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असम में कोहराम: पूर्वोत्तर में साफ है ग्लोबल वॉर्मिंग का असर

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ मई २०२२

एक तरफ भारत के तमाम राज्य 46 डिग्री से ज्यादा तापमान और जानलेवा गर्मी से जूझ रहे हैं, वहीं पूर्वोत्तर के हालात इसके ठीक उलट हैं. जानकार मानते हैं कि ये वैश्विक तापमान में बदलाव का नतीजा है.

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Indien Assam Barak-Tal und Hafflong | Überschwemmungen
राज्य में सैकड़ों तटबंध, सड़कें और पुल टूट गए हैं. कई स्टेशनों पर पानी भर गया है और पटरियां डूब या टूट गई हैं.तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

पूर्वोत्तर भारत के असम के 24 जिलों के करीब 10 लाख लोग भयावह बाढ़ की चपेट में हैं. राज्य में सैकड़ों तटबंध, सड़कें और पुल टूट गए हैं. कई स्टेशनों पर पानी भर गया है और पटरियां डूब या टूट गई हैं. पड़ोसी राज्यों मेघालय, मिजोरम, अगरतला और अरुणाचल प्रदेश में भी मानसून से पहले होने वाली लगातार भारी बारिश के कारण बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचा रखी है.

मौसम का बदलता मिजाज

पूर्वोत्तर इलाके की भौगोलिक बसावट के चलते असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बाढ़ की समस्या तो पहले से ही रही है. खासकर अरुणाचल की पहाड़ियों और उससे सटे तिब्बत से निकलने वाली नदियों का पानी हल्की बरसात में ही असम के कई हिस्सों को डुबो देता है. यही वजह है कि राज्य में हर साल तीन से चार बार बाढ़ आती है, लेकिन हाल के वर्षों में बाढ़ के पहले और दूसरे दौर के बीच समय का अंतर घट गया है.

मौसम विज्ञानी इसके लिए कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. हालांकि बारिश के पैटर्न में होने वाले बदलावों के लिए ग्लोबल वार्मिंग को ही सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है.

Indien Assam Barak-Tal und Hafflong | Überschwemmungen
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मौसम विभाग की ओर से 1901 से 2015 यानी 115 साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद करीब चार साल पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इलाके में बारिश के मौसम में अत्यधिक भारी बारिश होने की घटनाएं भी बढ़ी हैं. इसके अलावा मानसून से पहले और बाद की बारिश भी तेज हुई है. इसी वजह से बाढ़ का सिलसिला तेज हुआ है.

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुमित पाल कहते हैं, "मानसून के दौरान अनियमित बारिश की वजह से असम की नदियां रास्ता बदलने लगी हैं. इसका असर इंसानी बस्तियों पर पड़ने लगा है और हर साल हजारों की तादाद में लोगों का विस्थापन हो रहा है. बीते कुछ वर्षों के दौरान विस्थापन की यह प्रक्रिया तेज हुई है.”

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मौसम वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि पूर्वोत्तर में हिमालय की पहाड़ियां अपेक्षाकृत युवा हैं. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इन पहाड़ियों पर ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है. यह मामूली बारिश के दौरान भी भयावह रूप ले लेती है.

अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के ग्लोबल फारेस्ट वाच की ओर से जारी एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2001 से 2021 के बीच भारत में सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर इलाके में ही जंगल का क्षेत्रफल घटा है. पूरे देश में घटे वन क्षेत्र का 76 फीसदी इसी इलाके में था. इनमें अकेले असम का हिस्सा ही 14.1 फीसदी था.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

आंकड़ों का अभाव

वर्ष 2018 में जलवायु संवेदनशीलता आकलन रिपोर्ट में कहा गया था कि असम और मिजोरम जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं.गुवाहाटी में गैर-सरकारी संगठन आरण्यक के वाटर क्लाइमेट एंड हजार्ड प्रोग्राम के प्रमुख पार्थ ज्योति दास कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन बारिश के चरित्र में बदलाव और अनिश्चितता की प्रमुख वजह हो सकती है.”

दास का कहना है कि इलाके में आंकड़ों और गहन शोध के अभाव में बारिश पर जलवायु परिवर्तन के सटीक असर के बारे में ठोस तरीके से कुछ कहना मुश्किल है. आंकड़े जुटाने के लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं हैं. फिलहाल जो आंकड़े मिल रहे हैं उन पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

जैवि विविधता और वनस्पतियों पर असर

भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी में भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर चंदन महंत कहते हैं, "तमाम प्राकृतिक और मानवीय कारकों के विस्तृत अध्ययन के बाद ही इलाके में जलवायु परिवर्तन के असर के बारे में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.”

हालांकि ज्यादातर वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस बात पर सहमत हैं कि इलाके में बदलते मौसम में ग्लोबल वार्मिंग की अहम भूमिका है. मौसम विज्ञानी डॉ. सुमंत डेका कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन का इलाके की जैव विविधता पर असर साफ नजर आने लगा है. अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग जिले में अब जाड़े के दिनों में भी आम फलने लगे हैं. यह एक नई बात है. मौसम के बदलते मिजाज की वजह से दुर्लभ किस्म की कई दुर्लभ वनस्पतियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.”

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पर्यावरणविद पार्थ प्रतिम दास कहते हैं, "इलाके में तेजी से कटते जंगल और आबादी का बढ़ता घनत्व पारिस्थितिकी तंत्र को और बिगाड़ रहा है. जंगल घट रहे हैं. लेकिन उनकी भरपाई नहीं हो रही है. इसका असर मौसम पर पड़ रहा है.”

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

बाढ़ की मार

पूर्वोत्तर राज्य असम, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचा रखी है. असम और त्रिपुरा में हालात सबसे ज्यादा खराब है. अब मणिपुर में भी नदियां उफान मार रही है. भारी बारिश और भूस्खलन के कारण असम की बराक घाटी और डिमा हसाओ जिले समेत पड़ोसी राज्यों त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर के कुछ हिस्सों से सड़क और रेल संपर्क टूट गया है.

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असम और मेघालय में कई जगह सड़क और रेल की पटरियां बह गई हैं. बाढ़ और भूस्खलन के कारण राज्य में अब तक कम से कम 11 लोगों की मौत हो चुकी है और नौ लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम को केंद्र सरकार की ओर से हरसंभव मदद का भरोसा दिया है. राहत और बचाव कार्यों के लिए सेना और वायुसेना को तैनात किया गया है.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

असम के डिमा हसाओ जिले में बाढ़ और भूस्खलन का सबसे भयावह असर नजर आ रहा है. इसी जिले में स्थित राज्य के अकेले पर्वतीय पर्यटन केंद्र हाफलांग में रेलवे की कई पटरियां टूट गई हैं और न्यू हाफलांग रेलवे स्टेशन पर पानी और कीचड़ भरा है. तेज बारिश और हवाओं ने स्टेशन पर खड़ी एक यात्री ट्रेन को भी पलट दिया.

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के एक प्रवक्ता ने कहा है कि लामडिंग-बदरपुर सेक्शन में पटरियों पर भूस्खलन और पानी भरने के कारण बराक घाटी, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम के लिए रेल संपर्क टूट गया है. रेलवे लाइन को बहाल करने का काम युद्ध स्तर पर जारी है.