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इंडोनेशिया में फेक न्यूज से निपटेगी नई सरकारी एजेंसी

६ जनवरी २०१७

इंडोनेशिया एक ऐसी एजेंसी बनाने जा रहा है जो फेक न्यूज से निपटनेगी. सोशल मीडिया पर झूठी खबरों की बाढ़ को देखते हुए यह कदम उठाया जा रहा है. इन दिनों इंडोनेशिया में चीन से जुड़ी कई फेक न्यूज चल रही हैं.

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Symbolbild Facebook Social Media Fake News
तस्वीर: picture-alliance/maxppp/P. Proust

राष्ट्रपति जोको विडोडो के प्रवक्ता जोहान बुदी बताया कि नई साइबर एजेंसी सरकारी संस्थानों को हैकरों से भी बचाएगी. वहीं, मुख्य सुरक्षा मंत्री विरांतो ने कहा कि सोशल मीडिया पर जिस तरह झूठी खबरें धड़ल्ले से फैलाई जा रही हैं, उन्हें देखते हुए नई एजेंसी का गठन बहुत जरूरी है. उनके मुताबिक, "ये खबरें सरासर झूठी, फर्जी, गुमराह करने वाली और नफरत फलाने वाली होती हैं."

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन कानून का पालन करना भी बहुत जरूरी है. अधिकारियों का कहना है कि नई एजेंसी इंटरनेट पर चलने वाली झूठी खबरों पर निगरानी रखेगी और यह सुरक्षा मंत्री के अधीन काम करेगी. अन्य सरकारी एजेंसियों से भी इसका तालमेल होगा.

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दिसंबर में राष्ट्रपति विडोडो ने अपने कैबिनेट की बैठक में फेक न्यूज से निपटने के लिए कदम उठाने की बात कही थी. दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के कुल 25.5 करोड़ लोगों में से अनुमानित 13 करोड़ इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं.

इंडोनेशिया में हाल के समय में जिस फेक न्यूज ने सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान खींचा, वह इंडोनेशिया पर हमले की चीन की तैयारी को लेकर थी. इनमें कहा गया कि चीन जैविक हथियारों से इंडोनेशिया पर हमला करने की फिराक में है. यह फर्जी खबर एक सच्ची खबर के बाद चली थी, जिसमें जकार्ता के दक्षिण में एक खेत से चार चीनी लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इन लोगों पर बैक्टीरिया से संक्रमित मिर्ची के बीज इस्तेमाल करने का आरोप है.

हमले की योजना से जुड़ी फेक न्यूज के तूल पकड़ने के बाद जकार्ता में चीनी दूतावास को एक बयान जारी कर कहना पड़ा कि इस तरह की खबरें गुमराह कर रही हैं और यह चिंता का विषय है.

एक और फर्जी खबर इंडोनेशिया में खूब चली. इसके मुताबिक लाखों चीनी कामगार इंडोनेशिया में दाखिल हो गए हैं और वे स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन लेंगे. इससे इंडोनेशिया में चीन विरोधी तीव्र भावनाओं का पता चलता है.

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इंडोनेशिया के एक इंटरनेट विशेषज्ञ नुकमान लुत्फी उम्मीद जताते हैं कि नई एजेंसी लोगों की निजता का हनन नहीं करेगी, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इस बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी. उनके मुताबिक, "अगर इसके जरिए सार्वजनिक ऑनलाइन मंचों पर होने वाली चर्चाओं की निगरानी की जाएगी तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा."

वैसे फेक न्यूज को लेकर दुनिया भर में चिंता बढ़ रही है. कई लोगों का तो यहां तक कहना है कि इंटरनेट पर फर्जी खबरों की बाढ़ की वजह से ही ट्रंप को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने में मदद मिली.

एके/वीके (एएफपी)