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नई ऑस्ट्रेलिया सरकार में कैसे होंगे भारत के साथ संबंध

विवेक कुमार
२६ मई २०२२

ऑस्ट्रेलिया में 9 साल बाद लेबर पार्टी की सरकार आई है. यानी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार लेबर पार्टी सत्ता में है. क्या इससे दोनों देशों के मजबूत होते संबंधों पर फर्क पड़ेगा?

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टोक्यो में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
टोक्यो में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: CHARLY TRIBALLEAU/AFP

अजब संयोग रहा कि ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी शपथ ग्रहण के तुरंत बाद जापान की यात्रा पर गए, जहां कई नेताओं के साथ-साथ उनकी मुलाकात भारतीय प्रधानमंत्री से भी हुई.

जापान की राजधानी टोक्यो में हुई भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात विशेष है, क्योंकि दोनों देशों के संबंध इस वक्त समय के शायद सबसे ऊंचे मुकाम पर हैं. दोनों देशों ने हाल ही में एक बड़े व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे पांच साल में आपसी व्यापार का आकार दोगुना हो जाने की उम्मीद है. इसके अलावा रक्षा संबंध भी अपने चरम पर हैं और दोनों ही देशों की सेनाओं के अधिकारी लगातार एक-दूसरे के यहां आ-जा रहे हैं. चूंकि देश की पिछली मॉरिसन सरकार ने भारत के साथ संबंधों को आकार देने में खासी मेहनत की थी, लिहाजा सरकार के बदल जाने के बाद ऐसे सवाल उठना लाजमी हैं कि नया प्रधानमंत्री इन संबंधों को कहां लेकर जाना चाहेगा.

ऐसे में सरकार बदलने के फौरन बाद दोनों नेताओं की मुलाकात पर सबकी नजर थी. इस मुलाकात के बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने भारत को एक अहम साझीदार बताया. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "आने वाले कुछ सालों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. उसके साथ हमारे रिश्ते बेहद महत्वपूर्ण हैं. ऑस्ट्रेलिया में भारत का समुदाय भी बड़ा हो रहा है."

नरेंद्र मोदी ने अल्बानीजी को भारत आने का न्योता भी दिया, जिसे अल्बानीजी ने स्वीकार कर लिया. उन्होंने कहा, "मैं भारतीय प्रधानमंत्री से मिला. हमारी रचनात्मक बातचीत हुई. मैंने भारत की कई बार यात्रा की है. एक बैकपैकर के तौर पर भी और एक संसदीय दल के नेता के तौर पर भी. मुझे बहुत खुशी हुई कि प्रधानमंत्री मोदी ने मुझे भारत आने का न्योता दिया, जिसके लिए हम कुछ तारीखों पर काम करेंगे.”

नई सरकार और द्विपक्षीय संबंध

भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों की बारीकियां समझने वाले विशेषज्ञों को नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं. भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को लेकर पिछले कई साल से काम कर रहीं न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की जनरल मैनेजर नताशा झा भास्कर कहती हैं कि क्वॉड सम्मेलन में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच जो बातचीत हुई है, वह अच्छे संकेत देती है.

हाल ही में पर्थ यूएसएशिया सेंटर की नॉन रेजिडेंट इंडो-पैसिफिक फेलो चुनी गईं नताशा झा-भास्कर ने डॉयचे वेले को बताया, "मैं द्विपक्षीय संबंधों को लेकर बहुत आशावान हूं. क्वॉड में जो बातचीत हुई, वह दिखाती है कि हम एक ज्यादा मजबूत प्रतिबद्धता और सहयोग का दौर देखेंगे, जहां गतिरोध कम होंगे और सगंठित होकर कदम उठाए जाएंगे.

नताशा झा-भास्कर कहती हैं कि भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में बेहतरी 2020 में जारी की गई समग्र रणनीतिक साझीदारी नीति से जुड़ी है. वहीं मार्च में हुआ एकता व्यापार समझौता एक आधार देता है, जिस पर दोनों देश काम कर सकते हैं.

दस साल के विचार-विमर्श के बाद मार्च मेंभारत और ऑस्ट्रेलिया ने एकता (IA ECTA) समझौते पर दस्तखत किए थे. दस साल में भारत का किसी विकसित अर्थव्यवस्था के साथ यह पहला व्यापार समझौता है, जिससे पांच साल में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार 27.5 अरब डॉलर यानी लगभग 20 खरब रुपये के मौजूदा स्तर से बढ़कर 45-50 अरब डॉलर होने की उम्मीद है. झा-भास्कर कहती हैं कि व्यापार और निवेश, रक्षा निर्माण, अक्षय ऊर्जा और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सक्रियता जैसे-जैसे बढ़ेगी, समझौते की जड़ें और गहरी होंगी.

सीधे काम पर बातचीत

भारत के प्रधानमंत्री ने भी अल्बानीजी से मुलाकात पर संतोष जाहिर किया. ट्विटर पर उन्होंने बताया कि उनकी मुलाकात काफी अच्छी रही और दोनों देशों के संबंधों की मजबूती पर बातचीत हुई. छोटी सी मुलाकात में ही उन्होंने काम की बातचीत भी की. उन्होंने एक प्रस्ताव रखा, जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर भारत में ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा उपलब्ध कराने की बात है.

अल्बानीजी ने बताया, "हमने शिक्षा के आदान-प्रदान पर बात की. खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों के भारत के बदलते हालात से फायदा उठाने पर बात हुई. चर्चा हुई कि ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों से शिक्षा हासिल कर रहे भारतीय छात्र अपनी कम से कम आधी शिक्षा भारत में रहकर ही पूरी करें. फिर बाकी डिग्री पूरी करने के लिए ऑस्ट्रेलिया आएं. प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रस्ताव काफी दिलचस्प है, जिससे दोनों देशों का फायदा हो सकता है.

ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या ऐतिहासिक रूप से चरम पर है और लगातार बढ़ रही है. भारत में पढ़ाई की गुणवत्ता के प्रति बढ़ती चिंता वहां के छात्रों को विदेश जाकर पढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है. पिछले साल आई यूनेस्को साइंस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित की पढ़ाई की गुणवत्ता बड़ी चिंता का विषय है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 47 प्रतिशत छात्र ही रोजगार पाने लायक थे. यानी आधे से ज्यादा छात्र ऐसे थे, जो पढ़ाई करने के बावजूद नौकरी करने लायक ज्ञान नहीं रखते. यह एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया के सौ सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है. इसके उलट अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के दर्जनों विश्वविद्यालय इस सूची में जगह बनाने के लिए संघर्ष करते हैं. इसका फायदा ऑस्ट्रेलिया उठाना चाहता है, क्योंकि उच्च शिक्षा उसके लिए बेहद अहम आर्थिक क्षेत्र है.

भारतीय छात्रों को ऑस्ट्रेलिया का वीजा पाने में मदद करने वालीं माइग्रेशन एक्सपर्ट चमनप्रीत कहती हैं कि छात्रों और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए यह अच्छी खबर है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह बात दिखाती है कि सरकारें छात्रों और द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिए नए मौके तलाश रही हैं."

2023 का क्वॉड सम्मेलन ऑस्ट्रेलिया में होगा. यानी भारत के प्रधानमंत्री को ऑस्ट्रेलिया आने का मौका मिलेगा, जो उनकी दूसरी ऑस्ट्रेलिया यात्रा होगी.  2014 में नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री की 28 साल में पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा थी.