'इस्लामिक बैंक' के नाम पर हुए घोटाले का आरोपी गिरफ्तार
१९ जुलाई २०१९भारत के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 19 जुलाई की सुबह मोहम्मद मंसूर खान को गिरफ्तार कर लिया है. मंसूर खान कर्नाटक में हुए आईएमए पॉन्जी घोटाले में मुख्य आरोपी हैं. इस घोटाले में कर्नाटक के कई नेताओं के भी नाम सामने आ रहे हैं. घोटाले की जांच शुरू होते ही मंसूर खान भारत छोड़ दुबई चले गए थे. दुबई से कुछ दिन पहले एक वीडियो संदेश जारी कर मंसूर ने कहा कि उन्हें दिल की एक गंभीर बीमारी हो गई है. इसके लिए उन्हें इलाज की सख्त जरूरत है इसलिए वो भारत वापस लौट रहे हैं. भारत लौटते ही उन्हें दिल्ली हवाईअड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया.
क्या है आईएमए स्कैम
मंसूर खान ने 2006 आई मॉनेटरी एडवायजरी ग्रुप नाम से एक प्राइवेट फर्म चालू की. लोग इसे इस्लामिक बैंक भी बोलते थे. बैंक के आगे इस्लामिक शब्द लगाने का मतलब था कि यह बैंक इस्लाम के नियम कायदों को मानकर काम करता है. इस्लाम धर्म के धर्म ग्रंथ कुरान के सूरत बकरा में लिखा हुआ है कि अल्लाह ने खरीद-फरोख्त को हलाल और सूद यानी ब्याज को हराम माना है. इस्लाम के मानने वालों में ब्याज लेना और देना दोनों पाप माना जाता है. इसमें आगे लिखा है कि अल्लाह सदाकत यानी खैरात को बढ़ाते हैं. इस्लाम में ब्याज लेना या देना हलाल और अल्लाह के उसूलों के विरुद्ध माना जाता है.
कुरान की इस बात को मानने वाले मुस्लिम ब्याज नहीं लेते हैं. इस्लाम की शिक्षाओं को मानने वाले मुस्लिम बचत खाते की जगह चालू खाता खुलवाते हैं. चालू खाते में बैंक ब्याज नहीं देता. ब्याज ना लेने-देने वाले मुस्लिमों के लिए मंसूर ने निवेश स्कीम बनाई. उसका दावा था कि इस स्कीम में निवेश करने वाले लोगों को 36 से 64 प्रतिशत तक का रिटर्न मिलेगा. यह स्कीम शरीयत के मुताबिक होगी ऐसे में इसे हराम भी नहीं माना जा सकेगा. मंसूर का कहना था कि वो पैसा सोना खरीदने, रीयल एस्टेट, शिक्षा और दूसरे व्यापारों में निवेश करेंगे जहां से वो निवेशकों को अच्छा मुनाफा दे सकेंगे.
मंसूर की यह स्कीम चल निकली. कई हजार लोगों ने इस स्कीम में निवेश किया. मंसूर के पास करीब 4,000 करोड़ रुपये इकट्ठा हो गए. हालांकि कुछ लोगों ने इस स्कीम पर आपत्ति जताई और इसे कालेधन को सफेद करने की एक योजना बताया. मंसूर ने शुरुआती समय में कुछ निवेशकों को वादे के अनुसार रिटर्न दिए. इससे दूसरे निवेशकों में भरोसा बढ़ा. इस स्कीम में कई धनी लोगों ने भी अपना पैसा लगाया. लेकिन ज्यादा पैसा आने के बाद मंसूर निवेशकों को पैसा वापस करने में असफल रहा. पैसा वापस ना मिलने पर निवेशकों ने मंसूर और उनकी संस्था की शिकायत अक्टूबर, 2018 में रिजर्व बैंक और दूसरी एजेंसियों में की. लेकिन जून, 2019 तक इस पर कार्रवाई नहीं हुई.
ऊंचे संपर्कों के कारण बचते रहे
मंसूर पर आरोप लगा कि निवेशकों के 4,000 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल मंसूर ने अपने निजी फायदे के लिए किया. लेकिन कर्नाटक के राजनेताओं से अच्छे संबंध होने के चलते कोई कार्रवाई नहीं हुई. जून में पुलिस कार्रवाई शुरू होने के बाद मंसूर फरार हो गए. फरार रहने के दौरान ही उन्होंने एक ऑडियो मेसेज रिलीज किया. इस मेसेज में उन्होंने शिवाजीनगर के विधायक रोशन बेग पर आरोप लगाया कि रोशन ने मंसूर से 400 करोड़ रुपये उधार लिए. ये पैसे रोशन ने वापस नहीं किए. इस वजह से उनका आर्थिक हिसाब-किताब गड़बड़ा गया.
रोशन बेग और मंसूर के पहले से भी अच्छे संबंध रहे हैं. मंसूर ने बेग के विधानसभा क्षेत्र में 16 करोड़ की लागत से एक स्कूल खोला. इसके अलावा बेग के बेटे का भी आईएमए से करीबी संबंध बताया जाता है. बेग पर आरोप है कि आईएमए को कर्नाटक सरकार की कार्रवाई से लगातार वो ही बचाते रहे थे. हालांकि बेग इन आरोपों से इंकार कर रहे हैं. जब मंसूर खाने के भागने की खबर आई तो कर्नाटक सरकार ने एक एसआईटी का गठन इस घोटाले की जांच के लिए किया. एसआईटी ने जांच करते हुए बेंगलुरू शहर के डिप्टी कमिश्नर बी एच विजयशंकर और एक पुलिस अधिकारी एलसी नागराज को गिरफ्तार किया है. इनके ऊपर मंसूर के खिलाफ कार्रवाई ना करने के लिए पांच करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है.
रोशन बेग कांग्रेस से विधायक थे. फिलहाल उन्होंने अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. वो इस्तीफा देने वाले कांग्रेस-जेडीएस के 16 विधायकों में शामिल हैं. इन विधायकों के पास वापस जाते हुए उन्हें एसआईटी ने हिरासत में ले लिया. प्रवर्तन निदेशालय ने आईएमए के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत दर्ज की और कांग्रेस के मंत्री जमीर अहमद से पूछताछ भी की है. अब मंसूर के गिरफ्त में आने के बाद इस घोटाले की और भी परतें खुलने की उम्मीद है. इस्लामिक बैंक के नाम पर ऐसा घोटाला भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में हुआ था. इस घोटाले का मास्टरमाइंड दुबई भाग गया था. इस घोटाले में भी कई पाकिस्तानी राजनेताओं के नाम सामने आए थे.
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