मुंबई की एक तपती दोपहर में मछली विक्रेता नैना पाटिल अपनी दुकान पर बिना बिकी पॉम्फ्रेट को देख बेहद निराश हैं. पिछले एक पखवाड़े में इसकी कीमत तीन गुना बढ़ गई है. पाटिल पूछती हैं, "अब इसे 1,500 रुपये में कौन खरीदेगा?"
कुछ ग्राहक मछली खरीदने तो आए लेकिन वे ऊंची कीमतों की वजह से उन्हें बस देखकर आगे बढ़ गए. पाटिल मुंबई के अचानक बढ़ते तापमान को कम मछली पकड़े जाने के लिए जिम्मेदार मानती हैं. वे तर्क देती हैं कि अनिश्चित मौसम के कारण उनकी गिरती आय के लिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए.
55 वर्षीय पाटिल ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि तूफान के कारण मछुआरों की नावों को नुकसान पहुंचने के बाद सरकारी सहायता मिलती है, जबकि किसानों को सूखे और बाढ़ से फसल के नुकसान के लिए सहायता मिलती है. पाटिल कहती हैं, "पहले महिलाएं (यहां) अपनी कमाई पर 10 बच्चों की परवरिश कर सकती थीं. अब हमारे पास पैसे नहीं हैं. मेरी मां हमें स्कूल नहीं भेज सकती थी लेकिन उन्होंने हमें मछली पकड़ना सिखाया ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें. अब हम क्या करें अगर समुद्र में मछली नहीं हैं?"
मौसम विभाग के मुताबिक मुंबई में मार्च में गंभीर हीटवेव की स्थिति दर्ज की गई, जिसमें तापमान सामान्य से कम से कम 10 दिनों में 6-7 डिग्री सेल्सियस अधिक था.
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वह समय दूर नहीं जब महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा
जब प्लास्टिक कचरा कोई समस्या नहीं थी
1950 और 1970 के दशक में प्लास्टिक का उत्पादन कम मात्रा में हो रहा था. इसीलिए उस समय प्लास्टिक कचरा लगभग न के बराबर था और यह दुनिया के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं थी. जहां तक प्लास्टिक कचरे का सवाल था इसका निपटारा किया जाता था.
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औद्योगिक विकास और प्लास्टिक उत्पादन
1990 के दशक तक प्लास्टिक का उत्पादन तीन गुना से अधिक हो गया था. इसी तरह प्लास्टिक कचरा बढ़ता गया और धीरे-धीरे एक संकट बन गया.
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नई सदी, नए तरीके
2000 के दशक की शुरुआत में प्लास्टिक का उत्पादन आसमान छूने लगा. पिछले एक दशक में प्लास्टिक का उत्पादन पिछले चार दशकों की तुलना में अधिक बढ़ा है.
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प्लास्टिक कचरा दुनिया की सबसे बड़ी समस्या
आज दुनिया भर में सालाना 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा इकट्ठा किया जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि प्लास्टिक के उत्पादन को कम करना चाहिए और उसके रिसाइक्लिंग पर जोर देना चाहिए.
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पर्यावरण विनाश के लिए जिम्मेदार
1950 से अब तक लगभग 8.3 अरब टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है. इसका 60 प्रतिशत हिस्सा ठीक से और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से निपटाया नहीं जा सका है. यही वजह है कि यह प्लास्टिक आज या तो कचरे के पहाड़ों के रूप में मौजूद है या हमारे महासागरों, जंगलों और पर्यावरण का हिस्सा बन रहा है.
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सिगरेट फिल्टर भी
हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार सबसे प्रमुख प्लास्टिक कचरा सिगरेट फिल्टर है. इसके अलावा पानी की बोतलें, बोतल के ढक्कन, फूड पैकेट्स, शॉपिंग बैग और स्ट्रॉ अन्य वस्तुएं हैं जो प्लास्टिक कचरे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
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जल जीवन और महासागरों के लिए खतरा
हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों में चला जाता है. महासागरों में यह प्लास्टिक नदियों के माध्यम से पहुंचता है. दुनिया की दस नदियां 90 फीसदी प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार हैं. पाकिस्तान की सिंधु नदी उनमें से एक है, जिसमें सालाना डेढ़ लाख टन से अधिक प्लास्टिक समुद्र में छोड़ा जाता है.
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वह समय दूर नहीं जब महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा
कम मछली, ज्यादा प्लास्टिक
अगर प्लास्टिक और उसके कचरे का उत्पादन नियंत्रित नहीं किया जाता है और चीजें इसी तरह से जारी रहती हैं, तो संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक हमारे महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक मिलेगा.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी
महिला विक्रेताओं पर असर
मछली पकड़ने की मात्रा पर इन जलवायु परिवर्तनों का असर अब मुंबई की महिला मछली विक्रेताओं पर पड़ रहा है. वे पीढ़ियों से इस कारोबार से जुड़ी हैं. उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र माना जाता रहा है.
देश के कई हिस्सों में पिछले महीने की गर्मी रिकॉर्ड स्तर पर थी. हाल के दिनों में महिला मछली विक्रेताओं के सामने कई नई चुनौतियां आईं हैं, जैसे कि ऑनलाइन सीफूड डिलीवरी ऐप्स का बाजार में आना और चक्रवातों के बीच मछली पकड़ने के कम दिनों का होना भी शामिल है.
राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार मछुआरों को मृत्यु और विकलांगता के लिए बीमा देती है, जिसमें अब तक लगभग 2.8 लाख लोग कवर किए जा चुके हैं.
