यूरोप की सुरक्षा में नाटो के आगे बड़ी चुनौतियां
२५ जुलाई २०२४यूक्रेन युद्ध और नवंबर में होने जा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव, ये दोनों मुद्दे वॉशिंगटन में हुए हालिया नाटो सम्मेलन में छाए रहे. ये पक्ष तो फिर भी सार्वजनिक हैं, लेकिन लोगों की नजरों से दूर एक और मसला अहम रहा.
नाटो के सैन्य योजनाकारों ने यूरोप में सुरक्षा ढांचे की चरमराती स्थिति और इसे दुरुस्त करने में लगने वाली बड़ी रकम के आकलन पर प्रमुखता से विचार किया. पिछले साल नाटो के नेताओं में रक्षा क्षमताओं में बड़े स्तर पर सुधार करने की सहमति बनी थी. फरवरी 2022 में रूस के हमले से शुरू हुए यूक्रेन युद्ध के बाद ही यूरोप में सुरक्षा बढ़ाने और सैन्य उपकरणों पर बड़ा खर्च किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है.
रक्षा ढांचा सुधारने में करना होगा बड़ा खर्च
इन योजनाओं पर अमल के लिए नाटो के अधिकारी बहुत बारीकी से इस बात पर विचार कर रहे हैं कि रक्षा से जुड़ी न्यूनतम जरूरतें क्या हैं. एक सैन्य योजनाकार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इन रक्षा जरूरतों का ब्योरा सदस्य देशों की सरकारों को भेजा गया है.
रक्षा से जुड़े अहम क्षेत्रों में नाटो सेनाओं की कमियों का भी विस्तार से विश्लेषण किया गया है. साथ ही, इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए अनुमानित लागत का भी आकलन किया गया है. नाटो इन्हें सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी बनाना चाहता है.
नाटो के सम्मेलन में क्या कर रहे हैं आईपी-4 देश
अगले साल नाटो के रक्षा मंत्रियों की एक अहम बैठक में इसपर फैसला लिया जा सकता है. इसके तहत, यूरोप की सुरक्षा के लिए सदस्य देशों को रक्षा ढांचे की मरम्मत में बड़ा खर्च उठाना पड़ सकता है.
नाटो को किन क्षेत्रों में ध्यान देने की जरूरत
रॉयटर्स ने इस गोपनीय योजना के बारे में यूरोप के 12 सैन्य और नागरिक सेवा के अधिकारियों से बात की. उन्होंने छह ऐसे क्षेत्र रेखांकित किए, जिन्हें नाटो ने सबसे जरूरी माना है. इनमें हवाई रक्षा, लंबी दूरी की मिसाइलें, सैनिकों की संख्या, साजोसामान, ढुलाई और सैन्य परिवहन और लड़ाई के मैदान पर सुरक्षित डिजिटल संवाद की कमी जैसे पक्ष शामिल हैं.
जानकारों के मुताबिक, इन लक्ष्यों को हासिल करना नाटो के लिए धीमी प्रक्रिया साबित हो सकती है. यूरोप के बड़े नाटो सदस्यों के बीच बजट संबंधी सीमाओं से एकजुटता पर असर पड़ सकता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर चिंता
अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव भी नाटो की एकजुटता पर असर डाल सकते हैं. यूरोपीय देश, डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की संभावनाओं के कारण सुरक्षा और अलायंस के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. ट्रंप ने यूरोप के सहयोगी देशों पर अमेरिका की ओर से मिलने वाली सैन्य सहायता का फायदा उठाने का आरोप लगाया है. वह पहले भी नाटो के यूरोपीय सहयोगियों की पर्याप्त फंड ना देने के लिए आलोचना करते रहे हैं.
नाटो सम्मेलन में यूक्रेन को और ज्यादा मदद का एलान
वॉशिंगटन सम्मेलन के दौरान यूरोप के कुछ नेताओं ने खुलकर स्वीकार किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चाहे कोई भी जीते, लेकिन यूरोप को अपना सैन्य खर्च बढ़ाना होगा. ब्रिटेन के रक्षा सचिव जॉन हेली ने कहा, "हमें यह स्वीकार करना होगा कि चाहे राष्ट्रपति चुनाव का जो भी नतीजा हो, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर अमेरिका की प्राथमिकता तेजी से बदलेगी. ऐसे में नाटो में शामिल यूरोपीय देशों को ज्यादा प्रयास करने होंगे."
