भारत का अनोखा बाजार, जिसे केवल महिलाएं चलाती हैं
इस बाजार को 'मदर्स मार्केट' भी कहते हैं. मणिपुर की राजधानी इंफाल में लगने वाला यह बाजार करीब 500 साल पुराना है. यहां करीब चार हजार महिलाएं दुकान लगाती हैं. पुरुषों केवल खरीदारी के लिए ही यहां आ सकते हैं.
यहां सारी दुकानदार महिलाएं ही हैं
राजधानी इंफाल के बीचोबीच बने इस बाजार का नाम है, ईमा कैथल. स्थानीय मैतेई भाषा में ईमा का मतलब मां होता है. इसीलिए इस बाजार को मदर्स मार्केट भी कहा जाता है. यह बाजार महिलाएं ही चलाती हैं. यहां पुरुषों की भूमिका बस इतनी ही है कि वे खरीदारी करने आ सकते हैं. यह एशिया में महिलाओं की ओर से संचालित सबसे बड़ा बाजार है.
500 साल पुराना है यह बाजार
सरकारी रेकॉर्ड्स के मुताबिक, इस बाजार की शुरुआत 1533 में हुई थी. इसका पहला जिक्र 1786 में मणिपुर के गजेटियर में मिलता है. इसमें भी इसका जिक्र महिला बाजार के तौर पर ही मिलता है. यहां करीब चार हजार महिलाएं दुकान लगाती हैं. कई तो ऐसी हैं, जिनके परिवार की महिलाएं पीढ़ियों से यहां दुकान लगा रही हैं.
परिवार चलाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर
पुराने दिनों में मणिपुर के मैतेई जनजाति के पुरुष या तो जंग में लगे रहते थे या मजदूरी करने दूरदराज के इलाकों में चले जाते थे. ऐसे में महिलाओं के ऊपर परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी आ गई. इसी जिम्मेदारी से फिर धीरे-धीरे यह बाजार अस्तित्व में आया. यहां कुछ ऐसी महिलाओं को भी दुकान के लिए जगह दी गई है, जिनके पति उग्रवादी हिंसा का शिकार हो गए हैं.
दिलचस्प हैं इस बाजार के कायदे
यह बाजार तीन भागों में बंटा है- पुराना बाजार, लक्ष्मी बाजार और नया बाजार. किसी में सब्जी, मछली और फल जैसी रोजमर्रा की चीजें मिलती हैं, तो किसी में परंपरागत कपड़े और अन्य घरेलू सामान. इस बाजार के कुछ दिलचस्प नियम हैं. मसलन, जो महिला कपड़े बेचती है वह कपड़े ही बेचेगी. उसकी जगह सब्जी या कोई और सामान नहीं बेचेगी. यह लिखित कानून नहीं है, लेकिन महिलाएं इसे मानती हैं.
पीढ़ियों तक ट्रांसफर होता रहता है लाइसेंस
बाजार में दुकान लगाने के लिए लाइसेंस जरूरी है, जो इंफाल नगर पालिका जारी करती है. यह लाइसेंस पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसी महिला के परिवार के पास रहता है. इसके एवज में उन्हें नगरपालिका को सालाना मामूली फीस चुकानी पड़ती है. जिन महिलाओं के पास लाइसेंस नहीं होता, वे बाजार के बाहर पटरी पर बैठकर सामान बेचती हैं. इनमें ज्यादातर इंफाल से दूर पहाड़ी जिलों से आती हैं.
अपने हक के लिए अंग्रेजों से संघर्ष भी किया
1891 में ब्रिटिश काउंसिल प्रशासन ने मणिपुर पर आर्थिक और राजनीतिक सुधार लगाए. अंग्रेज मनमाने तरीके से स्थानीय जरूरतों को पूरा किए बिना यहां पैदा होने वाले अनाज को बाहर बेचने लगे. इससे यहां लोगों के भूखों मरने की नौबत आ गई. तब इस बाजार की महिलाओं की अगुवाई में संघर्ष किया गया. अंग्रेजों ने इस बाजार को विदेशी या बाहरी लोगों को बेचने की कोशिश की. इसका भी महिलाओं ने खूब विरोध किया.