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शिक्षाभारत

ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन में विदेशी छात्रों पर लगाम

विवेक कुमार
२९ जनवरी २०२४

ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन, तीनों ही देश अपने यहां आने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में कटौती कर रहे हैं. विदेश में पढ़ने की इच्छा रखने वाले भारतीयों के लिए यह बुरी खबर है.

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कैंब्रिज विश्वविद्यालय
ब्रिटेन का कैंब्रिज विश्वविद्यालयतस्वीर: Nicholas.T.Ansell/empics/PA Wire/picture alliance

कोविड-19 महामारी के बाद ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन ने बहुत बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को वीजा बांटे. 2021 और 2022 में तो तीनों देशों में रिकॉर्ड संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्र आए. भारतीयों के लिए यह सुनहरा मौका रहा क्योंकि इन तीनों देशों में फिलहाल सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्र भारत से गए. लेकिन अब उनके बुरे दिन शुरू होते दिख रहे हैं क्योंकि तीनों देश अपने यहां अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर लगाम कस रहे हैं.

ये तीनों ही देश भारत छोड़कर विदेशों में बसने वालों की पसंद में सबसे ऊपर होते हैं. इसकी वजह है इनकी माइग्रेशन नीति, जिसके चलते वहां बसना बेहद आसान है. विदेश जाकर बसने का सबसे आसान तरीका अंतरराष्ट्रीय छात्र के तौर पर प्रवासन होता है.

एक दम आया उछाल

कोविड महामारी के बाद तीनों ही देशों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या खासी बढ़ी थी और सबकी वजहें लगभग एक जैसी थीं. ऑस्ट्रेलिया में माइग्रेशन एक्सपर्ट डॉ. अबुल रिजवी के मुताबिक तीनों देशों में विश्वविद्यालय कोविड महामारी के दौर में आए आर्थिक संकट से उबरना चाहते थे.

डॉ. रिजवी कहते हैं, "कोविड-युग की नीति सीमाएं खुलने के बाद देश में पहले से मौजूद छात्रों को बनाए रखने के साथ-साथ विदेशों से और बड़ी संख्या में छात्रों को आकर्षित करने पर आधारित थी कोविड के बाद जब सीमाएं खुलीं तो अर्थव्यवस्था में कामगारों की भारी किल्लत थी.”

यानी तीनों देशों में उद्योगों को काम करने वालों की जरूरत थी और अंतरराष्ट्रीय छात्र यूनिवर्सिटी फीस में धन लाने के साथ-साथ सस्ते लेबर के रूप में भी अर्थव्यवस्था के लिए बेहद लाभदायक साबित हुए. लेकिन अब इस बड़ी संख्या के नुकसान नजर आने लगे हैं.

सोमवार को ऑस्ट्रेलिया में विपक्षी दल लिबरल पार्टी के इमिग्रेशन मामलों के प्रवक्ता डैन टेहन ने कहा कि देश में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या पांच लाख के पार पहुंच चुकी है, जो कि "जरूरत से कहीं ज्यादा” है.

एक टीवी इंटरव्यू में टेहन ने कहा, "अभी भी रिकॉर्ड संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्र आ रहे हैं. यह बहुत ज्यादा है. हमारे यहां घरों का संकट है, किराया बहुत ऊंचा हो चुका है. लोग डॉक्टरों तक को नहीं दिखा पा रहे हैं. शहरों में भीड़ बढ़ रही है.”

इसी तरह ब्रिटेन में भी 2022 में लगभग चार लाख 90 हजार छात्र वीजा जारी किए गए जो महामारी से पहले की तुलना में 81 फीसदी और 2021 से 29 फीसदी ज्यादा थे.

कटौती की शुरुआत

ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा तीनों ही अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में कटौती कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की सरकार पहले ही इस बात का ऐलान कर चुकी है कि आने वाले महीनों में उन्हीं छात्रों को वीजा दिया जाएगा, जो योग्य हैं और जो पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया आना चाहते हैं.

छात्र वीजा पर कई पाबंदियां लगाई गई हैं और पहले जो ढील दी गई थीं, उनमें भी कमी की जा रही है. जैसे कि पहले पढ़ाई पूरी करने पर तीन साल का वर्क वीजा मिल जाता था, जिसे अब घटाकर एक से दो साल कर दिया गया है. इसके अलावा, पढ़ाई के दौरान कोर्स बदलने पर भी रोक लगा दी गई है.