यूरोप को हर हाल में बढ़ाना होगा रक्षा खर्च
रॉयटर्स के एक सवाल का जवाब देते हुए नाटो के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि वॉशिंगटन सम्मेलन में अलायंस के सदस्यों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि कई मामलों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के दो प्रतिशत हिस्से से ज्यादा खर्च होने की स्थिति में रेमेडी शॉर्टफॉल की जरूरत पड़ेगी. वित्तीय शब्दावली में शॉर्टफॉल से अभिप्राय किसी आर्थिक दायित्व के लिए जरूरी रकम के मद्देनजर अपर्याप्त फंड उपलब्ध होने से है.
नाटो अधिकारी ने बताया कि नाटो में 23 सदस्य ऐसे हैं, जो अब न्यूनतम दो प्रतिशत या इससे अधिक खर्च कर रहे हैं. इस अधिकारी के मुताबिक, "अमेरिकी चुनाव 2024 के नतीजे चाहे जो हों, यूरोपीय सहयोगियों को अपनी रक्षा क्षमता, सैनिकों की तैयारी और युद्ध सामग्री बढ़ाते रहने की जरूरत होगी."
रक्षा मद में खर्च बढ़ाने की बड़ी चुनौती
शीत युद्ध खत्म होने के बाद से पहली बार नाटो इतनी ज्यादा सावधानी बरत रहा है. अलर्ट स्टेज अपने उच्चतम स्तर पर है. कई अधिकारियों को अंदेशा है कि आने वाले कुछ साल बड़े निर्णायक साबित हो सकते हैं. जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस चेतावनी देते हैं कि अगले पांच साल में रूस का हमला नाटो की सीमा तक पहुंच सकता है. श्पीगल पत्रिका के मुताबिक, हाल ही में संसद के भीतर पिस्टोरियस ने कहा कि जर्मनी को साल 2029 तक युद्ध के लिए तैयार हो जाना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि "जब पुतिन इतना आगे आ गए हैं, तो यह नहीं मानना चाहिए कि वह यूक्रेनी सीमा तक ही रुक जाएंगे."
एक ओर जहां जानकार रूस को 'वॉर इकोनॉमी' बता रहे हैं, वहीं यूरोपीय सरकारों के लिए रक्षा क्षेत्र पर खर्च बढ़ाना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. पहले ही लोगों पर महंगाई और जीवनस्तर के बढ़ते खर्च का बोझ है. ऐसे में युद्ध की तैयारियों के लिए खर्च बढ़ाने पर करदाता विरोध कर सकते हैं. खासतौर पर तब, जबकि कई लोगों को युद्ध बहुत दूर की संभावना लगती है.
जर्मनी को सेना में विस्तार की जरूरत
नाटो के सैन्य रणनीतिकारों का अनुमान है कि रूस के हमले की स्थिति में उन्हें 35 से 50 अतिरिक्त ब्रिगेडों की जरूरत होगी. एक ब्रिगेड में 3,000 से 7,000 सैनिक होते हैं. इसका मतलब हुआ है कि नाटो को 3,50,000 तक अतिरिक्त सैनिक चाहिए होंगे.
जर्मनी के संदर्भ में देखें, तो उसे तीन से पांच अतिरिक्त ब्रिगेड यानी, 30 हजार तक अतिरिक्त सैनिकों की जरूरत पड़ सकती है. जर्मन सरकार फिलहाल तीन डिविजनों पर काम कर रही है. उसे कम-से-कम एक और डिविजन तैयार करने की जरूरत पड़ेगी. यह गोपनीय योजना है और बर्लिन ने इसपर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
जर्मनी में सेना की ताकत बढ़ाने के लिए नई सैन्य सेवा लाने की तैयारी
नाटो में अब तक सबसे ज्यादा योगदान अमेरिका देता आया है. जून में प्रकाशित आंकड़़ों के मुताबिक, 2024 में अमेरिका 967 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम रक्षा मद में खर्च करेगा. यह जर्मनी के खर्च से करीब 10 गुना ज्यादा है.
नाटो में योगदान देने वालों में दूसरा बड़ा देश जर्मनी है. 2024 में नाटो का कुल सैन्य खर्च अनुमानित तौर पर 1,474.4 अरब डॉलर रहने का अनुमान है. डॉनल्ड ट्रंप ने ओहायो के सांसद जेडी वैंस को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है. वह यूक्रेन को सहायता दिए जाने का विरोध करते हैं. उन्होंने 'वेलफेयर क्लाइंट्स' कहकर नाटो के सहयोगियों की आलोचना भी की.
