कैसा है नासा का मार्स रोवर - परसिवरेंस
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यह पांचवा मार्स रोवर उसका आज तक का सबसे बड़ा और भारी अभियान है. फरवरी 2021 में यह मंगल पर उतरने वाला है.
एटलस V रॉकेट की सवारी
नासा के इंजीनियरों ने जुलाई 2020 की शुरुआत में ही मार्स रोवर को एटलस V रॉकेट पर लोड कर दिया. ‘परसिवरेंस’ अमेरिका के फ्लोरिडा से 30 जुलाई को छोड़ा जाना है
करीब से ऐसे दिखता है
नासा का यह पांचवा रोवर मंगल पर पहले से काम कर रहे ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर की मदद करेगा. इसका वजन क्यूरियोसिटी से करीब एक टन ज्यादा है और इसकी लंबाई 3 मीटर (10 फीट) है.
रोवर में क्या क्या है
कई रिसर्च उपकरण और सेंसर के अलावा इसकी भुजाओं पर 23 कैमरे और दूसरे कई टूल लगे हैं. इन्हीं की मदद से मंगल पर हर तरह के सैंपल इकट्ठे किए जाएंगे. मंगल की चट्टानों से ऑक्सीजन निकालने की संभावना तलाशना मिशन का एक अहम लक्ष्य है.
मंगल पर हेलिकॉप्टर
पहली बार किसी ग्रह पर भेजे जाने वाले ऐसे अभियान में रोवर के साथ साथ एक हेलीकॉप्टर भी भेजा जा रहा है. मंगल पर गुरुत्व बल धरती का करीब एक तिहाई होता है और ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान से कई नई जानकारियां हासिल करने का लक्ष्य है.
तीन पीढ़ियां एक साथ
सबसे छोटा है सोजोर्नर, जो केवल 10.6 किलोग्राम भारी था. फिर 185 किलो वजन वाला ऑपर्चुनिटी और 900 किलो भारी क्यूरियोसिटी रोवर. छोटे की स्पीड एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड तो वहीं बड़े रोवरों की स्पीड भी चार से पांच सेंटीमीटर प्रति सेकंड ही होती है.
भविष्य के रास्ते खोलने वाले मिशन
सोजोर्नर से मिली सीख के कारण 2004 में उसी के मॉडल पर स्पिरिट और ऑपर्चुनिटी रोबोट भेजे गए. स्पिरिट ने छह साल तक काम किया और ऑपर्चुनिटी से तो 13 फरवरी, 2019 को जाकर संपर्क टूटा.
लाल ग्रह की दुनिया
मंगल की सतह की यह तस्वीर क्यूरियोसिटी ने अपने कैमरे में कैद की थी. वह अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल या उससे भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है. फिलहाल मंगल ग्रह पर केवल रोबोटों ने ही कदम रखा है लेकिन भविष्य असीम संभावनाओं से भरा है.