1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ताकि कच्ची उम्र में आपकी बेटी न कहे, पापा मैं प्रेग्नेंट हूं

विवेक कुमार४ जुलाई २०१६

एड्स, एचआईवी, असुरक्षित सेक्स, अनचाहे गर्भ और ऐसी ही बीमारियों से निपटने का सबसे कारगर तरीका है सेक्स एजुकेशन. लेकिन सेक्स एजुकेशन पहुंचाना सीधे-सीधे तो मुश्किल है. तकनीक ने इस बात को समझ लिया है.

https://p.dw.com/p/1JIWV
Symbolbild HIV Prävention Aufklärung Sexualerziehung
तस्वीर: Imago

रोजरमैरी ओलाले के माता-पिता को जब पता चला कि उनकी कुंवारी बेटी प्रेग्नेंट है तो घर में तूफान आ गया. माता-पिता ने अपनी बेटी को फौरन घर से बाहर निकाल दिया. और इतना सब होने के बाद बेटी उन्हें यह नहीं बता पाई कि वह ना सिर्फ प्रेग्नेंट है बल्कि एचआईवी पॉजिटिव भी है. लेकिन, उसे कभी सेफ सेक्स के बारे में किसी ने बताया ही नहीं था.

नैरोबी की बस्ती में महिलाओं के बीच बैठी ओलाले कहती हैं, “ऐसा लगता है कि कोई आपको नहीं चाहता.” ऐसा कहते हुए ओलाले कनखियों से अपने अगल-बगल देखती हैं. वहां लड़कियों की पूरी कतार है. सबकी गोद में बच्चे हैं और सब की सब एचआईवी पॉजिटिव हैं.

जानें, पीरियड्स से जुड़ीं 10 गलतफहमियां

ओलाले अब 37 साल की हो चुकी हैं. 2005 में उन्होंने एक समूह शुरू किया था जो एचआईवी पॉजिटिव युवा मांओं को सामाजिक प्रताड़ना से निपटने में मदद करता है. और साथ ही गरीबी और बीमारियों से लड़ने में भी.

अफ्रीका में एचआईवी एक महामारी है. और अनचाहे गर्भ भी. इसकी बहुत सी वजह हो सकती हैं लेकिन एक वजह जो जड़ है, वह है सेक्स एजुकेशन की कमी. विशेषज्ञ कहते हैं कि सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर बात करना बुरा माना जाता है. इसलिए इस बारे में न घर में बात होती है ना स्कूलों में. ओलाले कहती हैं, “जहां से मैं आती हूं, वहां बेटियों से सेक्स पर बात करना बहुत मुश्किल है.” इसलिए ऐसे समूहों की अहमियत बढ़ जाती है जैसा ओलाले चला रही हैं. हाल ही में ऐसे समूहों की तादाद बढ़ी है.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष और केन्या की एक कंपनी नैलाब ने मिलकर ऐसी तकनीकी कंपनियों को मदद करना शुरू किया है जो सेक्स एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रही हैं. ये दोनों बड़ी संस्थाएं ऐसी कंपनियों को बढ़ावा दे रही हैं जो तकनीक और सोशल मीडिया के जरिए सेक्स एजुकेशन का प्रसार कर रही हैं.

सेक्स कैसे डराता है, देखें इन तस्वीरों में

मिसाल के तौर पर इसी महीने शुरू हुआ आई.एम कैंपेन. इस कैंपेन में युवाओं से आइडिया मंगाए गए हैं. अगस्त तक लोगों को अपने अपने आइडिया भेजने हैं. चार विजेता चुने जाएंगे जिन्हें अपने आइडिया पर अमल के लिए ट्रेनिंग और धन उपलब्ध कराया जाएगा. यूएनपीएफए की कार्यकारी निदेशक बाबातुंडे ओसोतिमेहिन कहती हैं, “सभी लड़के-लड़कियों को सेक्स ऐजुकेशन की पूरी जानकारी होनी ही चाहिए. तभी वे जिंदगी में सही फैसले ले पाएंगे.”

2012 में लंदन में एक फैमिली प्लानिंग समिट हुई थी. इसमें केन्या समेत कई देशों ने कसम खाई थी कि अपने यहां सेक्स एजुकेशन और परिवार नियोजन को बढ़ावा देंगे. लेकिन केन्या जैसे मुल्क में यह बहुत मुश्किल काम है क्योंकि समाज आमतौर पर रूढ़िवादी है. 2014 में संसद में एक बिल लाया गया जिसमें स्कूलों में सेक्स एजुकेशन और गर्भ निरोधक उपलब्ध कराने की बात कही गई थी. पूरे देश में हायतौबा मच गई. नैरोबी की एक चर्च के पादरी डेविड ओपोटी कहते हैं, “लोगों को डर है कि जब आप सेक्स एजुकेशन की बात करते हैं तब आप सेक्स की बात कर रहे होते हैं. मुझे एक भी दिन नहीं याद जब मेरे माता पिता मेरे साथ बैठे हों और मुझे सेक्स के बारे में समझाया हो. कभी नहीं.”

जर्मनी में सेक्स एजुकेशन पर बहस के बारे में जानें, यहां

जबकि यह साबित हो चुका है कि एचआईवी से लेकर अनचाहे गर्भ और अबॉर्शन तक में कमी लाने का सबसे कारगर उपाय सेक्स एजुकेशन ही है. केन्या में हर साल 15 से 24 साल के 29 हजार लोग एचआईवी का शिकार होते हैं. और लड़कों के मुकाबले लड़कियों में यह संभावना ज्यादा देखी गई है क्योंकि सेक्स एजुकेशन से वे ज्यादा दूर होती हैं. आंकड़े बहुत भयावह तस्वीर पेश करते हैं. यूएनपीएफए की रिपोर्ट के मुताबिक केन्या में हर पांचवीं किशोरी मां बन जाती है. 13 हजार लड़कियां सालाना स्कूल छोड़ रही हैं क्योंकि उन्हें बच्चे पालने होते हैं.

सेक्स एजुकेशन में तकनीक काफी मददगार साबित हो रही है. नैलाब के चीफ एक्जेक्यूटिव सैम गिचूरू कहते हैं, “अगर कोई ऐसा सॉफ्टवेयर बनाए जिसके जरिए लोग सेक्स को लेकर अपनी परेशानियों के बारे में बिना अपनी पहचान जाहिर किए बात कर सकें तो दसियों हजार युवा इसे हाथों हाथ लेते हैं. यह सबसे बड़ा कदम होगा.”

जानकार समझ रहे हैं कि ओलाले जो कोशिशें कर रही हैं उनका क्षेत्र सीमित है जबकि तकनीक के जरिए असीमित लोगों तक पहुंचा जा सकता है.

वीके/एमजे (रॉयटर्स)