क्या जर्मन रूस के साथ युद्ध को लेकर चिंतित हैं?
एयर डिफेंस सिस्टम में भी बड़ा निवेश चाहिए
नई रक्षा नीति के तहत, जर्मनी को एयर डिफेंस में चार गुना तक वृद्धि करनी होगी. इसमें ना केवल पैट्रियट एयर डिफेंस सिस्टम की बैटरियां बढ़ाना शामिल है, बल्कि कम-दूरी वाले सिस्टम भी हैं. एक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया कि शॉर्ट-रेंज सिस्टम सैन्य अड्डों, बंदरगाहों की रक्षा करेंगे. साथ ही, गंभीर रूप से तनाव बढ़ने या युद्ध की नौबत आने पर 1,00,000 से ज्यादा सैनिकों की भी जरूरत होगी, जो पूर्वी छोर पर तैनात किए जाएंगे. इसमें काफी खर्च होगा.
साझा एयर डिफेंस सिस्टम के करीब आ रहा है यूरोप
बर्लिन ने चार पैट्रियट एयर डिफेंस यूनिटों का ऑर्डर दिया है. खबरों के मुताबिक, बजट से जुड़ी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए जर्मनी अगले साल यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता घटाकर आधी करने की योजना बना रहा है. उसे उम्मीद है कि रूसी संपत्तियों को जब्त करने से मिली रकम से यूक्रेन को जो कर्ज दिया जाएगा, उससे वह अपनी सैन्य जरूरतें पूरी कर सकेगा. इसी साल जी7 देशों ने इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
यूरोप को बुनियादी ढांचे में भी सुधार करना होगा
विश्लेषकों के मुताबिक, रूस की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनजर यूरोप को बड़े स्तर पर तैयारियों की जरूरत पड़ेगी. इसमें परिवहन भी शामिल है. एक नाटो अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि युद्ध की स्थिति में सैनिकों तक खाना, ईंधन और पानी पहुंचाने के लिए सप्लाई रूट चाहिए होगा.
मोर्चे से घायल सैनिकों और कैदियों को भी लाने के इंतजाम करने होंगे. अधिकारी ने बताया कि इस दिशा में विस्तृत मानचित्र तैयार किए जा रहे हैं. इनमें यह भी ध्यान दिया जाएगा कि मौजूदा पुल इतने मजबूत हैं या नहीं कि भारी सैन्य आवाजाही का बोझ उठा सकें.
चीन से निपटने के लिए हिंद-प्रशांत में भी नाटो जैसा संगठन चाहता है अमेरिका
एक अन्य सैन्य सूत्र ने बताया कि ऐसी आशंकाओं पर भी काम किया जा रहा है कि अगर दक्षिण-पश्चिमी जर्मनी के राइश्टाइन में स्थित अमेरिकी हवाई छावनी पर हमला होता है, या उत्तरी सागर के बंदरगाहों को निशाना बनाया जाता है, तब क्या किया जाएगा. अभी यूरोप के पास टैंकों को लाने-ले जाने के लिए पर्याप्त रेल क्षमता नहीं है.
जर्मनी और बाल्टिक देशों के रेलवे गेज में भी अंतर है. रेल परिवहन में गेज का मतलब एक ही रेलवे ट्रैक की दोनों पटरियों के बीच की दूरी है. जर्मनी और बाल्टिक देशों के बीच रेलवे गेज में फर्क होने से हथियार और सैन्य उपकरण अलग-अलग ट्रेनों पर लादने होंगे.
नाटो की सुरक्षा के लिए युद्ध की तैयारी में जुटी जर्मन सेना
बुनियादी ढांचों की इन चुनौतियों से इतर नाटो को साइबर सुरक्षा भी मजबूत करनी होगी, ताकि हैकिंग से बचा जा सके. हैकिंग के कारण सैन्य तैनाती पर भी असर पड़ सकता है. मसलन, रेलवे स्विच जाम किए जा सकते हैं जिससे सैनिकों की आवाजाही प्रभावित हो सकती है.
एक योजनाकार ने रॉयटर्स को बताया कि यूरोप को केवल रूसी सेना की गतिविधियों के लिहाज से प्रतिक्रिया करने के लिए ही नहीं, बल्कि आपसी सैन्य सहयोग को मजबूत कर तनाव बढ़ने और युद्ध शुरू होने पर जल्द लड़ाई की भूमिका में आने के लिए भी तैयारी चाहिए.
एसएम/एए (रॉयटर्स)