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असम में खुदाई में मिले रहस्यमय मटकों का रहस्य

प्रभाकर मणि तिवारी
५ अप्रैल २०२२

पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम में मिले रहस्यमय जार या मटकों ने पुरातत्वविदों को हैरत में डाल दिया है. माना जाता है कि प्राचीन काल में इनका इस्तेमाल अंतिम संस्कार में किया जाता था.

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भारत के असम में मिले प्राचीन मटके
भारत के असम में मिले प्राचीन मटकेतस्वीर: Tilok Thakuria

रिसर्चरों का अनुमान है कि ये मटके ईसा पूर्व चार सौ साल पुराने हो सकते हैं. नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के डाक्टर तिलक ठाकुरिया और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के उत्तम बाथारी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने इनका पता लगाया है. अब तक जो मटके मिले हैं, वे अलग-अलग आकार और स्वरूप में हैं. कोई लंबा और बेलनाकार है, तो कुछ जमीन में आधे या पूरे गड़े हुए हैं. यह शोध रिपोर्ट 'जर्नल आफ एशियन आर्कियोलॉजी' के ताजा अंक में छपी है.

इससे पहले लाओस में भी ऐसे पत्थर के मटके मिल चुके हैं. अब तक पक्के तौर पर इसकी जानकारी नहीं है कि इनका क्या इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन शोधकर्ताओं की राय है कि शायद अंतिम संस्कार के दौरान इनका इस्तेमाल किया जाता होगा. डॉ. ठाकुरिया का कहना है कि फिलहाल ये मटके खाली हैं, लेकिन संभव है कि कभी उनके मुंह पर ढक्कन लगा हुआ था.

अब अगला कदम बाकी खुदाई पूरी कर पूरे मामले को सिलसिलेवार तरीके से कलमबद्ध करना है, ताकि संयुक्त राष्ट्र में उनके वर्ल्ड हेरिटेज दर्जे के लिए आवेदन दिया जा सके. इसमें असम सरकार भी सहायता करेगी. डॉ. ठाकुरिया बताते हैं कि असम में कम-से-कम दस स्थानों पर ऐसे 700 से ज्यादा मटके मिले हैं. अभी वहां ऐसे और मटके जमीन में दबे होने की संभावना है.

कितनी जगहों पर मिले हैं ऐसे मटके?

डॉ. ठाकुरिया ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "साल 1928 में पहली बार जेपी मिल्स और जेएस हॉटन ने इनका पता लगाया था. उसके बाद इस दिशा में कोई गंभीर काम नहीं हुआ. करीब 80 साल बाद साल 2014 में मैंने नागालैंड विश्वविद्यालय के तितोषी जमीर के साथ मिलकर उस स्थान का पता लगाया." जिन स्थानों पर ऐसे मटके मिले हैं, वे असम के डिमा हसाओ जिले में हैं. 2016 में इसी टीम ने वहां जाकर इस मामले को कलमबद्ध किया. डॉ. ठाकुरिया बताते हैं, "गुवाहाटी विश्वविद्यालय के उत्तम बाथारी ने इस मामले को कलमबद्ध किया था. इसके अलावा चार नए स्थानों की तलाश की गई. ये स्थान हैं--हेरोकिलो, लोअर चाइखाम, ताई मोडिलिंग-1 और 2."

असम के मटके. इससे पहले लाओस में भी ऐसे पत्थर के मटके मिल चुके हैं.
असम के मटके. इससे पहले लाओस में भी ऐसे पत्थर के मटके मिल चुके हैं. तस्वीर: Tilok Thakuria

फिलहाल 11 जगहों पर ऐसे 700 से ज्यादा मटकों का पता लग चुका है. इनमें से एक ही जगह 500 से ज्यादा मटके मिले हैं. यह विश्व में अकेली ऐसी जगह है, जहां एक साथ इतनी तादाद में मटके मिले हैं. ऐसा लाओस में भी नहीं है. वहां एक स्थान पर ऐसे अधिकतम करीब 350 मटके ही मिले हैं. डॉ. ठाकुरिया बताते हैं कि 2015 में असम सरकार के पुरातत्व विभाग ने डिमा हसाओ जिले के लुंगमाईलाई में ऐसे मटके होने की बात कही थी. वह कहते हैं कि यह प्राचीन काल में शवों के अंतिम संस्कार का हिस्सा हो सकते हैं. पहले लोग शव रखने की जगह को सुरक्षित रखते थे.

शोधकर्ताओं का कहना है कि पहले मिट्टी के मटके तो मिलते रहे हैं, लेकिन पत्थर के बने ये मटके अपने आप में अनूठे हैं. ऐसे मटके दुनिया में सिर्फ लाओस और असम में ही हैं. इनका वैश्विक सांस्कृतिक महत्व है. लाओस में तो संयुक्त राष्ट्र ने इनको वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा दे दिया है. अब असम के इन स्थानों को भी उस सूची में शामिल करने का प्रयास चल रहा है. इसके लिए तमाम रिसर्च को कलमबद्ध करने की कवायद शुरू हो गई है.

लाओस में कई जगहों पर मटकों के ऊपर ढक्कन भी

लाओस के शियांगखुआंग प्रांत में 90 से अधिक ऐसी जगहें हैं, जहां 400 से अधिक पत्थर के मटके हैं. कई मटकों के ऊपर तो पत्थर के ढक्कन भी मिले हैं. बताया जाता है कि इन मटकों की ऊंचाई एक से तीन मीटर तक है. वियतनाम युद्ध के दौरान वर्ष 1964 से 1973 के बीच अमेरिकी वायु सेना ने शियांगखुआंग प्रांत में 26 करोड़ से अधिक क्लस्टर बम गिराए थे. हालांकि इनमें से कई करोड़ ऐसे थे, जो फटे ही नहीं थे. पत्थरों के मटके वाले कई इलाकों में ऐसे बम आज भी वैसे ही पड़े हुए हैं. हालांकि कुछ जगहों से इन बमों को हटा लिया गया है.

पुरातत्वविदों का मानना है कि ये हजारों रहस्यमय पत्थर के बने मटके लौह युग के हैं. लाओस में जहां ये मटके मिले हैं, उस छह जुलाई, 2019 को विश्व के धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि असम में इतने मटकों के मिलने से प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अध्याय सामने आ सकता है.

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