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विज्ञानऑस्ट्रेलिया

मोबाइल फोन और ब्रेन कैंसर में कोई संबंध नहींः शोध

विवेक कुमार
९ सितम्बर २०२४

आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर हो सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब तक के सबसे व्यापाक अध्ययन के बाद कहा है कि यह सिर्फ एक मिथक है.

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रात के समय मोबाइल फोन के इस्तेमाल करती एक महिला
मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर का डर बहुत लोगों को लगता हैतस्वीर: Colourbox

अक्सर कहा जाता है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर हो सकता है. बहुत लंबे समय से ऐसी बातें कही जाती हैं, क्योंकि फोन को सिर के पास रखा जाता है और इससे रेडियो तरंगें (नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन) निकलती हैं. इसी वजह से लोगों में यह डर पैदा हुआ कि कहीं मोबाइल फोन से कैंसर का खतरा तो नहीं. मोबाइल फोन और वायरलेस तकनीक आज जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं, इसलिए इनसे होने वाले रेडियो तरंगों के प्रभाव को समझना जरूरी हो गया है.

अब एक नए व्यापक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल और ब्रेन कैंसर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है. यह अध्ययन अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत विश्लेषण है, जिसमें 1994 से 2022 के बीच प्रकाशित 63 अध्ययनों को शामिल किया गया है.

कैसे पैदा हुआ कैंसर का डर

2011 में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (आईएआरसी) ने रेडियो तरंगों को "संभवतः मानव के लिए कार्सिनोजेन" के रूप में वर्गीकृत किया था. इस वर्गीकरण का मतलब यह नहीं था कि मोबाइल फोन सीधे कैंसर का कारण बनते हैं, लेकिन इसे और जांचने की जरूरत बताई गई थी. फिर भी, इस वर्गीकरण ने लोगों में डर पैदा कर दिया, खासकर इसलिए क्योंकि उस वक्त मोबाइल फोन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा था.

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हालांकि, वैज्ञानिकों का मत लगातार यही रहा कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगों और ब्रेन कैंसर के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. और इस नए अध्ययन ने भी यही बात साबित की है, जो ‘एनवायर्नमेंट जर्नल' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

नया अध्ययन क्या कहता है?

यह नया अध्ययन 22 देशों के डेटा पर आधारित है. इसमें 5000 से ज्यादा अध्ययनों की समीक्षा के बाद 63 को अंतिम विश्लेषण के लिए चुना गया. इन अध्ययनों में मोबाइल फोन के उपयोग और ब्रेन ट्यूमर जैसे ग्लियोमा, मेनिंजियोमा, एकॉस्टिक न्यूरोमा, पिट्यूटरी ट्यूमर और सलाईवरी ग्लैंड ट्यूमर के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं पाया गया.

ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के केन कैरिपिडिस और वोलोनगॉन्ग यूनिवर्सिटी की सेरा लूगरान द्वारा किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों और न करने वालों के बीच कैंसर के खतरे में कोई खास अंतर नहीं है. यहां तक कि जिन लोगों ने 10 साल या उससे ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया, उनमें भी कैंसर का खतरा नहीं बढ़ा.

यह अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कमिशन किया गया था और न्यूजीलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय व अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा इसके लिए धन उपलब्ध कराया गया. अध्ययन के लेखक कहते हैं, "अगर कोई व्यक्ति 10 साल या उससे ज्यादा समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करता है, तब भी कैंसर का खतरा नहीं बढ़ता. कितनी बार और कितनी देर तक फोन इस्तेमाल किया गया, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता."

अध्ययन में यह भी पाया गया कि कॉर्डलेस फोन का उपयोग भी ब्रेन ट्यूमर के खतरे को नहीं बढ़ाता. इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में भी मोबाइल फोन इस्तेमाल और ब्रेन ट्यूमर के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया.

लेखकों ने लिखा, "कुल मिलाकर, नतीजे काफी आश्वस्त करने वाले हैं. इसका मतलब यह है कि हमारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानक काफी सुरक्षित हैं. मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगें इन मानकों के अंदर आती हैं और इससे मानव स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है."

गलत धारणाओं का सामना

यह अध्ययन मोबाइल फोन की सुरक्षा को साबित करता है, फिर भी वैज्ञानिक मानते हैं कि कुछ गलतफहमियों को दूर करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है. 2011 में IARC के वर्गीकरण के बाद से, मोबाइल फोन से कैंसर होने की आशंकाओं ने कई तरह की अफवाहों को जन्म दिया है. इन अफवाहों के चलते कई लोगों को लगा कि मोबाइल फोन खतरनाक हो सकते हैं, जबकि विज्ञान इसका समर्थन नहीं करता.

लेखकों ने इस बारे में कहा, "अब हमारी चुनौती यह है कि इस नए शोध के जरिए मोबाइल फोन और ब्रेन कैंसर को लेकर फैली गलतफहमियों और गलत जानकारी का मुकाबला किया जाए."

अध्ययन के लेखक चाहते हैं कि इस नई जानकारी के आधार पर जनता में मोबाइल फोन की सुरक्षा को लेकर विश्वास बढ़ाया जाए. वे उम्मीद करते हैं कि इस अध्ययन के नतीजे आम लोगों की गलतफहमियों को खत्म करेंगे और उन्हें यह यकीन दिलाएंगे कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल सुरक्षित है.

वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि इस बारे में आगे और भी रिसर्च की जरूरत हो सकती है, खासकर कुछ खास और दुर्लभ मामलों में. इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के रेडिएशन के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए और गहन अध्ययन की जरूरत हो सकती है.

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