऊंचे. आसमान से भी ऊंचे.
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