इंडोनेशिया: रोजगार की तलाश में जमीन पर आते समुद्री खानाबदोश
७ अगस्त २०२४इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस के पानी में रहने वाले खानाबदोश छोटी उम्र से ही गोता लगाना सीख जाते हैं. पीढ़ियों से गोताखोरी कर बाजाऊ जनजाति के सदस्यों ने ऐसी शारीरिक विशेषताएं विकसित की हैं जो उन्हें लंबे समय तक पानी के भीतर रहने में मदद करती हैं. हालांकि, इंडोनेशियाई द्वीप पुलाउ पपन के एक गांव में रहने वाले सैकड़ों लोगों की पारंपरिक जीवन शैली अब खत्म हो गई है.
39 साल के सुफियान सबी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमने अपना पेशा बदल लिया है. हम मछुआरे हैं और खेतों में काम करते हैं. खेती से अच्छी आय होती है, क्योंकि मैं कई फसलें उगा सकता हूं." सुफियान ने बताया कि पास में ही उनके पास मक्का और केले उगाने के लिए दो हेक्टेयर जमीन है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस जनजाति के सदस्य छोटी उम्र से ही गोता लगाना सीख जाते हैं और समय के साथ उनके शरीर ने खुद को इस प्रकार से ढाल लिया है कि वे लंबे समय तक पानी के भीतर रहकर मछली पकड़ सकते हैं.
जनजाति की वजूद पर खतरा
लेकिन इंडोनेशिया के पुलाउ पपन के छोटे से द्वीप गांव में रहने वाले सैकड़ों बाजाऊ लोगों के लिए उनके पूर्वजों की अनूठी जीवन शैली लगभग समाप्त हो चुकी है. सबी ने कहा, "कभी-कभी हम समुद्र में जाकर कुछ नहीं कमा पाते हैं. कई बार मछलियां होती हैं, कभी-कभी बिल्कुल भी नहीं होतीं."
बचपन से ही 10 से 15 मीटर की गहराई पर सांस रोकने में माहिर सबी भी पानी में समुद्री खीरे या ऑक्टोपस की तलाश करते हैं, जिससे वह 31 डॉलर या 2600 रुपये तक कमा सकते हैं.
बाजाऊ जनजाति पर शोध करने वाले थाईलैंड की चूललोंगकोर्न यूनिवर्सिटी के वेंगकी अरियांडो ने कहा कि वाणिज्यिक स्तर पर अत्यधिक मछली पकड़ने और बढ़ते तापमान ने मछली पकड़ने को कठिन बना दिया है. उन्होंने कहा, "वे घटते समुद्री संसाधनों का सामना कर रहे हैं."
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है मछलियों के प्रवास और संभोग पैटर्न में बदलाव होता है और खाद्य श्रृंखला में परिवर्तन होता है. इंडोनेशिया में 11 मछली भंडार में से आधे से अधिक खत्म हो गए हैं. मत्स्य पालन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मछली का स्टॉक 2017 में 1.25 करोड़ मीट्रिक टन से घटकर 2022 में 1.2 करोड़ मीट्रिक टन हो गया.
52 साल के मछुआरे अरफिन ने कहा, "मछलियां कम हो रही हैं, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोग मछली का शिकार कर रहे हैं."
समुद्र में पहले के मुकाबले अब कम मछली मिल पा रही हैं
द्वीप पर रहने वाले डेवलिन अंबुतांग ने कहा कि लोगों ने तीन पीढ़ी पहले यहां बसना शुरू किया था. उन्हें यह द्वीप घर बनाने के लिए मुनासिब लगा, लेकिन जमीन पर रहने की अपनी समस्याएं हैं.
डेवलिन के भाई पर्यटकों के लिए होम स्टे चलाते हैं. उनकी शिकायत है कि बाजाऊ व्यवसाय को बढ़ावा देने के बजाय अधिकारी पर्यटकों को सरकार द्वारा निर्मित कॉटेज में रहने का निर्देश देते हैं.
सुफियान सबी कहते हैं, "लोगों के लिए कोई अतिरिक्त आय नहीं है. सरकार सब कुछ कंट्रोल करती है." लंबे समय से राष्ट्रीय पहचान से वंचित बाजाऊ जनजाति सरकार द्वारा अपनी स्थिति को मान्यता दिए जाने की प्रतीक्षा कर रही है.
वेंगकी ने कहा, "बाजाऊ लोगों ने अपनी आजीविका बदल दी, क्योंकि इंडोनेशिया में एक समुदाय के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए उन्हें वहां बसना जरूरी था."
उन्होंने कहा कि उन्हें आधिकारिक रूप से पंजीकृत करने का अभियान 1990 के दशक में तानाशाह सुहार्तो के शासनकाल में शुरू हुआ था. लेकिन इसके बावजूद उन्हें अभी भी पूरी पहचान हासिल करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
इस गांव में बसने के बाद इन लोगों की सामाजिक गतिविधियों में बदलाव आया है. वेंगकी का कहना है कि इससे विशेष रूप से युवा लोग अपने पारंपरिक समुद्री जीवन से दूर जा रहे हैं, जिससे उनकी पहचान में भ्रम पैदा हो रहा है.
सोशल मीडिया समूह से एक दूसरे की मदद
इंटरनेट तक पहुंच के कारण इस जनजाति के सदस्यों ने सोशल मीडिया समूह बनाए हैं जिनके जरिए वे एक-दूसरे की मदद करते हैं. 20 साल की तिरसा अदुदा के पति मछुआरे हैं. वो कहती हैं, "यहां कोई विकास नहीं हुआ है, कुछ भी नहीं. जिला प्रशासन की ओर से हर परिवार को हर महीने दो से तीन बोरी चावल मिलता है."
उन्होंने कहा, "अगर हम सिर्फ ऑक्टोपस पकड़ने पर निर्भर रहें तो यह पर्याप्त नहीं है. अगर ऑक्टोपस की कीमत अभी की तरह गिर जाए... तो यह हमारे लिए खाने या दूसरे सामान खरीदने के लिए भी पर्याप्त नहीं होगा."
लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि खानाबदोश अपनी समुद्री यात्रा के तरीके को जारी रखें. उन्हें चिंता है कि आने वाली पीढ़ियां उनके नाव पर रहने वाले पूर्वजों की तरह नहीं होंगी.
49 साल के मछुआरे मुस्लिमिन ने कहा, "एक बार जब वे सहज महसूस करेंगे, तो उनके लिए समुद्र में वापस जाना आसान नहीं होगा. मैं चाहता हूं कि वे केवल मछुआरे के रूप में काम करें, क्योंकि यह मजेदार है. जमीन पर बहुत सारी मुश्किलें हैं."
एए/सीके (एएफपी)