आतंक से समझौता नहीं करेगा भारत
१८ जुलाई २०१६हिजबुल मुजाहिदीन का कुख्यात आतंकी बुरहान वानी दक्षिण कश्मीर के बमडूरा-कोकरनाग में अपने दो साथियों सरताज और मासूम शाह सहित सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया. हिजबुल का “पोस्टर बॉय” बना यह आतंकी सोशल मीडिया पर सक्रिय था और आतंकियों की नयी पीढ़ी को जोड़ने में इसकी मुख्य भूमिका थी.
बुरहान के परिवार के अन्य छह लोग भी जेहाद के रास्ते पर जा चुके हैं. बुरहान का बचपन भी बन्दूकों के साये में ही बीता. इसलिये 15 वर्ष की उम्र में उसने भी बन्दूक थाम ली. माना जाता है कि पिछले कुछ वर्षों में उसने लगभग 100 युवाओं को आतंकी बनाया था. सरकार ने उस पर दस लाख रुपये का इनाम रखा था.
बुरहान का काम संघर्ष करना नहीं था. शायद ही उसने कभी अपनी राइफलों से काम लिया हो. किन्तु वर्चुअल दुनिया में उसका कद इतना बड़ा हो गया जिसके चलते नौजवानों का एक वर्ग उसे अपना आदर्श मानने लगा. सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में आतंक का रास्ता भी ग्लैमर भरा हो गया है. बुरहान की मंडली के नये आतंकवादियों ने भले ही सुरक्षा बलों के साथ आमने-सामने की लड़ाई कभी न लड़ी हो लेकिन राइफल के साथ फोटो खिंचाना और उसे सोशल मीडिया पर शेयर करना संभवतः उन्हें मानसिक संतुष्टि देता होगा. इन लोगों ने पिछली पीढ़ी के आतंकवादियों से अलग न तो अपने चेहरे छिपाये और न ही नाम-पते. उनका पूरा प्रोफाइल फेसबुक पर मौजूद है.
यहां इस व्यवहारिक तथ्य को भी समझना होगा कि कश्मीर में शिक्षा अधिक है और रोजगार बहुत कम. परिणामस्वरूप जब उनके बौद्धिक सपने पूरे नहीं होते तो वे भावनात्मक मुद्दों की ओर आकर्षित होते हैं. बुरहान का काम ऐसे ही लोगों को जोड़ना था. हिजबुल कमांडर की मौत की खबर फैलते ही दक्षिण कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में लोग विरोध प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर उतर आये. उसके जनाजे में हजारों लोग जुटे. इसमें आतंकी भी मौजूद थे और बताया जाता है कि उन्होंने उसे गोलियों से सलामी दी. प्रतिबंधित झण्डे भी फहराये गये. इसके अतिरिक्त चालीस से ज्यादा जगहों पर बिना उसके शव के भी ‘नमाज-ए-जनाजा' का आयोजन किया गया.
मातम के बाद सभी जगहों पर हिंसक भीड़ ने वेस्सु-कुलगाम में हिंदुओं और सिखों के घरों पर हमला किया. सुरक्षा बलों के बंकर, पुलिस थाने, सरकारी संस्थान, वाहन आदि जलाये गये. पुलिसकर्मियों को बंधक बनाकर हथियार लूटे गये. एक पुलिस अधिकारी के घर में घुस कर उसकी पत्नी और बेटी को पीटा गया तो दूसरे को सरकारी वाहन सहित झेलम में फेंक दिया गया जिससे उसकी मौत हो गयी. उपद्रवियों ने एम्बुलेंस को भी नहीं छोड़ा. पिछले पांच दिनों में 70 एम्बुलेंस क्षतिग्रस्त हुई हैं. पूरा घटनाक्रम जिस तरह से सामने आया है उससे इसे स्वतःस्फूर्त या बुरहान की मौत से गुस्साये लोगों की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता. यह पूरी तरह नियोजित और संगठित हिंसा है. कहा जा सकता है कि इसकी योजना पहले से तैयार थी. केवल मौके का इन्तजार था जो उन्हें बुरहान की मौत ने दे दिया. हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है.
वर्ष 2016 में लगभग 80 आतंकवादी मारे गये हैं. सभी के जनाजों में भारी भीड़ जुटी है. किन्तु यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो जनाजों में जुटने वाली भीड़ तमाशबीन ज्यादा है. उनमें से मुट्ठी भर ही हैं जो पत्थरबाजी में शामिल होते हैं. लेकिन अलगाववादियों ने इन जनाजों को शक्ति प्रदर्शन का जरिया मान लिया है जिसे दिखा कर वे दिल्ली को डराना चाहते हैं और पाकिस्तान को यह अहसास कराना चाहते हैं उनकी ताकत अभी भी बनी हुई है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार शुरुआती झटके से तेजी से उबर गयी और तीन दिन के अंदर स्थिति नियंत्रण में आने की ओर बढ़ गयी. इसकी तुलना 2010 के आंदोलन से निपटने की स्थिति से करें तो वर्तमान सरकार ने ज्यादा चुस्ती दिखायी है. उस समय घाटी में लगभग चार महीने तक अराजकता की स्थिति बनी रही और लगभग 120 नौजवानों को जान से हाथ धोना पड़ा.
पिछले कुछ वर्षों में जमीनी स्थिति में बड़ा परिवर्तन आया. आतंकवाद के प्रति अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है और अब कथित उग्रवादी संगठनों के लिये पहले जैसी सहानुभूति कहीं नहीं बची है. भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र रूप में उभरा है और दुनिया के ज्यादातर देश इसके साथ अच्छे संबंध रखना चाहते हैं. दूसरी ओर कश्मीरी युवाओं का पाकिस्तान से बहुत हद तक मोह भंग हुआ है. वे समझ चुके हैं कि पाकिस्तान असफल राष्ट्रों की श्रेणी में जा खड़ा हुआ है.
भारत को अब 90 के दशक की रक्षात्मक मानसिकता से बाहर आना होगा तथा भीतरी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे पाकिस्तानी दुष्प्रचार पर प्रतिक्रिया देने की आदत बदलनी होगी. राज्य में राष्ट्रवादी शक्तियों को सबल बनाना तथा सम्बंधित पक्षों के बीच ठोस नेटवर्क स्थापित कर अलगाववादियों तथा आतंकवादियों के समर्थन को सीमित और निष्प्रभावी करना होगा. राज्य के सभी भागों की शेष देश के साथ सामाजिक-आर्थिक एकात्मता स्थापित हो, इसके लिये राज्य और शेष देश के बीच परस्पर संवाद को बढ़ाना होगा. घाटी के लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि संवाद बढ़ाने की यह प्रक्रिया उनके हित में है और इसके पीछे कोई राजनैतिक विचार नहीं बल्कि सदियों की दूरी को पाटना ही है. इसे लागू करने में अलगाववादियों की ओर से विरोध स्वाभाविक है किन्तु जनता से सीधा संवाद अपेक्षित परिणाम दे सकता है. तात्कालिक विरोध प्रदर्शनों से कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में निपटना स्वाभाविक है किन्तु अब समय आ गया है कि देश जम्मू कश्मीर को लेकर एक ठोस नीति बनाये और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ उसे लागू करे. राज्य और केन्द्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी क्षेत्रों में जनोन्मुखी शासन व्यवस्था लागू हो तथा राज्य के प्रत्येक नागरिक को वे सभी अधिकार और सुविधाएं उपलब्ध हों जिनका उपभोग देश का प्रत्येक नागरिक सहज ही कर रहा है.
आशुतोष भटनागर
कार्यकारी निदेशक, जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर