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मानवाधिकारऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया में बच्चों पर लगे हजारों के जुर्माने

विवेक कुमार
५ अगस्त २०२२

कानून के जानकारों का मानना है कि बच्चों पर जुर्माना लगाना अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है. ऑस्ट्रेलिया में कोविड के नियमों का उल्लंघन करने पर हजारों बच्चों पर जुर्माना लगाए जाने की खबरें आई थीं.

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ऑस्ट्रेलिया में कोविड के दौरान सख्त पाबंदियां लगाई गई थीं
ऑस्ट्रेलिया में कोविड के दौरान सख्त पाबंदियां लगाई गई थींतस्वीर: Asanka Ratnayake/Getty Images

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य ने कोविड के नियमों का उल्लंघन करने पर बच्चों पर जुर्माना लगाया है जिसे कानून के जानकारों ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताया है. यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स में कानून पढ़ाने वालीं सीनियर लेक्चरर डॉ. नेओम पेलेग के मुताबिक 10 साल तक के छोटे बच्चों पर जुर्माने का यह सुझाव ही क्रूरतापूर्ण है और संयुक्त राष्ट्र की ‘कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड' के तहत तय किए गए बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है.

डॉ. पेलेग कहती हैं, "जुर्माना अपने आप में ‘कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड' का उल्लंघन है. इस जुर्माने को अदा करने के लिए काम करने को मजबूर करना दूसरा उल्लंघन है. बाल अधिकारों के तहत बच्चों पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता और उसे वसूल करने के लिए बच्चों से काम नहीं कराया जा सकता. न्यू साउथ वेल्स राज्य की सरकार के ये उपाय सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय व्यवहार से मेल नहीं खाते.”

अखबार ‘द गार्डियन ऑस्ट्रेलिया' ने पिछले महीने खबर छापी थी कि 10 से 17 साल तक के बच्चों के लगभग 3,000 बच्चों पर जन स्वास्थ्य अधिनियम के तहत कोविड-19 महामारी का प्रसार रोकने के लिए लागू की गईं पाबंदियों का उल्लंघन करने के लिए जुर्माने लगाए गए थे. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि राज्य के राजस्व विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि इन जुर्मानों की अदाएगी के लिए ‘वर्क एंड डिवेलपमेंट ऑर्डर्स' (WDO) भी जारी किए गए हैं. डब्ल्यूडीओ एक व्यवस्था है जिसके तहत सार्वजनिक काम, काउंसलिंग कोर्स या इलाज आदि में हिस्सा लेकर लोग अपना जुर्माना कम करवा सकते हैं.

हजारों का जुर्माना

ऑस्ट्रेलिया के रेडफर्न लीगल सेंटर ने इस संबंध में कुछ डेटा जुटाया है. यह डेटा बताता है कि 15 साल की आयु के करीब 500 बच्चों पर लगभग 20 हजार डॉलर का जुर्माना लगाया गया जिनमें से 34 अपना जुर्माना कम कराने के लिए अवैतनिक काम कर रहे थे. इन आंकड़ों से यह भी पता चला कि उन क्षेत्रों में ज्यादा जुर्माने लगाए गए जहां आदिवासियों की आबादी ज्यादा है.

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गार्डियन ऑस्ट्रेलिया की रिपोर्ट में कुछ लोगों के अनुभव भी बताए गए थे. उदाहरण के लिए एक किशोर जोड़ा सिडनी में कोविड लॉकडाउन के दौरान व्यायाम के लिए साइकलिंग कर रहा था जो कि उनके घर के पांच किलोमीटर के दायरे के भीतर ही था. तब उन्हें पुलिस ने रोका और बताया कि वे अपनी काउंसिल की सीमा पार कर चुके हैं. किशोरों ने पुलिस अफसर को बताना चाहा कि उन्हें लगा वे पांच किलोमीटर के दायरे में ही हैं लेकिन उन दोनों को एक-एक हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 54 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया गया.

अखबार ने राजस्व विभाग की सफाई भी छापी थी जिसके मुताबिक हर व्यक्ति का मामला अलग था और कोई भी व्यक्तिगत रूप से उससे संपर्क कर सकता है. विभाग का कहना था कि काम करना वैकल्पिक है और किसी पर थोपा नहीं गया है. एक प्रवक्ता ने बताया, "अवैतनिक कामों में कम्युनिटी इवेंट के लिए वॉलंटियर करना, किसी स्पोर्ट्स ग्राउंड में सामान पैक करना, किसी मैच के दौरान कैंटीन में मदद करना आदि शामिल हैं.”

क्या हैं यूएन के मूल्य?

डॉ. पेलेग कहती हैं कि अगर बच्चे यह जुर्माना अदा नहीं कर पाते हैं और उन्हें काम करना पड़ता है तो यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का सीधा उल्लंघन होगा. उन्होंने कहा, "अगर वे जुर्माना नहीं दे पाए और डब्ल्यूडीओ के तहत उन्हें काम करना पड़ता है तो यूएन कन्वेशन के मुख्य मूल्यों के उल्लंघन की संभावना बनती है. इन नियमों में हिस्सेदारी का अधिकार, भेदभाव के विरुद्ध अधिकार, जीवन का अधिकार तथा जीवित रहने और आगे बढ़ने का अधिकार जैसे मूल्य शामिल हैं.”

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‘यूएन कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ चाइल्ड' की धारा 32 कहती है कि "सरकारों को बच्चों को खतरनाक या ऐसे कार्यों से बचाना चाहिए जो उनके स्वास्थ्य या शिक्षा को नुकसान पहुंचा सकते हैं.” डॉ. पेलेग कहती हैं कि बच्चों को स्कूल में रखना प्राथमिकता होनी चाहिए ना कि उनसे काम करवाना. उन्होंने बताया, "बच्चों के हितों की सुरक्षा की जिम्मेदारी और उनके बीच भेदभाव ना करने के मूल्यों का यह सरासर उल्लंघन है.”

2020 और 2021 के बीच राज्य सरकार ने लगभग 45,000 जुर्माने जारी किए थे जो अब तक अदा नहीं किए गए हैं.

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