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कोविडः कारगर होगी मिलीजुली वैक्सीन?

कार्ला ब्लाइकर
११ जून २०२१

एक ही टीके की दो खुराक लेने के बजाय दो अलग अलग वैक्सीनों से ज्यादा मजबूत इम्युनिटी हासिल की जा सकती है- जर्मनी में हुई एक ताजा रिसर्च में ये दावा किया गया है. एस्ट्राजेनेका और फाइजर वैक्सीनों पर ये शोध हुआ.

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Impfung mit dem Biontech oder dem AstraZeneca Corona Impfstoff.
तस्वीर: Frank Hoermann/SvenSimon/picture alliance

यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी से मंजूरी मिलने के बाद, जनवरी में सभी जर्मन वयस्कों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लगायी गयी थी. वैसे जर्मनी में टीकाकरण की स्टैंडिंग कमेटी ने अप्रैल में एस्ट्राजेनेका का इस्तेमाल 60 साल से ऊपर के लोगों तक ही सीमित रखने की सिफारिश की थी क्योंकि टीका लगने के बाद विशेष रूप से कुछ युवतियों के मस्तिष्क में खून का थक्का बनने का खतरा बढ़ गया था.

यानी ठीकठाक संख्या में पहली खुराक एस्ट्राजेनेका टीके की लेने वाले लोगों को दूसरी खुराक बायोनटेक-फाइजर या मॉडर्ना वैक्सीन की दी गयी. आज जर्मनी में हर उम्र के बालिगों को फिर से एस्ट्राजेनेका का टीका लग सकता है बशर्ते टीका लगवाने वाले व्यक्ति और डॉक्टर पहले से उस पर सहमत हों.

लेकिन नये अध्ययन से पता चला है कि दो अलग अलग वैक्सीनों को मिलाकर देना एक अकेले उपाय से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है. पश्चिम जर्मनी की जारलैंड यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका और दूसरी खुराक बायोनटेक-फाइजर की मिली थी, उनमें, दोनों खुराक एक ही वैक्सीन की लेने वालों की तुलना में ज्यादा इम्युनिटी देखी गयी.

Spanien Valencia COVID-19 Impfung
स्पेन में करीब एक चौथाई लोगों को लगा दोनों टीकातस्वीर: Borja Abargues/NurPhoto/Getty Images

तो- क्या दुनिया के टीकाकरण अभियान में बदलाव का समय आ गया है. सभी लोगों को मिक्स और मैच टीका देने की शुरुआत करनी चाहिए?

वैज्ञानिकों का जवाब हैः अभी नहीं.

मिलीजुली वैक्सीन पर शोध बाकी

जारलैंड यूनिवर्सिटी से मिले नतीजे प्रारंभिक हैं और वैज्ञानिक रूप से उनका पूरा आकलन अभी नहीं हुआ है. नतीजे जारी करते हुए ये बात अपने प्रेस बयान में यूनिवर्सिटी कह चुकी है. अपने नतीजों को आधिकारिक रूप से प्रकाशित करने से पहले, शोधकर्ता टीका लेने वालों की उम्र और जेंडर की भूमिका का भी अध्ययन करेंगे और इस बात की भी गहराई से जांच करेंगे कि टीकों के किस कॉम्बिनेशन से ज्यादा गंभीर साइड अफेक्ट हो सकते हैं.   

वैसे तो समस्त डाटा का आकलन अभी बाकी है, फिर भी टीम को इतने स्पष्ट नतीजों से हैरानी जरूर हुई. जारलैंड यूनिवर्सिटी में ट्रांसप्लांटेशन और इंफेक्श्नल इम्युनोलजी की प्रोफेसर मार्टिना सेस्टेर ने प्रेस बयान में कहा, "इसीलिए वैज्ञानिक आकलन प्रक्रिया पूरा होने का इंतजार करने के बजाय हम अपने नतीजे अभी साझा करना चाहते थे.”

बन गयी दस गुना ज्यादा एंटीबॉडीज

हैम्बुर्ग में यूनिवर्सिटी अस्पताल में हुए ट्रायल में पिछले कुछ महीनों के दौरान 250 लोगों ने भाग लिया था. उनमें से कुछ को एस्ट्राजेनेका के ही दो शॉट लगे, कुछ को फाइजर के ही दो और तीसरे समूह को पहले एस्टाजेनेका का टीका और फिर फाइजर का टीका लगा.

दूसरी खुराक देने के दो सप्ताह बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों की प्रतिरोधक क्षमता की तुलना की. सेस्टेर बताती हैं, "हमने सिर्फ ये नहीं देखा कि कोरोनावायरस के खिलाफ कितनी एंटीबॉडीज बनी बल्कि ये भी भी देखा कि वे एंटीबॉडीज कितनी असरदार थीं. उसी से पता चलता है कि वायरस को कोशिकाओं में जाने से रोकने में एंटीबॉडीज कितनी कारगर रहती हैं. ”

एंटीबॉडी की वृद्धि के लिहाज से देखें तो फाइजर के दोनों टीके लेने वाले और एक के बाद एक एस्ट्राजेनेका और फाइजर के टीके लेने वालों में एस्ट्राजेनेका के ही दोनों टीके लेने वालों के मुकाबले, ये वृद्धि असरदार थी. यानी पहले दोनों समूहों में तीसरे समूह की अपेक्षा दस गुना ज्यादा एंटीबॉडी बनीं. कोरोना को खत्म कर देने वाली एंटीबॉडीज के लिहाज से देखें तो एस्ट्राजेनेका के बाद फाइजर का टीका लेने वालों यानी मिक्स एंड मैच तरीके में दोनों फाइजर टीके वालों की अपेक्षा थोड़ा बेहतर स्थिति पाई गई. 