इसी तरह का ऐलान कनाडा ने भी किया. पिछले हफ्ते कनाडा ने कहा कि इस साल कम अंतरराष्ट्रीय छात्रों को वीजा दिए जाएंगे. कई कोर्सों में पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद मिलने वाले वर्क परमिट भी अब बंद कर दिए जाएंगे.

इमिग्रेशन मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक नई सीमा के तहत 2024 में लगभग 3,60,000 छात्रों को ही वीजा दिए जाएंगे. 2023 के मुकाबले यह संख्या 35 फीसदी कम है इमिग्रेशन मंत्री मार्क मिलर ने कहा कि शिक्षा का मामला राज्य सरकारें देखती हैं इसलिए सीमा निर्धारित करने के लिए संघीय सरकार प्रांतीय सरकारों से मश्विरा करेगी.

ब्रिटेन में तो बदलाव 2022 में ही शुरू हो गए थे. इस कारण जून 2022 से जून 2023 के बीच देश में प्रवासियों की कुल संख्या करीब साढ़े सात लाख से घटकर छह लाख 72 हजार रह गई. मई 2023 में देश ने एक और पाबंदी लगाते हुए पोस्ट ग्रैजुएशन के अलावा अन्य छात्रों के अपने परिवार को बुलाने पर भी रोक लगा दी.

सुविधाओं पर दबाव

अंतरराष्ट्रीय छात्रों की बढ़ी संख्या का असर तीनों देशों की मूलभूत सुविधाओं पर दबाव के रूप में सामने आया है. ज्यादा छात्रों के आने से कुल प्रवासियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई. युनाइटेड किंग्डम में 2022 में करीब साढ़े सात लाख नए प्रवासी आए.

इसी तरह कनाडा में पिछले साल की आखिरी तिमाही में छह दशक में सबसे तेज दर से बढ़ी है. इनमें सबसे ज्यादा वृद्धि अस्थायी नागरिकों, खासकर छात्रों की हुई, जो पांच दशक में सबसे ज्यादा थी. अस्थायी आप्रवासियों की संख्या में तीन लाख 12 हजार 758 की वृद्धि हुई.

ऑस्ट्रेलिया की आबादी 2.7 करोड़ पर पहुंच गई है. इनमें से करीब ढाई फीसदी यानी छह लाख 24 हजार लोग पिछले साल ही जुड़े. कम जन्म दर के बावजूद हो रही इस बढ़ोतरी के लिए विदेशी अप्रवासी ही जिम्मेदार हैं.

बढ़ती आबादी का असर तीनों देशों में नजर भी आ रहा है. कनाडा के इमिग्रेशन मंत्री मिलर ने कहा, "(छात्रों की) बढ़ती संख्या से घरों, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं पर भी दबाव पड़ रहा है. संख्या कम होगी तो किराया कम करने में मदद मिलेगी.”

भारतीय छात्रों का नुकसान

नीतियों में इस बदलाव का सबसे ज्यादा नुकसान भारतीयों को ही झेलना होगा क्योंकि तीनों ही देशों में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है. 2022 में कनाडा में जितने कुल स्टूडेंट वीजा जारी हुए थे उनमें से दो लाख 25 हजार 835 यानी लगभग 41 फीसदी भारतीय थे.

2023 में करीब नौ लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र कनाडा में पढ़ाई कर रहे थे जिनमें से लगभग 40 फीसदी भारतीय थे. पिछले साल कुल मिलाकर भारतीय छात्रों की संख्या में चार फीसदी गिरावट आई, फिर भी वे एक देश से जाने वाले छात्रों की संख्या में सबसे ऊपर थे.

ऑस्ट्रेलिया स्थित भारतीय उच्चायोग के मुताबिक पिछले साल सितंबर में देश में एक लाख 23 हजार 391 भारतीय छात्र पढ़ रहे थे, जो चीन के बाद सबसे ज्यादा था.

भारतीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2022 में सात लाख 70 हजार छात्र पढ़ाने करने के लिए विदेश गए थे. इनमें से एक लाख 40 हजार तो युनाइटेड किंग्डम ही गए थे. विदेश जाने वाले छात्रों की यह संख्या दस फीसदी सालाना की दर से बढ़ रही है. 

छात्र वीजा भारतीयों के लिए विदेशों में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि बसने का भी जरिया होता है. तीन प्रमुख देशों में हो रही कटौती से उनके सपनों के पर कतरे जाएंगे.

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