दम तोड़ रहा है कानपुर का चमड़ा उद्योग
७ जून २०१७कानपुर कभी अपने चमड़ा उद्योग और जूतों के लिए मशहूर हुआ करता था, पर आज उन कारखानों में बंदी की आहट सुनायी पड़ रही हैं. पहले नोटबंदी की मार फिर स्लॉटर हाउसेस पर मंदी का असर और अब मवेशियों के लिए एक नया कानून, कुल मिला कर कानपुर का चमड़ा उद्योग धीरे धीरे ख़त्म हो रहा हैं.
कुछ साल पहले तक कानपुर में विदेशी खरीददारों की आमद होती रहती थी. रेड टेप, बाटा, हश पप्पिज, गुच्ची, लुइस वितों जैसे लगभग हर बड़े ब्रांड को चमड़े की सप्लाई कानपुर से होती थी. आज फैक्ट्रियों में सिर्फ 15-20 दिन का स्टॉक बचा है. आगे क्या होगा किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा है.
चमड़ा उद्योग एक नजर में
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के पेच बाग, नयी सड़क इलाके में सूबे की सबसे बड़ी चमड़ा मंडी है. 2014 से पहले तक यहां रोज 20-25 ट्रक खाल आती थी. लगभग 1200 मजदूर काम करते थे. यहां 500 रजिस्टर्ड कारोबारी थे. एक ट्रक खाल का माल पहले 15-16लाख तक आता था. पेच बाग में खाल को नमक लगा कर रखा जाता था और फिर टेनरी भेजा जाता था. वहां उसको फिनिश करके फैक्ट्री में भेजा जाता था जिससे जूते, घोड़े की काठी, बेल्ट, पर्स और अन्य आइटम बनते थे. यहां कुल 6000 करोड़ का टर्नओवर होता है जो भारत में तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर है. सीधे तौर पर 2 लाख और अप्रत्यक्ष रूप में 20 लाख लोगों को रोजगार मिलता है.
मौजूदा समय में कुल 300 ट्रेडर्स बचे हैं, खाल भी अब 2-4 ट्रक एक हफ्ते में आती है. नतीजा ये हुआ है कि बहुत से ट्रेडर्स ने अपना धंधा छोड़ कर रेडीमेड कपडे की दुकान खोल ली है. पेच बाग में चमड़े का व्यापार करने वाले मोहम्मद हाफिज के अनुसार खाल रखा जाने वाला आधा अहाता बंद हो गया है. 1888 से व्यापार करते आ रहे हैं लेकिन अब बहुत मुश्किल है. याद करके बताते हैं कि पहले कानपुर में खाल केरल और मेघालय जैसे दूर दराज इलाकों से भी आया करती थी.
उत्तर प्रदेश लेदर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव इफ्तिखारुल अमीन के अनुसार चमड़ा उद्योग बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है. वे कहते हैं, "देखिये जब माल आएगा नहीं तो टेनरी बंद हो जाएगी. आगे काम कैसे होगा. खाल कहीं से मिल नहीं रही है. उनकी आवक मंडी में कम हो गयी है. बहुत चला पाए तो 2-3 महीने बस,"
व्यापारियों के अनुसार चमड़ा कारोबार की पूरी चेन डिस्टर्ब हो गयी है. पहले किसान अपने मवेशी (भैंस) को कस्बे की बाजार में बेच देता था. अमीन का कहना है कि दूध न के बराबर देने वाली एक स्पेंट भैंस लगभग 20000-30000 में मिल जाती थी और स्लॉटर हाउस भेजी जाती थी. वहां से खाल मार्किट में आ जाती थी जो टेनरी में प्रोसेस होकर फिर फैक्ट्री में गुड्स बनाने के काम आती थी.
ऐसा क्यों हुआ
कारोबार में खलल की वजह गाय को लेकर पिछले दिनों हुआ हंगामा है. इन हंगामों के बाद अब पशुओ का आवागमन बहुत कम हो गया है. स्लॉटर हाउस को जानवर मिल नहीं पा रहे हैं. नतीजा फैक्ट्री को कच्चा माल कम हो गया.
अब इधर नियम बना दिया गया कि किसान अपनी भैंस स्लॉटरहाउस में मारे जाने के लिए नहीं बेचेगा. चमड़ा कारोबारी किसान के घर घर जा कर मवेशी खरीदने को तैयार नहीं क्योंकि पशुओ का यातायात गौरक्षकों के हमलों के कारण मुश्किल हो गया हैं. धीरे धीरे पूरी चेन पर रोक लग सकती है. मौजूदा समय में ही बिजनेस में 40 फीसदी की कमी आ चुकी है. विदेशी ग्राहक अब कानपुर की तरफ रुख करने से हिचकिचा रहे हैं. अमीन के अनुसार अब विदेशी ग्राहक सीधे कह देते हैं कि आर्डर पूरा हो पायेगा समय से कि पाकिस्तान, बांग्लादेश से करवा लें. विदेशी ऑर्डर्स में समय पर डिलीवरी का बहुत महत्त्व रहता हैं, लेकिन अब ऐसा संभव नहीं रह गया है.
छोटी टेनरी तो बंदी के कगार पर पहुंच गयी है. आशंका ये है कि बड़े ग्रुप सीधे फिनिश्ड चमड़ा रूस, अफ्रीका और अमेरिका से आयात कर लेंगे, लेकिन घरेलू बाजार बिगड़ने से हजारों मजदूर बेरोजगार हो जायेंगे. पशुओं के हाट नहीं लगेंगे. किसानों की आय, जिसे लगभग 60 प्रतिशत टर्नओवर का पेमेंट होता हैं वो अब कम हो जायेगी.