पर्दे के पीछे कैसी हैं ईरानी औरतें
ईरानी महिला सुनते ही अगर आपके जहन में भी पर्दे में छिपी औरत की तस्वीर उभरती है तो ये तस्वीरें आपको चौंका देंगी. ईरानी फोटोग्राफर समाने खोसरावी ने पर्दे के पीछे की जिंदगी को कागज पर उतारा है, और हमने उसे इंटरनेट पर...
घर से बाहर जाना हो तो
ईरान की एक महिला जब घर से बाहर जाती है तो खुद को पूरी तरह ढक लेती है. लेकिन इस ढकने में भी वह हॉलीवु़ड की नकल की कोशिश करती है. और पर्दे के भीतर कैसी है उसकी जिंदगी?
ढीले से नियम
1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. उसके बाद सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए अपना शरीर ढकना जरूरी हो गया. फिर भी युवतियां कई बार इन नियमों से खेल जाती हैं जैसे उत्तरी तेहरान के तोचल की ये लड़कियां. हालांकि यह जान पर खेल जाने जैसा है.
चेहरा दिखना चाहिए
ईरान में हिजाब चलता है. यानी बाकी पूरा शरीर ढका होना चाहिए लेकिन चेहरा दिख सकता है. वैसे 1936 से 1941 के बीच रजा शाह पहलवी ने सार्वजनिक स्थानों पर पर्दा बैन कर रखा था.
मर्लिन मुनरो जैकेट
ईरान में लड़कियां ऑनलाइन शॉपिंग खूब करती हैं. मर्लिन मुनरो जैकेट खूब चलती है. युवा डिजाइनर फेसबुक या इंस्टाग्राम के जरिए इन्हें बेचते हैं.
प्लास्टिक सर्जरी
चेहरे-मोहरे पर बहुत पैसा खर्चते हैं ईरानी. प्लास्टिक सर्जरी खूब हो रही है. हर साल देश में 60-70 हजार लोग सर्जरी करवाते हैं.
हर साल बढ़ती संख्या
आंकड़े बताते हैं कि जितनी प्लास्टिक सर्जरी ईरान में होती है, उससे वह सबसे ज्यादा सर्जरी कराने वाले देशों में शुमार हो गया है. और आंकड़े हर साल बढ़ते ही जा रहे हैं. जैसे इस लड़की ने नाक की सर्जरी करा ली है.
आधुनिकता और परंपरा
ईरानी फैशन में आधुनिकता और परंपरा का संगम साफ दिखता है. खोसरावी के कैमरे की निगाह से देखिए.
घर पर ब्यूटी ट्रीटमेंट
ब्यूटीशियन घर पर सर्विस देती हैं. खोसरावी कहती हैं कि महिलाओं में बालों को रंगवाने कराने का चलन बढ़ रहा है.
मेनिक्योर, पेडिक्योर
ईरान में विशाल ब्यूटी सलून भी खूब चलते हैं. पुरुष इनके अंदर नहीं आ सकते. महिलाएं इस बंद कमरे में ज्यादा आजाद होती हैं.
काला शा काला
ऐसा नहीं है कि ईरानी महिलाएं काला रंग ही पहनती हैं. वे चटख रंग भी खूब ओढ़ती-पहनती हैं. खोसरावी का कैमरा इसका गवाह है.
एक्सरसाइज भी
ईरानी लड़कियां फिगर को लेकर वैसे ही चिंतित हैं जैसे कोई और भी. इसलिए वे वर्कआउट करती हैं. फिट रहती हैं.
हुस्न का जश्न
खोसरावी कहती हैं कि युवतियां सामाजिक हदों का पालन करती हैं लेकिन इन हदों में रहकर हुस्न का जश्न मनाना इन्होंने सीख लिया है.