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समाजयूरोप

लुफ्थांसा ने की "लेडीज एंड जेंटलमैन" की छुट्टी

आशुतोष पाण्डेय
१६ जुलाई २०२१

जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा की उड़ानों में अब किसी को "देवियो और सज्जनो" जैसे शब्द नहीं सुनाई पड़ेंगे. कंपनी ने यात्रियों को महिला और पुरुष के नजरिए से देखना बंद कर दिया है.

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जर्मन एयरलाइन कंपनी लुफ्थांसा
जर्मन एयरलाइन कंपनी लुफ्थांसातस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Woitas

"लेडीज एंड जेंटलमैन, विमान में आपका स्वागत है" जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा लैंगिक पहचान को संबोधित करने वाली ऐसी भाषा इस्तेमाल अब नहीं करेगी. एनाउंसमेंट के लिए तटस्थ शब्दों का प्रयोग किया जाएगा. यह बात लुफ्थांसा ग्रुप की सभी एयरलाइनों पर लागू होगी यानि ऑस्ट्रियन एयरलाइंस, स्विस और यूरोविंग्स भी तटस्थ एनाउंसमेंट करेंगे.

डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कंपनी की प्रवक्ता आन्या स्टेंगर ने कहा कि विविधता कोई लफ्फाजी नहीं है, लुफ्थांसा के लिए यह हकीकत है, "अब से हम अपनी भाषा में भी इस रुख को जाहिर करेंगे."

लुफ्थांसा के क्रू मेम्बर अब "डियर गेस्ट्स," "गुड मॉर्निंग/इवनिंग" या "वेलकम ऑन बोर्ड" जैसी शब्दावली प्रयोग करेंगे. यात्रियों को कैसे संबोधित किया जाए, इसका फैसला विमान में मौजूद चालक दल के सदस्य करेंगे. क्रू मेम्बरों को मई में इसकी जानकारी दे दी गई थी. बदलाव को तुरंत अमल में लाया गया.

अलेक्जांड्रा शीले जर्मनी की बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी में समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र की विशेषज्ञ हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह कदम सांकेतिक स्तर पर काम करता है. इसे 'लैंगिक-संवेदनशीलता' वाले कदम के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो सिर्फ दो लिंगों वाली सोच पर सवाल उठाता है."

ऐसी लिंग व्यवस्था से अलग सोचने वाले लोगों का हवाला देते हुए शीले ने कहा, "ऐसे लोग जो खुद को पुरुष/महिला से इतर देखते हैं और वे लोग भी जो द्विलिंगी सिस्टम पर सवाल उठाते हैं, उनके लिए भी 'लेडीज एंड जेंटलमैन/महिलाओं और पुरुषों' के बिना एनाउंसमेंट बेहतर हो सकती है."

अक्टूबर फेस्ट के दौरान लुफ्थांसा का क्रू
अक्टूबर फेस्ट के दौरान लुफ्थांसा का क्रूतस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Hörhager

लिंग रहित भाषा क्या है?

लुफ्थांसा ने लिंग की पहचान बताने वाली भाषा से परे ले जाने वाली जुबान का इस्तेमाल ऐसे समय में शुरू किया है, जब ज्यादा से ज्यादा संस्थाएं और कंपनियां जेंडर को लेकर संवेदनशील हो रही हैं. यूएन और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी संस्थाओं ने भी अपने काम काज में लिंग रहित भाषा की गाइडलाइंस अपनाई हैं.

यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वैलिटी की परिभाषा के मुताबिक, लिंग तटस्थ भाषा, "एक ऐसी भाषा है जो किसी लिंग से संबंधित न हो और वह महिला और पुरुष के चश्मे के बजाए लोगों को इंसान के रूप में देखे."

यूरोपीय संसद भी भाषा में लैंगिक तटस्थता को लेकर एक हैंडबुक जारी कर चुकी है. उस किताब के मुताबिक, "लिंग-समावेशी भाषा राजनीतिक रूप सही होने से कहीं ज्यादा बड़ा विषय है." 2018 में रिलीज की गई यह किताब कहती है, "लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा का मकसद उन शब्दों के चुनाव से बचना है जो किसी इंसान के सेक्स या सोशल जेंडर को आधार बनाते हुए शायद पक्षपाती, भेदभावपूर्ण और अपमानजनक हो सकते है."

जर्मन भाषा में ज्यादातर पेशों में लिंग की पहचान स्पष्ट तौर पर जाहिर करने वाले नाम है. पुरुष डॉक्टर को जर्मन में "आर्त्स्ट" कहा जाता है तो महिला डॉक्टर के लिए "आर्त्स्टिन" शब्द इस्तेमाल होता है. "स्टूडेंट" का अर्थ पुरुष छात्र से होता है और "स्टूडेंटिन" महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. तटस्थ भाषा के समर्थक कहते हैं कि लिंग सूचक नाम उन लोगों के साथ खिलवाड़ है, जो नहीं चाहते कि उन्हें सिर्फ पुरुष या महिला के रूप में पहचाना जाए. लिंग सूचक भाषा को वह सेक्सिट धारणा को मजबूत करने वाली मानते हैं. विरोधियों के मुताबिक व्याकरण में बदलाव भाषा पर हमला है. 

लैंगिक समानता को लेकर बढ़ती चेतना
लैंगिक समानता को लेकर बढ़ती चेतनातस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Duenzl

सांकेतिक कदम काफी नहीं

अमेरिकी कार निर्माता कंपनी फोर्ड मोटर्स ने जुलाई 2021 की  शुरुआत में अपने नियमों में बदलाव कर लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा अपना ली. इसके बाद कंपनी "चेयरमैन" शब्द के बजाए "चेयर" कहा और लिखा करेगी.

अलेक्जांड्रा शीले कहती हैं कि लैंगिक रूप से संवेदनशील भाषा जैसे सांकेतिक कदम लैंगिक समानता के लिए जागरूकता को और ज्यादा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. संस्थानों के भीतर भी ज्यादा व्यावहारिक कदम उठने की जरूरत है.

वह कहती हैं, "संस्थानों में किस स्तर पर अलग अलग लिंगों का प्रतिनिधित्व कम है, किए गए काम को कैसे आंका जाता है और भुगतान कैसे होता है, इसकी समीक्षा करना अहम है. संस्थानों को एक ऐसी संस्कृति विकसित करने की जरूरत है जिसमें भेदभाव वाले कदम सार्वजनिक हों या फिर दिखें ही नहीं."

शीले की मांग है कि अगर किसी कंपनी में लिंग विशेष का प्रतिनिधित्व कम है तो उसे बढ़ाने के लिए कोटे का इस्तेमाल करना चाहिए. भेदभाव, काम को कमतर आंकने और अनुचित वेतन ढांचे से लड़ने के लिए कंपनियों को जेंडर ट्रेनिंग की शुरुआत करनी चहिए.