सड़कों पर कुत्तों का मल कितना खतरनाक!
२१ जून २०२३विकसित देशों में, जहां आवारा कुत्ते नहीं होते और लोगों को कुत्ते पालने के लिए कई तरह के नियम कायदों का पालन करना होता है, वहां इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि लोग अपने कुत्तों का मल रास्तों पर छोड़ रहे हैं, जो लोगों की सेहत के लिए बेहद खतरनाक है.
कोविड-19 महामारी के दौरान विकसित देशों में कुत्ते पालने वालों की संख्या में खासा इजाफा देखा गया लेकिन कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि इस कारण कुत्तों का मल रास्ते पर छोड़ने के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं.
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वैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि कुत्तों का मल इंसानों में बीमारी, जल और वायु प्रदूषण और एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोध क्षमता कम करने के लिए जिम्मेदार होता है. इस मल में ऐसे अतिसूक्ष्म जीव हो सकते हैं जो लोगों को सैलमोनेला, ई कोली और शरीर के अंदर परजीवी जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर सकते हैं. इसके अलावा इंसान को ऐसे बैक्टीरियल रोग भी हो सकते हैं जिनका इलाज करना बेहद मुश्किल है.
बीमार करता है कुत्तों का मल
सिडनी यूनिवर्सिटी में हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला कि रास्तों पर पड़ा कुत्तों के मल का बहकर भू-जल में मिलना जल प्रदूषण का एक बड़ा कारक है.
पश्चिमी देशों में कुत्ते पालने पर कई तरह की पाबंदियां लागू हैं. मसलन, वे कुछ खास जगहों पर ही कुत्तों को टहलाने के लिए ले जा सकते हैं और ऐसे विशेष पार्क मौजूद हैं जिनमें कुत्तों को बिना बांधे ही छोड़ा जा सकता है. आमतौर पर जब लोग सुबह शाम अपने कुत्तों को टहलाने या मल-मूत्र विसर्जन के लिए ले जाते हैं तो वे अपने पास ऐसी छोटी थैलियां रखते हैं, जिनसे वे खुद मल उठाकर कूड़े में फेंक सकें. सार्वजनिक पार्कों में प्रशासन भी ऐसी थैलियां उपलब्ध करवाता रहता है.
लेकिन सिडनी यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया कि जिन पार्कों में कुत्तों को बिना बांधे घुमाने की इजाजत है, उनमें मल की समस्या सबसे अधिक पायी गई. इसके अलावा कार पार्किंग के आसपास भी यह समस्या गंभीर रूप में मिली.
पश्चिम में ध्यान देते हैं लोग
ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि पार्कों में उपलब्ध मल-थैलियों के होने से इस समस्या की रोकथाम पर बड़ा असर पड़ता है. इस अध्ययन में कहा गया कि ज्यादातर लोग जिम्मेदार होते हैं और वे मल की सफाई का ध्यान रखते हैं लेकिन तब भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो मल की सफाई की परवाह नहीं करते.
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सिडनी यूनिवर्सिटी में वेटरिनेरी साइंस पढ़ाने वालीं डॉ. मेंलिसा स्टर्लिंग ने ‘द कन्वर्सेशन' पत्रिका में छपे एक लेख में बताया है कि लोगों को कुत्तों के मल को फेंकना नहीं चाहिए बल्कि उसका खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
डॉ. स्टर्लिंग लिखती हैं, "ऑस्ट्रेलिया में करीब 90 लाख कुत्ते हैं. मध्यम आकार का एक कुत्ता एक साल में 180 किलोग्राम मल पैदा करता है. इस हिसाब से देश में अच्छी खासी मात्रा में मल उपलब्ध हो सकता है. लेकिन इसका लाभ उठाया जाना चाहिए.”
भारत में कुत्तों के मल की समस्या
भारत में सरकारों ने कई बार इस समस्या को लेकर कदम उठाए हैं. दिल्ली, मुंबई और चेन्नै जैसे शहरों में कुत्तों का मल रास्ते पर छोड़ने पर जुर्माने का प्रावधान है. मार्च 2020 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि लोगों को अपने पालतू कुत्तों का मल उठाना चाहिए और उसे किसी बैग में बंद करके ही कूड़े में फेंकना चाहिए.
लेकिन भारत की समस्या सिर्फ पालतू जानवरों तक ही सीमित नहीं है. देश में पालतू कुत्तों से कई गुना ज्यादा आवारा कुत्ते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की मार्च महीने में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में एक करोड़ के करीब पालतू कुत्ते हैं जबकि आवारा कुत्तों की संख्या तीन करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है. ये तीन करोड़ कुत्ते ऐसे हैं, जो जहां चाहें मल त्याग कर सकते हैं और इनका मल उठाने वाला कोई नहीं.