दो खुराक वाले टीकों को लगाने के मामले में स्वास्थ्य अधिकारी कह चुके हैं कि पहला और दूसरा टीका एक ही होना चाहिए. बायोनटेक-फाइजर टीके की रेगुलेटरी सिफारिशों में कोई बदलाव नहीं था इसलिए एस्ट्राजेनेका से पहले फाइजर का टीका लेने वाले मामले ज्यादा ज्ञात नहीं हैं. 

एंटीबॉडी निर्माण में उल्लेखनीय प्रगति

स्पेन के कार्लोस- III हेल्थ इन्स्टीट्यूट में 663 प्रतिभागियों पर हुए कॉम्बीवैक्स टीके के ट्रायल में भी यही नतीजे देखने को मिले. इस अध्ययन के प्रारंभिक नतीजे वैज्ञानिक जर्नल "नेचर” में प्रकाशित हुए थे. जारलैंड यूनिवर्सिटी के नतीजों की तरह ये भी अभी फाइनल नहीं हैं. नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट एक लिहाज से उस खोज का मोटा ब्यौरा भर है जो स्पेन के शोधकर्ताओं ने अब तक की है और ये पूरी तरह से पीयर रिव्यूड आर्टिकल यानी विशेषज्ञों से अनुमोदित लेख नहीं है.

दो तिहाई प्रतिभागियों को पहले एस्ट्राजेनेका और फिर निर्धारित अवधि में दूसरा टीका बायोनटेक-फाइजर का लगाया गया. शुरुआती नतीजे आने तक अंतिम तिहाई को दूसरा टीका नहीं लगा था. बार्सिलोना में वालडेहेब्रॉन यूनिवर्सिटी अस्पताल में कॉम्बिवैक्स स्टडी की जांचकर्ता मैगडेलीना कैम्पिन ने बताया कि जिन लोगों को मिक्स एंड मैच वैक्सीन की दोनों खुराक मिल गयी थीं उनमें ज्यादा मात्रा में एंटीबॉडीज का निर्माण देखा गया. लैब परीक्षणों में पाया गया कि ये एंटीबॉडीज सार्स कोविड-2 की शिनाख्त कर उसे निष्क्रिय करने में सक्षम थीं.

कनाडा की हैमिल्टन यूनिवर्सिटी में इम्युनोलॉजिस्ट चाऊ जिंग इस अध्ययन में तो शामिल नहीं थे लेकिन नेचर में प्रकाशित शोध आलेख में दर्ज अपने बयान में वो कहते हैं, "लगता है कि फाइजर के टीके की बदौलत सिंगल डोस एस्ट्राजेनेका टीके में एंटीबॉडी में उछाल की जर्बदस्त प्रतिक्रिया होती है.” जिंग कहते हैं कि ये बढ़ोत्तरी, एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने वालों में होने वाली प्रतिक्रिया से ज्यादा काबिलेगौर थी.

वैक्सीन बनाने में कितना वक्त लगता है?

यूं तो रिपोर्ट के नतीजे अभी फाइनल और पीयर रिव्यूड नहीं हैं, फिर भी, स्पेन से आयी इस रिपोर्ट की एक समस्या ये है कि इसमें उन लोगों का कंट्रोल ग्रुप नहीं शामिल है जिन्हें एक ही वैक्सीन की दो खुराकें मिल चुकी हैं- लिहाजा दोनों ग्रुपों के बीच में कोई सीधी तुलना संभव नहीं थी.

साझा वैक्सीनों पर गंभीरता से विचार की अपील

अगर शुरुआती नतीजों से मिले संकेतों को देखें तो एस्ट्राजेनेका और बायोनटेक-फाइजर का मेल, कोविड के खिलाफ लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का एक भरोसेमंद तरीका हो सकता है.

इसलिए नहीं कि दोनो वैक्सीनें किसी भी लिहाज से एक जैसी हैं. वे बाजार में फिलहाल उपलब्ध दो अलग अलग तरह के कोविड-रोधी टीके हैं.

एस्ट्राजेनेका, एक पारंपरिक वेक्टर टीका है. मानव कोशिकाओं को, कोरोनावायस के खिलाफ एंटीबॉडीज का निर्माण करने का निर्देश भेजने के लिए ये टीका, अलग अलग वायरसों के हानिरहित वर्जन का इस्तेमाल करता है जबकि बायोनटेक-फाइजर एक एमआरनएस वैक्सीन है. ये प्रतिरक्षा का एक नया तरीका है. एमआरनए वैक्सीनें कोशिकाओं को प्रोटीन बनाना सिखाती हैं जिनसे प्रतिरक्षा विकसित होती है और एंटीबॉडीज बनती हैं.

शोधकर्ताओं के पास इस बारे में अभी पर्याप्त जानकारी नहीं है कि आखिर क्यों इन दोनों वैक्सीनों को मिला कर देने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ जाती है. जारलैंड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सेस्टेर चाहती हैं कि अलग अलग वैक्सीनों के मेल और उनके इंटरैक्शन के बारे मे जानने के लिए और रिसर्च होनी चाहिए. वह कहती हैं, "अगर दूसरी रिसर्च टीमों को हमारे जैसे ही नतीजे मिलते हैं तो फिर वेक्टर और एमआरनए वैक्सीनों के साझा इस्तेमाल वाले तरीके पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.”

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