वे बस्तियां, जहां इंसान नाम की कोई चीज नहीं
कहीं अमीरों के लिए आलीशान कोठियां बन रही थीं, तो कहीं कामगारों की बस्तियां पनप रहीं थीं. दुनिया के कुछ ऐसे इलाके आज वीरान पड़े हैं.
अधूरी विलासिता
तुर्की के बोलु प्रांत में फ्रेंच स्टाइल के 587 आलीशान विला बनाए जा रहे थे. निर्माण 80 फीसदी पूरा भी हो चुका था. तभी कंस्ट्रक्शन कंपनी दिवालिया हो गई. 2014 में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अब घोस्ट टाउन कहा जाता है.
खत्म हुई चमक
दक्षिणी नामीबिया का कोलेमानस्कोप कभी अफ्रीका के सबसे अमीर शहरों में से एक था. यहां हीरे की खुदाई होती थी. उस वक्त यहां कुछ नामी अमीरों समेत 400 लोग रहते थे. 1950 के दशक के आखिर में खनन बंद करना पड़ा. उसके बाद धीरे-धीरे यह कस्बा रेत के हवाले हो गया.
कोयला खत्म, शहर खत्म
नॉर्वे के स्वालबार्ड में कभी खूब कोयला खोदा जाता था. यह कभी सोवियत संघ का हिस्सा था. सोवियत संघ के टूटने के बाद भी रूसी परिवार लंबे समय तक यहां रहे, लेकिन खुदाई बंद होते ही स्वालबार्ड में जिंदगी थमने लगी. 1998 में आखिरी इंसान ने भी स्वालबार्ड छोड़ दिया.
रोजी-रोटी की तलाश में
जर्मन शहर मानहाइम के पास बसा कस्बा केरपन. कुछ साल पहले तक यहां 1,400 लोग रहते थे, लेकिन अब यह बिल्कुल खाली है. यहां भी कोयले की खदान पर निर्भर लोगों की बस्ती थी. खदान का ऑपरेशन थमने के साथ-साथ कर्मचारी भी बेहतर भविष्य के लिए केरपन से बाहर निकल गए.
मंदी की मार
स्पेन में भूतिया कस्बे बड़ी संख्या में हैं. निर्माण उद्योग के बूम के दौरान वहां कई इमारतें बनाई गईं, पर खरीदार नहीं मिले. राजधानी मैड्रिड से 60 किलोमीटर दूर अल्देलोस नाम का यह शहर 30,000 लोगों के लिए बनाया गया था. लेकिन, घर बिके ही नहीं और डेवलपर बर्बाद हो गए.
टापू की जिंदगी से दूर
जापान के हाशिमा नागासाकी द्वीप पर कभी 5,300 लोग रहा करते थे. 1885 से 1974 तक यहां से खूब कोयला खोदा गया. लेकिन, बाद में जहाजों के जरिए कोयले को मुख्य द्वीप तक पहुंचाना बहुत ही खर्चीला साबित होने लगा. 1974 में कोयले का काम बंद होते ही ये द्वीप भी इंसानविहीन हो गया.