जर्मनी में लोगों को कैसा खाना भाता है?
आप जब खाने-पीने की चीजें खरीदने बाजार जाते हैं, तो कैसे फैसला लेते हैं कि क्या खरीदना है और क्या नहीं? एक ताजा सर्वे से जर्मनी के लोगों के बारे में कई दिलचस्प बातें पता चलीं कि वो खाने की खरीदारी कैसे करते हैं.
जीभ का स्वाद, लेकिन पहले आंखों को भाता है
खाना-पीना सिर्फ जीभ की बात नहीं है. जीभ तक पहुंचने से पहले हमारी दो इंद्रियां खाने को ताड़ती हैं. पहले तो, खाना दिखता कैसा है. फिर, उसकी गंध कैसी है. हमारा मनपसंद खाना भी अगर दिल लुभाने सा ना दिखे, तो उतना मजा नहीं आता. नए रुझान बताते हैं कि अब लोग खाना खरीदते समय कई पक्षों पर ध्यान देते हैं.
पोषण के लिए ज्यादा सजग हो रहे हैं लोग
एक हालिया सर्वे में पता चला कि जर्मनी में अब लोग खाने-पीने की चीजें खरीदते हुए ज्यादा सजग रहते हैं. मसलन, खाने में कौन सी चीजें डली हैं. उसमें पोषण का स्तर क्या है. उसे कैसे बनाया गया है. "जर्मनी, ऐज इट ईट्स" नाम की एक नई सर्वे रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है. जर्मनी के कृषि मंत्री चेम ओज्देमीर ने बीते दिनों राजधानी बर्लिन में यह रिपोर्ट जारी की.
खाने के न्यूट्रिशनल स्कोर पर ज्यादा ध्यान
ज्यादातर डिब्बाबंद/पैकेज्ड खाने में लिखा होता है कि उस उत्पाद का न्यूट्रिशनल स्कोर क्या है. इसकी 'ए' से लेकर 'ई' तक पूरी रेंज होती है. जहां ए का मतलब है पौष्टिक आहार तो वहीं ई का मतलब हुआ बहुत ज्यादा कैलरी और कम पोषण वाला खाना. अगर कोई सिर्फ 'ए' कैटगरी का ही खाना खाए, तो वो भी बहुत संतुलित आहार नहीं है. पैकेज्ड खाना आखिरकार है तो प्रॉसेस किया हुआ.
पैकेज्ड खाने पर जानकारियां स्पष्ट हों
पैकेज्ड खाने के डब्बे पर दर्ज होता है कि उसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, नमक, चीनी वगैरह कितना है. ये जानकारी और पोषण वाली स्कोरिंग रंग ला रही है. कृषि मंत्री चेम ओज्देमीर ने खाद्य उत्पादों पर ज्यादा स्पष्ट लेबल लगाए जाने के प्रयासों की तारीफ की. उन्होंने बताया कि सर्वे में ज्यादातर लोगों का मानना था कि पैकेज्ड खाने पर पोषण का स्तर स्पष्ट दर्ज होना ही चाहिए.
कम चीनी, बिना कीटनाशक वाले खाने को तरजीह
कम चीनी वाले खाने को तवज्जो देने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, सामान खरीदते हुए लोग इन चीजों पर भी गौर करते हैं कि क्या वह उत्पाद ईयू में बना या उगाया गया हुआ है या फिर कहीं बाहर से आया है. इसके अलावा चीजों पर लगे ऑर्गेनिक लेबल पर भी लोग ध्यान देते हैं. जर्मन ग्राहकों में कीटनाशकों को लेकर काफी जागरुकता है.
जिन जानवरों से चीजें मिलीं, उनकी हालत क्या है?
लोगों में 'एनिमल वेलफेयर' के लिए भी आग्रह बढ़ा है. जानवरों से मिलने वाले उत्पादों में लोग इस पक्ष पर भी ध्यान देते हैं कि उन पशुओं के साथ कैसा बर्ताव होता है, किस हालत में रखा जाता है. सर्वे में शामिल 84 फीसदी लोगों ने कहा कि एनिमल प्रॉडक्ट्स पर यह दर्ज करना अनिवार्य होना चाहिए कि उसमें शामिल जानवरों के साथ कैसा व्यवहार हुआ/होता है.
बढ़ रहे हैं शाकाहारी और वीगन
जर्मनी, यूरोप के उन देशों में है जहां वीगन खाना/उत्पाद काफी सहज उपलब्ध हैं. सर्वे में भी सामने आया कि जर्मनी में शाकाहारियों और वीगन लोगों की संख्या बढ़ रही है. 71 फीसदी प्रतिभागियों ने दिन में कम-से-कम एक बार के खाने में फल और सब्जियों को प्राथमिकता दी. केवल 23 फीसदी लोगों ने कहा कि वे हर दिन मांस खाते हैं. 10 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जो एक दिन छोड़कर वीगन या शाकाहारी खाना खाते हैं.
स्वाद अब भी सबसे जरूरी
स्वाद अब भी खाने में लोगों की प्राथमिकता है. सर्वे में 99 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि खाने की बात हो, तो स्वाद सबसे अव्वल पक्ष है. हालांकि, स्वाद की लोकप्रियता पर क्या हैरानी! दिलचस्प यह है कि 91 फीसदी लोगों ने कहा कि खाना सेहतमंद होना चाहिए. वहीं, 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि जो फटाफट बनाया जा सके और आसानी से बने, वो खाना बढ़िया है. एसएम/आरपी