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समाज

जमानत के लिए राखी बंधवाने की शर्त गलत-अटॉर्नी जनरल

आमिर अंसारी
३ नवम्बर २०२०

मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को इस शर्त पर जमानत दे दी थी कि वह पीड़ित से राखी बंधवाने की गुहार करे, नेग में 11,000 रुपये भी दे. हाई कोर्ट की शर्त को 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

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तस्वीर: Fotolia/Sebastian Duda

आरोपी विक्रम बागरी पर महिला के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था और उसने मध्य प्रदेश की इंदौर बेंच में जमानत की अर्जी दी थी. बागरी पर इसी साल अप्रैल महीने में पड़ोसी के घर में घुसकर महिला के उत्पीड़न का आरोप लगा था. बागरी ने हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में जमानत अर्जी दी थी और हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए 30 जुलाई को जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि आरोपी पीड़ित के घर राखी वाले दिन जाएगा और उससे राखी बंधवाने का अनुरोध करेगा और साथ ही वादा करेगा कि वह उसकी रक्षा जीवन भर करेगा. यही नहीं कोर्ट ने कहा था कि बतौर नेग वह पीड़ित महिला को 11 हजार रुपए दे और मिठाई भी साथ लेकर जाए. इसके अलावा उसके बच्चे के लिए मिठाई और कपड़े खरीदने के लिए 5,000 रुपये देने को कहा था.

यौन उत्पीड़न के आरोपी को अदालत द्वारा इस अनोखी शर्त को महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. उनका कहना है कि यह फैसला कानून के सिद्धांत के खिलाफ है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सहयोग करने को कहा था. सोमवार 2 नवंबर को जब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई तो अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि होई कोर्ट का यह आदेश यौन अपराध को महत्वहीन बनाने के बराबर है. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, "मौजूदा मामले में जो भी शर्तें लगाई गई वह ड्रामा के अलावा कुछ नहीं है." उन्होंने कहा कि जजों को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने और जमानत की शर्तें निर्धारित करते समय तथ्यों पर केंद्रित रहने की जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है और कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से मामले में मदद मांगी है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच कर रही है. वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि न्यायिक अकादमी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पढ़ाने चाहिए और उन्हें निचली अदालतों और हाई कोर्ट के सामने पेश करना चाहिए ताकि जजों को पता रहे कि क्या करने की जरूरत है.

याचिकाकर्ता वकील अपर्णा भट्ट ने डीडब्ल्यू को बताया कि हाई कोर्ट ने जो शर्तें जमानत के लिए लगाई वो हमें गलत लगी और इसलिए हमने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी. भट्ट कहती हैं, "जमानत के लिए जो शर्तें होती हैं जैसे कि पीड़ित के पास आरोपी नहीं जाएगा, जांच में बाधा नहीं डालेगा या शहर से बाहर नहीं जाएगा या बाहर जाएगा तो पुलिस की इजाजत के साथ जाएगा. लेकिन कोर्ट ने ये सब छोड़ कर दूसरी शर्त लगा दी जिसका कोई मतलब ही नहीं बनता है."

भट्ट कहती हैं कि कई बार मानवीय आधार पर जमानत मांगी जाती है, जैसे कि बुजुर्ग होना, घर पर किसी का बीमार होना या फिर कमाने वाला एक ही होना. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल और अन्य पक्षकारों से लिखित दलील पेश करने और क्या कदम उठाए जा सकते हैं बताने को कहा है. 

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