मछली श्रमिक संघों का कहना है कि अनिश्चित मौसम से होने वाले नुकसान के खिलाफ भी इसी तरह के बीमे की जरूरत है. एनएफडीबी द्वारा संकलित डेटा के मुताबिक पिछले दो दशकों में अरब सागर के ऊपर चक्रवातों में 52 फीसदी की वृद्धि हुई, जो समुद्र की सतह के तापमान में 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण है.
पाटिल कहती हैं, "समुद्र हमारा खेत है और हम भी जलवायु परिवर्तन के पीड़ित हैं."
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश में मत्स्य पालन और संबंधित गतिविधियों में लगभग 2.8 करोड़ कर्मचारी हैं, मछली पकड़ने के बाद की सभी गतिविधियों का 70 फीसदी महिलाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
मुंबई में कोली समुदाय की अनुमानित 40,000 महिला मछली विक्रेता हैं, जो शहर की मूल निवासी हैं. वे मछली व्यापारियों से स्टॉक खरीदती हैं, फिर उसे छांटती हैं और पैक करने के बाद बाजार में बेचती हैं. 2020 में भारत के समुद्रों से पकड़ी गईं कुल मछली लगभग 3.7 मिलियन टन थी, जो कि 2012 में 3.2 मिलियन टन मछली से कहीं अधिक थीं.
महाराष्ट्र मछलीमार कृति समिति के देवेंद्र दामोदर टंडेल कहते हैं कि उनकी समिति पिछले महीने के लू के कारण हुए नुकसान का आकलन कर रही है. टंडेल ने कहा कि चक्रवात आने पर उन्हें एकमात्र मुआवजा मछली के लिए भंडारण बॉक्स मिलता है. वे पूछते हैं "इससे क्या उद्देश्य पूरा होगा?"
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
कहां कहां है पानी पर विवाद
शोध दिखाते हैं कि पिछले दस सालों में विश्व भर में पानी को लेकर विवाद उसके पहले के दशक के मुकाबले दोगुने हो गए हैं. कुछ जगहों पर पानी को लेकर ही मूल विवाद हुआ लेकिन ज्यादातर दूसरे मामलों में इलाके में गरीबी, असमानता, भूख जैसी समस्याओं ने पानी के संकट में आग में घी डालने का काम किया.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
ईरान: देश एक मसले अनेक
बढ़ती जनसंख्या, फैलते शहर, प्रबंधन और अच्छा बुनियादी ढांचा ना होने के कारण ईरान में पानी का संकट गहरा रहा है. पड़ोसी अफगानिस्तान के साथ हेलमंद नदी का पानी साझा करने को लेकर भी कलह है. अफगानिस्तान में 2021 में बने कमाल खान बांध को लेकर भी ईरान को खास समस्या है, क्योंकि इससे उसे अपने एक प्रांत में पानी का बहाव रुकने का डर है.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
भारत और पाकिस्तान के बीच समस्या
दोनों पड़ोसी देशों से होकर बहने वाली सिंधु नदी को लेकर दोनों देशों ने 1960 में ही एक इंडस वॉटर्स ट्रीटी नाम का समझौता कर नदी और उसकी सहायक नदियों को लेकर अपने अधिकार बांट लिए थे. लेकिन हाल के सालों में उसे लेकर फिर विवाद पैदा हो गया जब पाकिस्तान ने कश्मीर विवाद के चलते भारत पर उसका पानी रोकने का आरोप लगाया.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
भारत की घरेलू चिंताएं
भारत जैसे विशाल देश के भीतर भी सिंधु नदी के पानी से लेकर कई और जगहों पर मसले हैं. इसके कारण पूरे भारत के अलग अलग हिस्सों में सूखा पड़ता रहता है. मानसून का देर से आना इसे और गहरा देता है. अनुमान है कि 2030 तक भारत की 40 फीसदी आबादी को पीने के पानी के लाले पड़ सकते हैं.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
नाइजीरिया में हिंसा
नाइजीरिया में आतंकी गुट बोको हराम के साथ लड़ाई में मरने वालों से ज्यादा लोग पानी को लेकर होने वाली हिंसा में मारे गए. उत्तरी नाइजीरिया में सरकार से गुट की कई मांगों में से एक साफ पानी मुहैया कराना है. कम बारिश होने पर अगर मुस्लिम चरवाहे अपने मवेशियों को चराने ईसाई जमींदारों की जमीन पर चले जाएं तो बवाल होता है.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
माली में पानी पर हिंसा
यहां किसान और चरवाहे पानी और जमीन को लेकर लड़ते आए हैं, जिसकी वजह उनके बीच का जातीय विवाद और बढ़ती जनसंख्या का दबाव भी है. 2019 में इसके चलते इनर नाइजर डेल्टा में सामूहिक हत्याकांड हो गया. माली के केंद्र में सरकार की बांध बनाने की योजना है जिसका असर दस लाख से अधिक किसानों, चरवाहों और मछुआरों पर पड़ने का डर है.
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दुनिया भर में पानी पर झगड़े
इराक की समस्या के कई पहलू
इराक में पानी का संकट काफी जटिल है. सूखा और साल दर साल कम होती बारिश तो है ही, लगातार बदलते मौसम और प्रदूषण का भी उसमें हाथ है. देश को अपने पानी के भंडार का ठीक से प्रबंधन ना करने के कारण कई बार आलोचना झेलनी पड़ी है. 2019 में तो प्रधानमंत्री को विरोध प्रदर्शनों के चलते इस्तीफा देना पड़ा, जिसमें मुख्य मुद्दा बिजली और साफ पानी की कमी का भी था.